नववर्ष 2022। हिंदी साहित्य और प्रकाशन जगत को इस वर्ष से बहुत उम्मीदें हैं। समकालीन साहित्यिक और प्रकाशन परिदृश्य से जिस तरह का समाचार प्राप्त हो रहा है वो बेहद उत्साहजनक है। इस समय हिंदी साहित्य में कई पीढ़ियां एक साथ सृजनरत हैं। एक तरफ रामदरश मिश्र और विश्वनाथ त्रिपाठी जैसे बुजुर्ग लेखक हैं तो दूसरी तरफ नवीन चौधरी और भगवंत अनमोल जैसे युवा लेखक अपनी रचनाशीलता से हिंदी साहित्य जगत की रचनात्मकता को जीवंत रखे हुए हैं। इनके बीच में यतीन्द्र मिश्र, मनीषा कुलश्रेष्ठ, रजनी गुप्त, रत्नेश्वर और संजय कुंदन की पीढ़ी के लेखक भी लगातार लिख रहे हैं। मैत्रेयी पुष्पा और उषाकिरण खान की भी पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं। हिंदी साहित्य की रचनाशीलता के हिसाब से ये वर्ष बेहद आश्वस्तिकारक लग रहा है। वाणी प्रकाशन से वरिष्ठ लेखिका पुष्पा भारती की एक महत्वपूर्ण पुस्तक का प्रकाशन इस वर्ष होगा जिसका नाम है अमिताभ बच्चन एक जीवनगाथा। पुष्पा भारती हिंदी की समर्थ लेखिका और धर्मवीर भारती की पत्नी हैं। धर्मवीर भारती और हरिवंशराय बच्चन के परिवार में निकटता रही है। पुष्पा भारती ने अमिताभ बच्चन के संघर्ष और सफलता को बहुत करीब से देखा है। उनके इस पुस्तक की साहित्य जगत को उत्सुकता से प्रतीक्षा है। हिंदी फिल्मों से जुड़े एक और व्यक्तित्व पर पुस्तक इस वर्ष प्रकाशित होगी। गीतकार, पटकथा लेखक और निर्देशक गुलजार के जीवन पर यतीन्द्र मिश्र की बहुप्रतीक्षित पुस्तक का प्रकाशन भी वाणी प्रकाशन से ही होगा। यतीन्द्र मिश्र ने हिंदी में पुस्तक लेखन की एक शैली विकसित की है जिसमें वो किसी प्रसिद्ध व्यक्ति से लंब समय तक बातचीत रिकार्ड करते हैं फिर उसके आधार पर पुस्तक लिखते हैं। गुलजार से भी यतीन्द्र पिछले 15 साल से उनके जीवन और फिल्मों पर बातचीत रिकार्ड कर रहे थे। पिछले दो साल से वो इसको पुस्तक का स्वरूप देने में लगे थे। अब इस वर्ष उसका प्रकाशन होता दिख रहा है। यतीन्द्र मिश्र के मुताबिक इस पुस्तक में गुलजार और उनकी कला के बारे में, उनके कवि रूप के बारे में पाठकों को कई नई जानकारियां मिलेंगी। गुलजार ने जो फिल्में बनाई हैं या जो गीत लिखे हैं उसमें उन्होंने अनेक प्रयोग किए हैं। यतीन्द्र ने उन प्रयोगों को अपनी इस पुस्तक में संजोया है।
इक्कसवीं शताब्दी के आरंभ में हिंदी में कई महत्वपूर्ण उपन्यास प्रकाशित हुए थे। इसमें मैत्रेयी पुष्पा का अल्मा कबूतरी, चित्रा मुद्गल का आवां, असगर वजाहत का कैसी आगी लगाई आदि प्रमुख हैं। उसके बाद भी उपन्यासों का प्रकाशन होता रहा लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उपन्यास लेखन कम हुआ। नई वाली हिंदी के सत्य व्यास ने अपने उपन्यासों से हिंदी साहित्य जगत में एक सार्थक हस्तक्षेप किया। लेकिन लंबे समय तक याद रखे जानेवाले उपन्यासों की कमी को आलोचक लगातार रेखांकित करते रहे। इस वर्ष कई महत्वपूर्ण उपन्यास आनेवाले हैं। एक तो चित्रा मुदगल का उपन्यास नकटौरा जो सामयिक प्रकाशन से प्रकाश्य है। लड़के के विवाह के लिए जब घर के पुरुष बारात चले जाते थे तो उस रात को घर की स्त्रियां नकटौरा आयोजित करती थीं। इसमें पास पड़ोस की स्त्रियां भी शामिल होती थीं। इसमें स्त्रियां एक तरह से स्वांग रचाती थीं और अपने मन की बातें किया करती थीं। कुछ महिलाएं, पुरुष का वेश बनाकर संवाद किया करती थीं। इसमें स्त्रियां उन प्रसंगों की चर्चा भी करती थीं जो आमतौर पर वो नहीं करती थीं। गाली से लेकर स्त्री पुरुष संबंध भी नकटौरा का विषय हुआ करती थी। नकटौरा में सिर्फ महिलाएं ही हुआ करती थीं। परंपरा ये थी कि जब सारे पुरुष बारात चले जाते थे तो नकटौरा के बहाने महिलाएं सारी रात जागती थीं ताकि किसी प्रकार की चौरी आदि की घटनाएं न हों। कुछ सालों पहले तक ये बेहद चर्चित परंपरा थी। चित्रा मुदगल के उपन्यास के नाम से ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने इस पंरपरा को ही केंद्र में रखकर लिखा है। इस उपन्यास के कवर पर लिखा है कि हमारा समाज जैसा दिखाई पड़ता है वैसा है नहीं। वह अपने तमाम दुर्गुणों , विकृतियों, विडंबनाओं और विद्रूपताओं के बावजूद मनुष्यता के उच्चतम मूल्यों की परंपरा को पुरस्कृत करनेवाली विरासत का उत्तराधिकारी भी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि चित्रा मुदगल ने नकटौरा के बहाने अपने विरासत में से सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत को खोजकर पाठकों के लिए पेश किया होगा।
