वर्ष 2021 बीतने को आया। कुछ दिनों बाद ये वर्ष इतिहास हो जाएगा। इस वर्ष का उत्तरार्ध कोरोना महामारी के भय में गुजरा। चारो ओर कोरोना संक्रमण की बातें हो रही थीं। संक्रमण के फैलने की आशंका से जो भय का वातावरण बना था उसने सिनेमा जगत को भी प्रभावित किया। सिनेमा हाल लंबे समय तक बंद रहे, नई फिल्मों के निर्माण पर असर पड़ा, फिल्म जगत के सामने ओटीटी (ओवर द टाप) प्लेटफार्म चुनौती बनकर खड़े हो गए। सिनेमा हाल की व्यवस्था पर ऐसा ही बड़ा असर तब पड़ा था जब 1980 के बाद के वर्षों में देश में वीसीआर और कैसेट पर फिल्में देखने का चलन बढ़ा था। 2020 में फिल्म जगत का जो परिदृश्य बदलने लगा था वो बदलाव 2021 में और गाढ़ा हुआ। वीसीआर के दौर में तकनीक की वजह से सिनेमा दर्शकों का स्वभाव बदला था और अब भय की वजह से फिल्में देखने का माध्यम बदला। सिनेमा से जुड़े लोग अब भी दर्शकों के सिनेमा हाल में वापसी को लेकर आशंकित हैं। फिल्म निर्माण, वितरण और उसके अर्थशास्त्र को लेकर तमाम तरह की आशंकाओं के बीच वर्ष 2021 में फिल्म से जुड़ी एक विधा में उम्मीद की किरण नजर आई। वर्ष 2021 में फिल्मों से जुड़े लोगों की आत्मकथाएं और जीवनियां प्रकाशित हुई। इनमें से कई पुस्तकें काफी चर्चित रही और बेहद लोकप्रिय भी हुईं। आत्मकथा या जीवनी या संस्मरण ऐसी विधा है जिसके ज्यादातर लेखक अपने को कसौटी पर नहीं कसते या अपने से जुड़े अप्रिय प्रसंगों को छोड़ देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि फिल्मी आत्मकथाएं या जीवनियां उबाऊ और बोझिल हो जाती हैं। 2021 में इस विधा की कई पुस्तकें ऐसी आईं जिनमें बहुत हद तक लेखक ने खुद को कसौटी पर कसा है और अपने से जुड़े अप्रिय प्रसंगों को भी लिखा है। ज्यादातर लेखकों ने ईमानदारी बरती।
सबसे पहले चर्चा करना चाहूंगा कबीर बेदी की आत्मकथा स्टोरीज आई मस्ट टेल, द इमोशनल लाइफ आफ एन एक्टर की। कबीर बेदी ने इसमें काफी हद तक ईमानदारी से अपनी जिंदगी से जुड़ी बातें लिखी हैं। कबीर बेदी अपने बचपन की यादों को भी इस पुस्तक में लेकर आते हैं। 1970 के बाद के वर्षों में मुंबई में फिल्मों से जुड़े कई युवाओं का एक ‘बोहेमियन जूहू गैंग’ होता था, जिसमें कबीर के अलावा शेखर कपूर, डैनी, महेश भट्ट, परवीन बाबी और शबाना आजमी आदि हुआ करते थे। कबीर बेदी ने उन वर्षों को रोचक अंदाज में याद किया है। इस पुस्तक में अपने कई संबंधों के बारे में भी बेबाकी से लिखा है। अपने पहले प्यार और पत्नी प्रतिमा बेदी के साथ साथ परवीन बाबी से अपने अफेयर पर भी लिखा है। हलांकि प्रतिमा बेदी ने अपनी पुस्तक टाइमपास, द मेमोरीज आफ प्रतिमा बेदी में इन प्रसंगों को अलग तरीके से लिखा है। कबीर ने परवीन बाबी की मानसिक स्थिति पर भी तटस्थ होकर लिखा है। इसमें उन्होंने परवीन बाबी के पत्रों का उल्लेख भी किया है। कबीर बेदी जब अपने युवा पुत्र की आत्महत्या के बारे में लिखते हैं तो पाठक उनकी संवेदना के साथ खुद को एकाकार कर लेता है। अपनी पीड़ा और संत्रास को उन्होंने कोमल गद्य के सहारे अपनी पुस्तक में आगे बढ़ाया है। कबीर बेदी के माता पिता स्वाधीनता सेनानी थी और उनका चिंतन गहरा था। अपनी इस पुस्तक में कबीर बेदी ने कई जगहों पर अपने अभिभावकों की सीख को भी उद्धृत किया है। बेदी धर्म को लेकर भी अपनी राय पाटकों के सामने रखते हैं। एक अध्याय में तो गुरू नानक, कबीर और सूफी संतों के हवाले से कई दार्शनिक बातें भी कहते हैं। इसमें वो गीता और बुद्ध के ज्ञान को भी अपने तरीके से पाठकों के सामने रखते हैं। अगर समग्रता में देखें तो कबीर बेदी की ये पुस्तक फिल्म से जुड़े किस्से तो बताती है लेकिन साथ ही इसमें एक पूरा कालखंड भी जीवंत होता है।
