आंधी फिल्म की महिला पात्र आरती देवी और उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच कई समानताएं तो थीं लेकिन जब ये फिल्म रिलीज हुई तो इसके प्रचार में अति उत्साह ने इसको और विवादित बना दिया। दक्षिण भारत के अखबारों में एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ जिसमें फिल्म की नायिका सुचित्रा सेन के फिल्मी गेटअप वाली तस्वीर प्रकाशित हुई और उसके नीचे लिखा था अपने प्रधानमंत्री को स्क्रीन पर देखें। दिल्ली के समाचार पत्रों में इस फिल्म का जो विज्ञापन प्रकाशित हुआ, उसमें लिखा था स्वाधीन भारत की एक दमदार महिला राजनेता की कहानी देखिए। इंदिरा गांधी तक बातें पहुंचने लगीं थीं। उन्होंने फिल्म नहीं देखी थी। उन्होंने अपने दो सहयोगियों को फिल्म देखकर रिपोर्ट देने को कहा कि क्या वो सिनेमा हाल में प्रदर्शन के लिए उचित है। दोनों ने फिल्म देखी और उसमें ऐसा कुछ भी नहीं पाया कि फिल्म को प्रतिबंधित किया जाए। उस समय के सूचना और प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल को भी फिल्म में कुछ गलत नहीं लगा था। लेकिन बताया जाता है कि अखबारों के विज्ञापन और फिर एक दृश्य में सुचित्रा सेन को सिगरेट पीते दिखाने की बात जब इंदिरा गांधी तक पहुंची तो उन्होंने तय कर लिया कि फिल्म को रोक दिया जाए। फिल्म प्रतिबंधित हो गई। कुछ ही सप्ताह पहले रिलीज की गई फिल्म प्रतिबंधित। फिल्म को फिर से सिनेमा हाल तक पहुंचने में ढाई वर्ष की प्रतीक्षा करनी पड़ी। इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में जब इंदिरा गांधी और उनकी पार्टी हारी तो इस फिल्म से प्रतिबंध हटा। मोरारजी देसाई की अगुवाई वाली सरकार ने इस फिल्म को दूरदर्शन पर भी दिखाया। एक बेहद खूबसूरत फिल्म राजनीति की भंट चढ़ी।
गुलजार ने जिस संवेदनशीलता के साथ इस फिल्म में प्रेम दृष्यों को फिल्माया है वो बेहद मर्यादित है। विवाह के पहले और विवाह के बाद के रोमांटिक दृष्यों को संजीव कुमार और सुचित्रा सेन ने अपने अभिनय से जीवंत कर दिया है। याद करिए इस फिल्म का गीत तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं में दोनों के मन की तड़प, मिलने की आकांक्षा लेकिन परिस्थितियां विपरीत। कश्मीर के अनंतनाग इलाके के मार्तंड मंदिर के खंडहरों के बीच फिल्माए इस गीत का लोकेशन, गाने के दौरान नायक नायिका की पोजिशनिंग इस तरह कि रखी गई जो कहानी को मजबूती प्रदान करता है और दर्शकों को दृष्य से जोड़ता है। लेकिन राजनीति के निर्मम हाथों एक खूबसूरत फिल्म विवादित तो बनी लेकिन आज भी उसकी चर्चा होना ये साबित करता है कि कला को राजनीति दबा नहीं सकती।
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