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Saturday, July 9, 2022

ओटीटी प्लेटफार्म्स की चुनौतियां


कोरोना काल में जब लाकडाउन की वजह से सिनेमा हाल बंद हुए और लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे थे, ऐसे में ओवर द टाप (ओटीटी) प्लेटफार्म्स काफी लोकप्रिय हुए थे। घर बैठे उनके सामने मनोरंजन का एक ऐसा विकल्प था जहां देश विदेश की असंख्य सामग्री उपलब्ध थी। सिर्फ महानगरों में ही नहीं बल्कि छोटे शहरों में भी इन ओटीटी प्लेटफार्म को डाउनलोड करके लोगों ने मनोरंजन के इस नए विकल्प को अपनाया था। कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान इन प्लेटफार्म्स पर बड़े सितारों की फिल्में भी रिलीज हुईंन थीं। उस समय दुनिया में ये आकलन किया गया था कि भारत ओटीटी प्लेटफार्म्स का या वीडियो आन डिमांड स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म्स का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ बाजार है। अनुमान ये भी लगाया गया था कि इस वर्ष के अंत तक देश में स्मार्ट फोन या इंटरनेट की सुविधा वाले मोबाइल फोन के उपभोक्ताओं की संख्या 80 करोड़ पहुंच जाएगी। इस संख्या को ध्यान में रखते हुए ओटीटी प्लेटफार्म्स ने भारतीय बाजार को लेकर अपनी रणनीति बनाई और यहां निवेश किया। वैश्विक स्तर पर भी कोरोना के दौर में इस माध्यम को दर्शकों ने अपनाया था। आपदा में मिले इस अवसर की वजह से इन प्लेटफार्म्स को चलानेवाली कंपनियों को दो साल में काफी मुनाफा हुआ। कोरोना का भय कम होने की वजह से अब इन कंपनियों के सामने अपनी उस सफलता को बनाए रखने की चुनौती है। चुनौती तो ग्राहकों की संख्या को बरकरार रखने की भी है। 

कनाडा की मार्केटिंग विशेषज्ञ रेबेका आल्टर ने अपने एक लेख में लोकप्रिय ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स की वैश्विक चुनौतियों के बारे में लिखा है। रेबेका के मुताबिक इस वर्ष की पहली तिमाही में नेटफ्लिक्स ने दो लाख ग्राहक खो दिए और विशेषज्ञों का अनुमान है कि दूसरी तिमाही में करीब बीस लाख ग्राहक इस प्लेटफार्म को छोड़ सकते हैं। रेबेका इसके लिए यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस में अपनी सेवाएं बंद करने के नेटफ्लिक्स के फैसले को तो जिम्मेदार मानती ही है, साथ ही ग्राहक शुल्क में बढ़ोतरी को भी एक कारण माना है। वैश्विक बाजार की बात छोड़ भी दें तो अपने देश में भी नेटफ्लिक्स की सेवाएं अन्य सभी ओटीटी प्लेटफार्म्स से महंगी हैं। नेटफ्लिक्स मोबाइल पर देखने की सुविधा देने के एवज में प्रतिमाह 149 रु लेता है जो कि एक वर्ष का 1788 रु बनता है। अन्य लोकप्रिय ओटीटी प्लेटफार्म वार्षिक शुल्क के तौर पर हजार रुपए तक लेती हैं। अमेजन प्राइम, डिजनी हाटस्टार और सोनी लिव आदि का वार्षिक शुल्क एक हजार रु से कम ही है। लेकिन इन सभी प्लेटफार्म के सामने सबसे बड़ी चुनौती है अपने ग्राहकों को जोड़े रखने की। कोरोना महामारी के दौरान जितने ग्राहक जुड़े थे उनको बनाए रखना इनके लिए बेहद कठिन होता जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 2020 के अप्रैल से लेकर जुलाई तक विभिन्न ओटीटी प्लेटफार्म्स से करीब तीन करोड़ नए ग्राहक जुड़े थे। जो अब लगातार कम होते जा रहे हैं। इन प्लेटफार्म्स को नजदीक से जाननेवाले और इनकी गतिविधियों पर नजर रखनेवालों का अनुमान है कि कोरोना काल में जितने ग्राहक इन प्लेटफार्म्स से जुड़े थे उनमें से करीब आधे ग्राहकों ने सब्सक्रिप्शन का नवीनीकरण नहीं करवाया। वैश्विक स्तर पर भी लगभग यही स्थिति है। सबसे बड़ा कारण कोरोना का भय खत्म होने लगा है और सिनेमा हाल खुल गए हैं। 

