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Thursday, July 24, 2014

कथा शिल्पी को सलाम

सितंबर दो हजार बारह में जब मैं विश्व हिंदी सम्मेलन में शामिल होने जोहिनसबर्ग गया था तो वहां कई किताबों की दुकान पर जाने का मौका मिला था। जोहानिसबर्ग, सनसिटी, केपटाउन, क्रूगर नेशनल पार्क की किताब की चार दुकानों का मेरा अनुभव बताता है कि वहां जानेवाले विदेशी सैलानी नेल्सन मंडेला की आत्मकथा के अलावा नोबेल पुरस्कार से सम्मानित उपन्यासकार नादिन गार्डिमर की कृतियों के बारे में पूछताछ कर रहे थे । स्थनीय पाठकों के बीच भी नादिन गार्डिमर की लोकप्रियता काफी थी । सनसिटी में किताब की ऐसी ही एक दुकान पर मैंने किताबें खरीद रहे जेम्स नाम के एक शख्स से बातचीत शुरू की तो पता चला कि वो जोहानिसबर्ग के किसी कॉलेज में शिक्षक हैं । उनसे बातचीत में पता चला कि दक्षिण अफ्रीका के बौद्धिक जगत के साथ साथ वहां की आम जनता भी अपनी प्रिय लेखिका नादिन गार्डिमर को बेहद प्यार करती है । जेम्स से काफी देर तक नादिन गार्डिमर के बारे में बात होती रही । उन्होंने ही बताया था कि वो जोहानिसबर्ग के एक उपनगर में रहती हैं । जेम्स ने किसी से फोन लगाकर बात की तो पता चला कि नादिन गार्डिमर उस दौरान कहीं बाहर गई हुई थी, लिहाजा हमारा उनसे मिलना नहीं हो सका । जेम्स से लगभग आधे घंटे तक नादिन के बारे में बात होती रही । जेम्स से बातचीत में जो सेंस मुझे मिला वो ये कि नादिन गार्डिमर पर दक्षिण अफ्रीका की जनता इस वजह से जान झिड़कती है कि वो श्वेत होने के बावजूद अफ्रीका के स्थानीय अश्वेत नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए संघर्ष का हिस्सा रही है । औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ संघर्ष में एक ओर वो अपने लेखन से रंगभेद पर जमकर हमले कर रही थी तो दूसरी ओर नेल्सन मंडेला के कंधे से कंधा मिलाकर अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस की गतिविधियों में हिस्सा ले रही थी । उनके पहले उपन्यास द कंजरवेसनिस्ट में रंगभेद का बड़ा ही विद्रूप चेहरा सामने आया था । इसके बाद के उपन्यासों में भी नादिन गार्डिमर ने अफ्रीकी जनता की गुलामी और बेबसी को अपने लेखन के केंद्र में रखा था । रंगभेद के खिलाफ आंदोलन के दौरान नादिन गार्डिमर के उपन्यासों की लोकप्रियता से घबराकर ब्रिटिश शासकों ने उनके तीन उपन्यासों पर प्रतिबंध लगा दिया था । लेकिन इससे ना तो उनका लेखन बाधित हुआ और ना ही उनके संघर्ष में कमजोरी आई । दक्षिण अफ्रीका की आजादी के तीन साल पहले नादिन गार्डिमर को साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

नादिन गार्डिमर का जन्म इस्ट रैंड में उन्नीस सौ तेइस को हुआ था और पंद्रह साल की उम्र में उनकी पहली कहानी- द सीन फॉर क्वेस्ट गोल्ड प्रकाशित हुई थी । उसके बाद से वो लगातार लिखती रही और उनके खाते में सौ से ज्यादा कहानियां और तेरह चौदह उपन्यास हैं । कहानियों और उपन्यासों के अलावा नादिन गार्डिमर लगातार समसामयिक विषयों पर लेख भी लिखती रही थी । अफ्रीका की आजादी के बाद भी उनकी सक्रियता खत्म नहीं हुई थी और इन दिनों वो एड्स के खिलाफ मुहिम का हिस्सा थी । पिछले रविवार को जोहानिसबर्ग में ही नब्बे साल की उम्र में उनका निधन हो गया । एक साहित्यकार की समाज में क्या भूमिका हो सकती है , किस तरह से वो अपने लेखन के अलावा भी समाज को दिशा दिखाने में सक्रिय हो सकता है, नादिम गार्डिमर उसका बेहतरीन उदाहरण है । समाज के दबे कुचले लोगों के लिए संघर्षरत इस कथा शिल्पी को सलाम । 

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