फिल्मों से जुड़ी एक और शख्सियत नीना गुप्ता की आत्मकथा ‘सच कहूं तो’ भी इस वर्ष प्रकाशित हुई। ऐसा बहुत कम होता है कि कोई पुस्तक अंग्रेजी में प्रकाशित हो और उसका शीर्षक हिंदी के शब्दों का हो। नीना गुप्ता ने ये किया। नीना गुप्ता की आत्मकथा से पाठकों को ये उम्मीद रही होगी कि इसमें उनकी और विवियन रिचर्ड्स की लव स्टोरी का किस्सा होगा। इस पुस्तक में नीना ने रिचर्ड्स से अपने संबंधों के बारे में नहीं बताया लेकिन उनको पाठकों की अपेक्षा का अंदाज रहा होगा। उन्होंने इस बारे में लिखा कि वो उन स्थितियों को अपने और रिचर्ड्स की बेटी मसाबा गुप्ता की खातिर दोहराना नहीं चाहती हैं। वो नहीं चाहती हैं कि एक बार फिर से उन स्थितियों को लेकर उनकी बेटी के सामने अप्रिय स्थिति उत्पन्न हो। पर उन्होंने मातृत्व के अपने अनुभवों को और एक अनव्याही मां को लेकर समाज की प्रतिक्रियाओं के बारे में लिखा है। अपनी जिंदगी के उतार चढ़ाव को भी उन्होंने स्वीकार किया है। इस पुस्तक में एक बात जो रेखांकित करने योग्य है वो ये कि नीना ने अपने आसपास के लोगों का नाम लेकर उनको शर्मिंदा नहीं किया। संकेतों में बात करके निकल गई हैं। जब नीना गुप्ता अपनी फिल्म बाजार सीताराम बना रही थीं तो वो उन्होंने श्याम बेनेगल से बात की थी। बेनेगल ने उनको सलाह दी थी कि हमेशा इस बात को याद रखना कि किसी भी कहानी का एक निश्चित आरंभ हो, उसका सुगठित मध्य भाग हो और उसका तार्किक अंत हो। अगर किसी कहानी में ये तीनों चीजें हैं तो वो कहानी कभी पिट नहीं सकती। ये सीख उनके जीवन में बहुत काम आई। नीना गुप्ता ने इसमें अपने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के दिनों को बेहद संजीदगी से याद किया है। इस पुस्तक में भी छिपाया कम बताया ज्यादा गया है।
तीसरी पुस्तक जिसकी चर्चा की जानी चाहिए वो है अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा जोनस के संस्मरणों की किताब, अनफिनिश्ड । इस पुस्तक को लेकर इंटरनेट मीडिया पर जबरदस्त उत्सुकता का माहौल बना था। आनलाइन बुक स्टोर में अपने प्रकाशन के कई महीनों बाद तक ये पुस्तक लोकप्रियता के शीर्ष पर बनी रही थी। इस पुस्तक की शुरुआत उसके दस साल के भाई के अपनी बहन को मिस इंडिया प्रतियोगिता में भेजने के प्रसंग से होती है। प्रियंका के घर में दो बेडरूम थे। एक उसका था और एक माता पिता का। भाई को एक छोटे से कमरे में जगह दी गई थी और दस साल का बच्चा अपना बड़ा और अच्छा बेडरूम चाहता था। इसलिए उसने अपनी बहन को मिस इंडिया में भेजने की योजना बनाई ताकि वो उसके बेडरूम में रह सके। प्रियंका ने अमेरिकी फिल्मों में काम करने के लिए जो संघर्ष किया वो भी लिखा है। हिंदी फिल्मों की दुनिया से जुड़े प्रसंग भी हैं। दो अन्य पुस्तकों का उल्लेख भी आवश्यक है। एक है संजीव कुमार की आधिकारिक जीवनी, एन एक्टर्स एक्टर। इसको हनीफ जरीवाला और सुमंत बत्रा ने लिखा है। संजीव कुमार पर कम लिखा गया और ये पुस्तक उस कमी को पूरा करती है। एक और पुस्तक अभी हाल ही में प्रकाशित हुई है, राज कपूर द मास्टर एट वर्क। ये पुस्तक राहुल रवैल और प्रियंका शर्मा की है। राहुल रवैल लंबे समय तक राज कपूर के सहायक रहे हैं, लिहाजा उन्होंने राज कपूर से जुड़े कई दिलचस्प प्रसंग लिखे हैं, कुछ व्यक्तिगत संसमरणों को भी जगह मिली है। महामारी की आशंका के बीच फिल्मों से जुड़े इन व्यक्तित्वों ने पाठकों के सामने स्तरीय पठनीय सामग्री पेश की है। आनलाइन बुक स्टोर में लोकप्रियता की सूची में इन पुस्तकों की रैकुंक देखकर इस बात का संकेत मिलता है कि पाठकों ने भी इन आत्मकथाओं और जीवनियों को पसंद किया है।
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