ओटीटी प्लेटफार्म्स से दर्शक क्यों जुड़े रहें, अगर इसका उत्तर ढूंढे तो सबसे पहले तो इन प्लेटफार्म्स पर उपलब्ध मनोरंजन सामग्री की गुणवत्ता की बात होगी। दूसरी वजह इनको देखने का शुल्क। इसके अलावा हमारे देश में इन प्लेटफार्म्स को विवादों के कारण भी काफी फायदा मिला था। ओटीटी प्लेटफार्म पर उपलब्ध कंटेंट को लेकर जब विवाद होता है और उसकी चर्चा होती है तो इन प्लेटफार्म्स को नए ग्राहक मिलते हैं। लोग उस सामग्री को देखना चाहते हैं। ग्राहकों की यही चाहत उनसे इन प्लेटफार्म्स को डाउनलोड करवाती है। अब अगर इन प्लेटफार्म्स पर उपलब्ध मनोरंजन सामग्री का आकलन करते हैं तो पाते हैं कि वहां बहुत अधिक दुहराव होने लगा है। पहले कुछ सामग्री चौंकाती थी और दर्शकों को अपने साथ रोकती थी। अब लगातार एक ही तरह की सामग्री उपलब्ध होने लगी तो दर्शकों के लिए वो सामान्य बात हो गई। नेटफ्लकिस पर पहले ‘लस्ट स्टोरीज’ और ‘सेक्रेड गेम्स’ जैसी सीरीज आई जिसमें नग्नता और भयंकर हिंसा थी। इन प्लेटफार्म्स पर किसी प्रकार की प्रमाणन की आवश्यकता नहीं है इस वजह वो सेंसर बोर्ड की कैंची से मुक्त होकर खुले आम नग्नता और यौनिकता परोस रहे थे। हिंसा के नाम पर शरीर के अंगों को इस तरह से काटकर दिखा रहे थे कि कुछ दर्शकों को झटका लगता था। भाषा के स्तर भी सारी मर्यादा तोड़कर भरपूर गाली गलौच भरे संवाद भी दर्शकों को चौंका रहे थे। इन सबसे होनेवाली चर्चा से ग्राहक बढ़ रहे थे। धीरे धीर इनकी नवीनता खत्म हो गई।  

इसके अलावा भारतीय संस्कृति को लेकर विवादास्पद टिप्पणियां या दृश्य दिखाने पर भी जमकर विवाद हुए। लैला जैसी सीरीज भी आई जिसने हिंदू मानस को झकझोरा था। नेटफ्लिक्स पर ही एक सीरीज आई थी ‘द सूटेबल बाय’। इसमें मंदिर प्रांगण में चुंबन दृश्य पर जमकर बवाल हुआ था। केस मुकदमे भी हुए। प्लटफैर्म को अपेक्षित प्रचार मिला और परिणामस्वरूप उसके ग्राहक भी बढ़े। इसी तरह से अगर देखें तो सभी ओटीटी प्लेटफार्म ने अलग अलग तरीके से दर्शकों की जेब से पैसे निकलवाने का उपक्रम किया। जो ओटीटी प्लेटफार्म मुफ्त में कंटेंट दिखा रहा था उसने वेब सीरीज के बीच में विज्ञापन दिखाना आरंभ कर दिया। इतनी बार विज्ञापन आता है कि दर्शक परेशान हो जाते हैं। तभी स्क्रीन पर एक फ्लैश आता है कि अगर आप बगैर विज्ञापन या बिना अवरोध के वेब सीरीज देखना चाहते हैं तो अमुक राशि देकर वार्षिक ग्राहक बनें। इसके अलावा कई प्लेटफार्म्स ने तय ग्राहक शुल्क पर एक ही डिवाइस पर देखने की सुविधा दी। मोबाइल की अलग दर और मोबाइल और टीवी पर देखने के लिए अलग दर। इन सब झंझटों से भी ग्राहक इनसे दूर हुए। एक और बात जिसको रेखांकित करना आवश्यक है वो ये कि इन प्लेटफार्म्स ने हिंदी फिल्मों के बड़े सितारों को भारी भरकम रकम देकर उके साथ कंटेंट के लिए समझौता किया। सामग्री अर्जित करने के लिए निवेश किया गया लेकिन उसको अपेक्षित दर्शक नहीं मिले। डिजनी हाटस्टार पर अजय देवगन की एक वेब सीरीज आई जिसका नाम था रुद्रा, द एज आप डार्कनेस। अजय देवगन की वजह से प्लेटफार्म ने इसपर भारी भरकम रकम खर्च की लेकिन ये सीरीज अपेक्षित सफलता अर्जित नहीं कर सकी। जानकारों का मानना है कि इससे भारी नुकसान हुआ। इसी तरह कुछ फिल्में भी खरीदी गईं जिनको सफलता नहीं मिली। 

इन ओटीटी प्लेटफार्म्स के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है वो है लगातार कटेंट में इस तरह का बदलाव जिससे दर्शकों को अपनी ओर खींचने और फिर उनको रोके रखने में सफलता मिल सके। विवाद की गुंजाइश अब लगभग खत्म सी हो गई है क्योंकि सभी निर्माता अब इसकी परिणति से बचना चाहते हैं। वो सतर्क होकर सीरीज बनाने लगे हैं। तीसरे अगर भारतीय बाजार में उनको बने रहना है और लंबे समय तक मुनाफे का कारोबार करना है तो ये आवश्यक है कि वो अपने शुल्क निर्धारण पर काम करें। भारत में इंटरनेट की लोकप्रियता की एक वजह उसका सस्ता होना भी है। अगर ये सस्ते पैकेज पर अपना कंटेंट उपलब्ध करवाने के बारे में सोच सकते हैं तो इनकी ग्राहक संख्या बढ़ सकती है। कस्बों और गांवों तक पहुंचना है तो उनको अपना ग्राहक शुल्क कम रखना ही होगा। आधार बढ़ाकर भी मुनाफा बढ़ाया जा सकता है।  


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