नववर्ष का आरंभ हो गया है। हिंदी फिल्म जगत नववर्ष को उम्मीदों से देख रहा है। इन उम्मीदों की वजह भी है। बीते वर्ष 2022 में हिंदी फिल्में दर्शकों की तलाश कर रही थीं। निर्माता और कलाकार सफल फिल्मों की प्रतीक्षा कर रहे थे। हिंदी फिल्मों में सफलता की गारंटी माने जाने वाले शाह रुख खान, आमिर खान और सलमान खान की फिल्मों को अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है। सिनेमा की भाषा में अगर कहें तो शाह रुख खान की आखिरी ब्लाकबस्टर फिल्म 2013 में प्रदर्शित ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ थी। उसके अगले साल सुपर हिट फिल्म ‘हैप्पी न्यू ईयर’ रही लेकिन उसके बाद उनकी कोई फिल्म सुपरहिट या ब्लाकबस्टर नहीं रही। 2017 और 2018 में आई उनकी फिल्में ‘जब हैरी मेट सेजल’ और ‘जीरो’ फ्लाप हो गई। 2018 के बाद से शाह रुख की कोई फिल्म नहीं आई।चार वर्षों के बाद इस वर्ष उनकी फिल्म ‘पठान’ आ रही है जो लगातार विवाद में घिरी हुई है। सिर्फ शाह रुख खान ही नहीं बल्कि आमिर खान की फिल्में भी दर्शकों को पसंद नहीं आ रही हैं। उनकी 2016 की फिल्म ‘दंगल’ के बाद कोई भी फिल्म ब्लाकबस्टर नहीं हो पाई। 2018 की ‘ठग्स आफ हिंदोस्तान बुरी तरह से पिटी। उनकी भी फिल्में नहीं आ रही थीं। चार साल बाद पिछले वर्ष ‘लाल सिंह चडढा’ सिनेमाघरों में पहुंची तो उसको दर्शकों ने बुरी तरह से नकार दिया। तीसरे खान सलमान के बारे में कहा जाता था कि उनका अपना एक अलग ही दर्शक वर्ग है जो उनकी फिल्मों की प्रतीक्षा करता है लेकिन आंकड़े कुछ अलग ही कहानी कहते हैं। 2017 में ही उनकी भी ब्लाकबस्टर फिल्म आई थी ‘टाइगर जिंदा है’। उसके बाद से सलमान खान भी सुपर हिट फिल्म के लिए तरस रहे हैं। रेस-3, भारत, दबंग-3 आदि फिल्में भी औसत कारोबार ही कर पाईं। इन आंकड़ों को देख कर तो लगता है कि हिंदी फिल्मों से इन अभिनेताओं के दौर समाप्त होने के संकेत मिलने लगे हैं। सलमान खान की फिल्म राधे, योर मोस्ट वांटेंड भाई की कमाई के आंकड़ों को लेकर स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि ये ओवर द टाप प्लेटफार्म (ओटीटी) पर रिलीज हुई थी। इसके अलावा अक्षय कुमार की भी एक के बाद एक लगातार चार फिल्में फ्लाप हुईं।
शाह रुख, आमिर और सलमान की फिल्मों के नहीं चलने से हिंदी फिल्मों को लेकर एक निराशा का माहौल बनाया गया। कहा जाने लगा कि हिंदी फिल्मों की कहानियां अच्छी नहीं होती हैं, ट्रीटमेंट अच्छा नहीं होता है इसलिए दर्शक उनको नकार रहे हैं। नकार और निराशा के इस बनाए गए वातावरण में एक युवा अभिनेता और एक निर्देशक ने अपने हुनर और कौशल से उम्मीद की लौ जलाए रखी। इस युवा अभिनेता का नाम है कार्तिक आर्यन। कार्तिक आर्यन की फिल्म भूल भुलैया-2 ने जबरदस्त सफलता हासिल की। दर्शकों ने कार्तिक आर्यन के अभिनय को खूब पसंद किया। पिछले वर्ष मई में प्रदर्शित इस फिल्म ने दुनियाभऱ में अच्छा कारोबार किया। हिंदी फिल्मों के आंकड़ों पर नजर रखनेवालों का अनुमान है कि इस फिल्म ने वैश्विक स्तर पर करीब 266 करोड़ का कारोबार किया, जबकि इस फिल्म की लागत करीब 65 करोड़ रुपए थी। इस तरह से अगर हम देखें तो विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। कश्मीरी हिंदुओं पर हुए अत्याचार और उनके पलायन को केंद्र में रखकर बनाई गई फिल्म की लागत करीब 25-30 करोड़ रुपए बताई जाती है। वैश्विक स्तर पर इस फिल्म ने करीब 341 करोड़ रुपए का बिजनेस किया। इस फिल्म की मुख्य भूमिका में अनुपम खेर हैं। तीसरी एक और सफल फिल्म रही अजय देवगन की दृश्यम- 2। उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस फिल्म की लागत 50 करोड़ रुपए है जबकि अबतक इस फिल्म ने वैश्विक स्तर पर करीब 330 करोड़ रुपए की कमाई कर ली है। उपरोक्त तीनों फिल्में ब्लाकबस्टर की श्रेणी में रखी जा सकती हैं। अनुपम खेर, कार्तिक आर्यन और अजय देवगन, इन तीन अभिनेताओं ने तीनों खानों की कमी महसूस नहीं होने दी। हलांकि रणबीर कपूर की फिल्म ब्रह्मास्त्र के भी अच्छा कारोबार करने की बात सामने आई थी। लेकिन इस फिल्म के काराबोर के आंकड़ों पर लगातर प्रश्न उठे। इस कारण उसके बारे में ठोस रूप से कुछ कह पाना संभव नहीं है।
