स्वतंत्रता के पहले जब फिल्में रिलीज होती थीं तो उस वक्त सिनेमाघरों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। फिल्में तैयार होने के पहले से फिल्म निर्माता देशभर के सिनेमाघरों की बुकिंग कर लिया करते थे। इसमें प्रतिद्वंदी निर्माताओं के बीच अलग अलग तरह के खेल भी होते थे। कई बार ऐसा होता था निर्माता अपनी फिल्मों के लिए पहले से सिनेमाघर बुक कर लिया करते थे ताकि दूसरे निर्माताओं को अपनी फिल्में रिलीज करने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़े। इसी दौर में दिल्ली में एक फिल्म निर्माता और फिल्मों को फाइनेंस करनेवाले सेठ जगत नारायण अपनी फिल्मों को रिलीज करने में परेशानी महसूस करने लगे थे। कई बार ऐसा होता था कि वो जिस फिल्म में पैसा लगाते थे उसको दिल्ली में रिलीज करने के लिए सिनेमा हाल सही समय पर नहीं मिल पाता था। इस परेशानी से उबरने के लिए सेठ जी ने दिल्ली में तीन सिनेमा हाल खरीद लिए। ये तीनों सिनेमा हाल पुरानी दिल्ली इलाके में थे। नावेल्टी सिनेमा पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास, जामा मस्जिद के पास जगत सिनेमा और कश्मीरी गेट में रिट्ज। उसके बाद सेठ जगत नारायण की परेशानी कुछ कम हुई। उन्होंने नावल्टी और जगत सिनेमा को आम जनता का हाल बनाया और उनकी ही रुचि की फिल्में यहां लगाया करते थे। रिट्ज को उन्होंने थोड़ा अपमार्केट बनाया और उसको अपर मिडिल क्लास की रुचियों के अनुसार न सिर्फ सजाया बल्कि फिल्में भी इस रुचि का ध्यान में रखकर ही लगाई जाती थीं।
अभी जब नावेल्टी सिनेमा की जमीन को लेकर जब राजनीतिक विवाद छिड़ा हुआ है तो अचानक से इस प्रसंग का स्मरण हो आया। कई पुस्तकों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सेठ जगत नारायण के स्वामित्व में आने के पहले नावल्टी सिनेमा का नाम एलफिस्टन हुआ करता था। 1930 से 1940 के बीच कभी सेठ जगत नारायण ने इसका स्वामित्व हासिल किया था। कालांतर में सेठ जी के वारिसों ने इसको चलाया। जब से फिल्मों को दिखाने की तकनीक बदली और महानगरों में मल्टीप्लैक्स संस्कृति मजबूत होने लगी तो नावल्टी जैसे सिंगल स्क्रीन वाले सिनेमा हाल के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया। एक तो तकनीक के साथ बदलाव की चुनौती, दूसरे दर्शकों का मल्टीप्लैक्स की ओर बढता रुझान, नावल्टी जैसे सिनेमाघरों की बंदी का कारण बना। अन्यथा एक जमाने में तो दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए नावल्टी सिनेमा सबसे पसंदीदा सिनेमा हाल हुआ करता था। कई बार तो विश्वविद्यालय के विभिन छात्रावासों में रहनेवाले छात्र पैदल ही नावल्टी में फिल्म देखने पहुंच जाते थे। आज दिल्ली क्या पूरे देश में सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर या तो बंद हो चुके हैं या बंद होने के कगार पर हैं।
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