चित्रा मुदगल के अलावा राजकमल प्रकाशन समूह से ह्रषिकेश सुलभ का एक उपन्यास दातापीर भी इस वर्ष प्रकाशित होगा। इस उपन्यास में सुलभ ने कब्रिस्तान में काम करनेवालों को केंद्र में रखा है। उस उपन्यास में पटना शहर के पुराने इलाकों की भी कहानी साथ चलती रहती है। लंबे समय तक कहानी और नाटक लिखने वाले सुलभ का ये दूसरा उपन्यास है। रत्नेश्वर ने भी एक उपन्यास त्रयी लिखी है जिसका नाम है महायुग। इसका पहला खंड है 32000 साल पहले, दूसरा खंड होगा हिमयुग में प्रेम और तीसरा खंड होगा प्रार्थना का आरंभ। इसका प्रकाशन भी इस वर्ष संभव है। उषाकिरण खान हिंदी और मैथिली की ऐसी लेखिका हैं जो अपनी लेखनी के माध्यम से लगातार युवा लेखकों को टक्कर देती रहती हैं। रचनाकर्म में वो कई युवा लेखकों और लेखिकाओं से अधिक सक्रिय हैं। उषाकिरण खान का मैथिली में एक बहुत चर्चित उपन्यास है पोखरि रजोखरि। इस वर्ष सामयिक प्रकाशन से उसका हिंदी अनुवाद प्रकाशित होने जा रहा है जिसका नाम है कथा रजोखर। मैथिली से इस उपन्यास का हिंदी में अनुवाद मीना झा ने किया है। रजोखर मिथिला का एक बड़ा जल स्त्रोत है जिसके माध्यम से मिथिला की सत्तर साल की दशा-दुर्शा की कथा कही गई है। पुस्तक के कवर पर ये बताया गया है कि उषाकिरण खान ने कथा रजोखर में स्वतंत्रता आंदोलन, नेहरू-गांधी के स्वप्न, चरखा, खादी ग्रामोद्योग का गठन और उसके विघटनकारी तत्व, स्वातंत्र्योत्तर मिथिला के नवनिर्माण की सरकारी योजनाएं और उसका परिणाम, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद स्वार्थ की राजनीति, राजनीति का अपराधीकरण, छूआछूत, विधवा विवाह और पलायन जैसी समस्याओं पर सवाल उठाया है।
एक और महत्वपूर्ण अनुवाद पुस्तक का प्रकाशन प्रभात प्रकाशन से होने जा रहा है। इस पुस्तक का नाम है छत्रपति शिवाजी महाराज। अंग्रेजी में ये पुस्तक शिवाजी द ग्रैंड रेबल के नाम से इस प्रकाशित है जिसके लेखक हैं डेनिस किनकेड। एक और रोचक पुस्तक प्रभात प्रकाशन से आ रही है रामायण से स्टार्टअप सूत्र, इसको लिखा है प्राची गर्ग ने। इसी कड़ी में एक और पुस्तक आएगी वेदांत व जीवन प्रबंधन जिसको कलमबद्ध किया है विक्रांत सिंह तोमर ने। पौराणिक ग्रंथों से प्रबंधन के सूत्र निकालकर पाठकों के सामने पेश करना एक श्रमसाध्य कार्य है। लेकिन ये हिंदी साहित्य के क्षितिज का विस्तार करनेवाली पुस्तकें हैं।
हिंदी के अलावा अगर हम अंग्रेजी की बात करें तो कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद की आत्मकथा भी इस वर्ष प्रकाशित होनेवाली है। इस पुस्तक की प्रतीक्षा राजनीति से जुड़े लोग उत्सुकता से कर रहे हैं। लंबे समय तक गांधी परिवार के साथ रहे गुलाम नबी आजाद का परिवार से मोहभंग हुआ। सब लोगों की निगाह इस पर टिकी है कि अपनी इस पुस्तक में वो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के बारे में क्या लिखते हैं। इस पुस्तक का प्रकाशन रूपा पब्लिकेशंस से होनेवाला है। दिल्ली विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के सौवें वर्ष में प्रवेश करनेवाला है। समाचारों के मुताबिक इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी के संपादन में दिल्ली विश्वविद्यालय पर केंद्रित एक पुस्तक प्रकाशित होगी जिसमें विश्विद्यालय के पूर्व छात्र अपने अनुभवों को लिखेंगे। अंग्रेजी में कई अन्य महत्वपूर्ण पुस्तकों के प्रकाशन की खबर है, रामविलास पासवान और जार्ज फर्नांडिस की जीवनी के अलावा पत्रकार नीरजा चौधरी के राजनीतिक संस्मरणों की किताब भी इस वर्ष आएगी। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि वर्ष 2022 रचनात्मकता से भरपूर होगा।
1 comment:
अच्छा लिखा है आपने. इन किताबों का इंतज़ार रहेगा.
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