2023 में हिंदी फिल्मों का स्वरूप कैसा होगा? क्या हिंदी फिल्मों के दर्शक नए कलाकारों को पसंद करेंगे? क्या हिंदी फिल्मों के उन कलाकारो को दर्शक पसंद करेगी जो राजनीतिक बयान देकर सुर्खियां बटोरने की फिराक में रहते हैं? इस बारे में विचार करना होगा। इस दौर में आमतौर पर ये देखा गया है कि हिंदी फिल्मों के दर्शकों को विशुद्ध मनोरंजन चाहिए। उनका पसंदीदा अभिनेता या अभिनेत्री या फिल्म का टीजर भी अगर उनको किसी प्रकार की राजनीति से प्रेरित नजर आता है तो वो कन्नी काट जाते हैं। फिल्म छपाक के पहले दीपिका पादुकोण दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों को मौन समर्थन देने चली गई थी। उनकी फिल्म छपाक बुरी तरह से फ्लाप हो गई। इसके अलावा एक और प्रवृत्ति देखने को मिली। जब भी हिंदी फिल्मों के निर्माताओं ने ऐतिहासिक या पौराणिक कहानियों पर फिल्में बनाईं और वो स्थापित मान्यताओं से अलग गए तो दर्शकों ने फिल्म को को नकार दिया। फिल्म आदिपुरुष के साथ यही हुआ। जबकि इसका तो सिर्फ टीजर रिलीज हुआ था। ये फिल्म इस महीने ही प्रदर्शित होनेवाली थी लेकिन उसका प्रदर्शन जून तक के लिए टाल दिया गया। निर्माता-निर्देशक ने इस फिल्म में प्रभु श्रीराम के चरित्र को स्थापित मान्यताओं के विपरीत जाकर उनको आक्रामक दिखाने का प्रयास किया था। जिसका विरोध हुआ। आसन्न खतरे को भांपते हुए फिल्मकार ने रिलीज की तिथि आगे बढ़ा दी। फिल्म में बदलाव आदि की बातें भी सामने आईं हैं। फिल्म के प्रदर्शित होने पर ही वास्तविक स्थिति का पता चलेगी।
इन दिनों बहुधा ये कहा जाता है कि अच्छी हिंदी फिल्में नहीं बन रही हैं। इस कारण ही दर्शक दूर हो रहे हैं। हिंदी फिल्मों के इतिहास में हर दौर में खराब और अच्छी दोनों तरह की फिल्में बनती रही हैं। क्या दादा कोंडके अच्छी फिल्में बनाते थे। क्या 1980 के बाद के दस वर्षों में बनी सभी फिल्में अच्छी फिल्मों की श्रेणी में रखी जा सकती हैं। उत्तर है नहीं। फिल्मों की सफलता और असफलता भी साथ साथ चलती रही है। 2023 में फिल्म निर्माताओं को हिंदी फिल्मों की नई प्रतिभाओं के साथ आगे बढ़ना होगा। दर्शक लंबे समय तक चंद अभिनेताओं को और उनकी अदाकारी को देखकर बोर हो चुके हैं। शाह रुख खान, आमिर खान और सलमान खान की काफी उम्र हो गई है। उनको अपनी उम्र का ध्यान रखते हुए उसी तरह की भमिकाओं की तलाश करनी चाहिए। अब ये लोग अपने से आधी उम्र की नायिकाओं के साथ रोमांस करते हुए दर्शकों को अच्छे नहीं लगते हैं। अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना का उदाहरण इनके सामने है। अमिताभ बच्चन ने समय को भांपा और अपना ट्रैक बदल दिया। अबतक न केवल प्रासंगिक बने हुए हैं बल्कि उनकी अवस्था को ध्यान में रखकर भूमिकाएं भी लिखी जा रही हैं। राजेश खन्ना को ये समझने में देर हुई। वो अपनी अवस्था को समझ कर भी उसके अनुरूप कार्य नहीं कर पाए तो दर्शकों ने उनको नकार दिया। जब उन्होंने अवतार और सौतन जैसी फिल्मों में अभिनय किया तो उनको भी सफलता मिली। नए वर्ष में हिंदी फिल्मों के स्थापित नायकों या सुपरस्टार्स के सामने सबसे बड़ी चुनौती स्वयं के आकलन की है। जिसने भी खुद को आंक लिया वो सफल रहेगा और जो चूक गया वो हाशिए पर चला जाएगा।