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Thursday, November 3, 2016

कितना असरदार ड्रग्स का मुद्दा

पंजाब विधानसभा चुनाव के कोलाहल के बीच सूबे में युवाओं के नशे की ओर प्रवृत्त होने को लेकर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पंजाब के सत्थाधारी बादल परिवार पर हमलावर है । अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल के रिश्तेदार और प्रदेश के मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया पर आरोप लगाया है कि उनके संरक्षण में ही सूबे में ड्रग्स का कारोबार चल रहा है । चुनाव के पहले इन आरोपों के खिलाफ मजीठिया ने केजरीवाल के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया । अदालत में पेशी के बाद केजरीवाल ने मजीठिया पर हमला तेज करते हुए कहा कि मजीठिया ड्रग्स के कारोबारियों के सरगना है और आम आदमी पार्टी की सरकार बनते ही उनको जेल भेजेंगे । उधर सुखबीर बादल ने ड्रग्स को लेकर पंजाब को बदनाम करने के लिए राहुल गांधी पर आरोप जड़ा है । उनका कहना है कि राहुल गांधी ने बगैर तथ्यों का आधार पर ये आरोप लगाया था कि पंजाब के सत्तर फीसदी युवा नशे की चपेट में हैं । सुखबीर का दावा है कि ड्रग्स को लेकर बेवजह और आधारहीन तथ्यों की बिनाह पर माहौल बनाया जा रहा है ताकि चुनाव के पहले बादल सरकार को बदनाम किया जा सके । सुखबीर बादल ने अपने तर्कों के समर्थन में एक उदाहरण देते हुए बताया कि हाल ही में पंजाब पुलिस में बहाली के लिए हुई प्रक्रिया में प्रदेश से करीब चार लाख युवाओं ने हिस्सा लिया था जिसमें से सिर्फ सवा फीसदी युवा नशे की चपेट में पाए गए । उनका तो यहां तक दावा है कि सीमा सुरक्षा बल पाकिस्तान से आ रहे ड्रग्स की खेप को रोक पाने में नाकाम रही है जबकि उनकी पुलिस मुस्तैद है । इस पूरे वाकए का जिक्र करने का मकसद सिर्फ इतना था कि पंजाब चुनाव में तीनों प्रमुख पार्टियां ड्रग्स को मुद्दा बना रही हैं । सवाल यही है कि क्या पंजाब के आगामी विधानसभा चुनाव में ड्रग्स को मुद्दा वोटरों को प्रभावित कर पाएगा ।
जिस तरह से तीनों दल ड्रग्स को चुनावी मुद्दा बना रहे हैं उससे तो यह साबित होता है कि नशे का कारोबार पंजाब विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बनकर उभर रहा है । दरअसल पंजाब में नशे की समस्या बहुत पुरानी है । पहले लोग अफीम या डोडा खाकर नशा करते थे और माना जाता था कि मजदूर वर्ग के लोग इसका ज्यादा से ज्यादा सेवन करते हैं । जब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के नेशनल ड्रग्स डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर ने एक सर्वे किया तो यह बात और मजबूती से सामने आई लेकिन इसका दायरा बढ़ा हुआ मिला । सर्वे के नतीजों के मुताबिक पंजाबी बोलनेवाले लोअर मिडिल क्लास के लोग सबसे ज्यादा इसके शिकार हैं । सर्वे के मुताबिक तिरासी फीसदी ड्रग एडिक्ट रोजगारशुदा हैं और निन्यानवे फीसदी एडिक्ट अपने परिवार के साथ रहते हैं । इस सर्वे से एक बात और साफ हुई कि छह हजार से बीस हजार कमाने वाले लोग ड्रग्स के ज्यादा शिकार हो रहे हैं । अब जरा इसके अर्थसास्त्र पर गौर करते हैं तो पता चलता है कि ड्रग्स के लिए करीब हजार बारह सौ रुपए रोज चाहिए होता है । इस राशि को जुटाने के लिए नशेड़ी खुद नशे के कारोबार से भी जुड़ जाते हैं जिससे कि ड्रग्स का कारोबार गहरे तक फैल गया है । कई गैर सरकारी संस्थाओ के सर्वे में ये निकलकर आया है कि पंजाब में अब युवतियां भी ड्रग्स की शिकार हो रही हैं और खतरा बढ़ता जा रहा है । एम्स से लेकर अन्य सर्वे में यह बात साबित हो चुकी है कि खतरा बड़ा है और पंजाब में ज्यादातर परिवारों का कोई ना कोई सदस्य इसकी चपेट में हैं । अमृतसर और जालंधर में रिहैबिलिटेशन सेंटर चलानेवालों का दावा है कि छात्राओं के अलावा अब घर में रहनेवाली महिलाएं भी नशे की चपेट में आने लगी हैं, पर इनकी संख्या अभी नगण्य है ।

पंजाब विधान सभा चुनाव के पहले ड्रग् इस वजह से बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है क्योंकि यह किसी ना किसी तरह से पंजाब के हर परिवार को प्रभावित कर रहा है । इसको ही भांपते हुए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने सरकार को घेरना शुरु किया लेकिन केजरीवाल अपने आक्रामक अंदाज की वजह से इस मुद्दे को चुनाव का केंद्रीय मुद्दा बनाने में सफल रहे हैं । पंजाब की राजनीति को नजदीक से देखनेवालों का कहना है कि ड्रग्स का मुद्दा केंद्र में रहेगा । इस मुद्दे के केंद्र में रहने की वजह से ही जब ये खबर आई कि आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान शराब पीकर एक सभा में पहुंच गए थे तब उस वक्त अकाली दल ने आम आदमी पार्टी पर दोहरा मानदंड अपनाने का आरोप जड़ा था । कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि इसी वजह से आम आदमी पार्टी ने भगवंत मान को अपनी राजनीति के केंद्र से हटाकर नेपथ्य में डाल दिया है । इस वक्त अगर हम देखें तो पंजाब में बेरोजगारी और सूबे पर कर्ज के भारी बोझ की चर्चा कम हो रही है हर ओर सिर्फ ड्रग्स और ड्रग्स से प्रभावित लोगों की बातें हो रही हैं । अभी तक के माहौल को देखते हुए इतना तो कहा ही जा सकता है कि इस बार पंजाब विधानसभा चुनाव ड्रग्स के मुद्दे पर लड़ा जाएगा और इस मुद्दे पर अकाली दल कमजोर पिच पर हैं और उनके विरोधियों कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने उनको बैकफुट पर ला दिया है । 

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