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Sunday, July 27, 2014

प्रेम के सन्नाटे को तोड़ती कहानियां

पिछले साल मई में आकांक्षा पारे काशिव ने अपना कहानी संग्रह तीन सहेलियां तीन प्रेमी दिया था । पढ तो उसी वक्त लिया था, लिखने का मन भी बनाया था, परंतु आलस्य की वजह से लिखना संभव नहीं हो पाया । आकांक्षा पारे की कहानियां पहले भी पत्र पत्रिाओं में छपकर खासी चर्चा बटोर चुकी है। अभी हाल ही में उनको जब हंसाक्षर ट्रस्ट का कहानी पुरस्कार देने का एलान हुआ तो बरबस आकांक्षा की कहानियों की ओर ध्यान चला गया । आज अगर हम हिंदी के परिदृश्य पर नजर डालें तो एक साथ कई पीढ़ियां कहानी लिख रही हैं, थोक के भाव लिख रही हैं । सारे कहानीकार के अपने अपने राम हैं जो उनका राज्याभिषेक करते चलते हैं । कहानी के बारे में मेरा मानना है कि अच्छी कहानी की पहली शर्त उसकी पठनीयता है । कोई भी कहानी तभी अच्छी हो सकती है जब वो पाठकों से खुद को पढ़वा ले जाए । अब भी हिंदी में कई कहानीकार यथार्थ के नाम पर नारेबाजी कर रहे हैं, विचारधारा का पोषण कर रहे हैं । आज कहानियों से प्रेम लगभग गायब है । चंद कहानीकार अपनी कहानियों में प्रेम को लेकर आते भी हैं तो वो उत्तर आधुनिक प्रेम में बदल जाता है । इस उत्तर आधुनिक प्रेम को ज्यादा व्याख्यायित करने की आवश्यकता नहीं है । तो कहा जा सकता है कि इस वक्त कहानी प्रेम के संकट से जूझ रही है । प्रेम का जो आवेग कहानी पढ़कर महसूस किया जाना चाहिए वह लगभग अनुपस्थित है । कई कहानीकार तो ऐसे हैं जो साहित्य की राजनीति के कोलाहल से दूर गंभीरता से रचनाकर्म में जुड़े हैं । इसी तरह की कथाकार हैं आकांक्षा पारे काशिव । आकांक्षा पारे काशिव की कहानी तीन सहेलियां, तीन प्रेमी के बारे में मन्नू भंडारी ने लिखा है यह कहानी दिलचस्प संवादों में चली है । उबाऊ वर्णन कहीं है ही नहीं । संप्रेषणीयता कहानी के लिए जरूरी दूसरी शर्त है । लेखक जो कहना चाह रहा है. वह पाठक तक पहुंच रहा है इस कहानी को पाठक को बात समझाने के लिए जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती । कहानियों को पढ़ने के बाद मन्नू भंडारी से असहमत होने की कोई वजह नजर नहीं आई । मैं इसमें सिर्फ ये जोड़ना चाहूंगा कि आकांक्षा की भाषा भी गजब की है । तीन अविवाहित सहेलियों के बीच का नैचुरल संवाद इस कहानी को एक अलग ही पायदान पर खड़ा कर देता है ।

आकांक्षा की एक और कहानी है पलाश के फूल । अद्भभुत प्रेम कहानी । इस कहानी में प्रेम का वही आवेग है जिसकी कमी समकालीन हिंदी कहानी में शिद्दत के साथ महसूस की जा रही है । प्रेम तो आकांक्षा की अन्य कहानियों में भी मौजूद है, लेकिन पलाश के फूल में संवेदना और कल्पनाशीलता के उत्स का जो मिश्रण है वह अन्यत्र कम देखने को मिलता है । इसमें शरारा की शोखी भी है और मौन का संगीत भी है, प्रेम का निराकार क्षितिज भी है । आकंक्षा की कहानियों में पौराणिक और मिथकीय संदर्भों का इस्तेामल उसको भीड़ से अलग करती है । पांचवीं पांडव में एक जगह संवाद के क्रम में आता है एक और उपेक्षित कौंतेय को दुर्योधन की तरह सच्चा साथी मिल गया । इस तरह के कई उदाहरण उसकी कहानियों में आते हैं । देर सबेर हिंदी साहित्य का ध्यान आकांक्षा पारे काशिव की कहानियों की तरफ जाएगा तो उसपर व्यपक चर्चा होगी और कहानी में प्रेम का सूना कोना फिर से गुलजार हो सकेगा ।

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