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Friday, February 16, 2018

भक्तिभाव से लिखी जीवनी


इन दिनों बॉलीवुड के फिल्म कलाकारों के हॉलीवुड की फिल्मों और टी वी सीरियल्स में काम करने को लेकर खासी चर्चा होती है। प्रियंका चोपड़ा से लेकर दीपिका पादुकोण तक की। हमेशा जब भी किसी भारतीय कलाकार को विदेशी फिल्मों में काम मिलता है तो वो खबर बनती है। लेकिन इन चर्चा के बीच हम भूल जाते हैं कि प्रियंका चोपड़ा के हॉलीवुड में काम करने से लगभग दशकों पहले भारतीय फिल्मों का एक सितारा विदेशी फिल्माकाश पर चमक चुका था। इस सितारे का नाम था शशि कपूर। शशि कपूर ने 1967 में प्रिटी पॉली फिल्म में काम किया था। कहना ना होगा कि शशि कपूर बॉलीवुड के पहले अंतराष्ट्रीय कलाकार थे जिनको प्रसिद्धि मिली थी। दरअसल हम बहुधा सबसे पहले सिंड्रोम के शिकार होकर गलतियां कर बैठते हैं। शशि कपूर के मामले में तो कई बार ऐसा हुआ। इन्हीं स्थितियों से प्ररित होकर असीम छाबड़ा ने शशि कपूर पर एक मुक्कमल किताब लिखने की योजना बनाई थी जो शशि के जीवन काल में ही पूरी हो गई थी। इस किताब का नाम है शशि कपूर, द हाउस होल्डर, द स्टार। लेखक ने साफ तौर पर इस बात को स्वीकार किया है कि शशि कपूर पर पुस्तक लिखने के दौरान जब उसने कपूर खानदान की दूसरी पीढ़ी के तीसरे सितारे के इंटरव्यू को पढ़ना शुरू किया तो उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि लोगों ने शशि के व्यक्तित्व के कितने पहलुओं को भुला दिया है।
इस पुस्तक में असीम छाबड़ा ने शशि कपूर की शुरुआती जिंदगी पर विस्तार से प्रकाश डाला है कि किस तरह से उनका जेनिफर से इश्क हुआ। दोनों एक ही नाटक कंपनी में काम करते थे और वहीं इश्क पनपा था। जेनिफर की पिता की मर्जी के खिलाफ दोनों ने शादी करने का फैसला किया था, शादी की भी थी। इन प्रसंगों में असीम छाबड़ा ने उपलब्ध अलग अलग तथ्यों को सामने रखा है ताकि पाठकों को समग्रता में घटनाओं को पता लग सके। अफवाहों पर विराम लग सके और सचाई समाने आ सके। शशि कपूर एक बेहतरीन इंसान और सच्चे अर्थों में प्रोफेशनल थे । पर इस किताब को पढ़ते हुए कई बार ऐसा लगता है कि शशि प्रोफेशनलिज्म पर दिल की बातों को या रिश्तों को तरजीह देते थे लेकिन जब वो दिल से कुछ करते थे तो उसका ढिंढोरा नहीं पीटते थे। शबाना आजमी के साथ का एक वाकया बेहद मशहूर है। 1986 में शबाना आजामी ने कोलाबा की झुग्गियों को हटाने के सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और भूख हड़ताल पर बैठ गई थीं। भूख हड़ताल के पांचवें दिन शबाना की तबीयत बिगड़ने लगी थी और उनका रक्तचाप बहुत कम होने लगा था। शशि कपूर को ये बात पता चली तो वो सीधे उस वक्त के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शंकर राव चव्हाण के पास जा पहुंचे। उनके कहा कि आपको जब जरूरत होती है तो पूरी फिल्म इंडस्ट्री आपके समर्थन में खड़ी हो जाती है। शंकर राव चव्हाण ने तुरंत संबंधित विभाग के मंत्री को बलाया और उनसे कहा कि जाकर शबाना आजमी की हड़ताल तुड़वाएं। शशि कपूर और मंत्री दोनों हड़ताल स्थल पर पहुंचे और जूस मंगवा कर शाबाना की हड़ताल खत्म करवाई। जाहिर सी बात है कि मांगे मान ली गईं। हड़ताल तोड़ने के बाद जब शबाना मंच पर आईं और वो शशि कपूर को धन्यवाद देने ही वाली थीं कि उनकी नजर शशि पर पड़ी जो अपनी गाड़ी में बैठकर जा रहे थे। जाने के पहले उन्होंने कहा था कि ये आंदोलनकारियों की जीत है और उनका इससे कोई लेना देना नहीं है। शशि कपूर से जुड़े इस तरह के कई वाकए इस किताब में हैं जहां वो अपने साथी कलाकारों को सेट से लेकर व्यक्तिगत जीवन में मदद करते रहते थे।
लेकिन अगर हम समग्रता में असीम छाबड़ा की इस किताब पर विचार करते हैं तो ये भक्तिभाव में डूबकर लिखी किताब प्रतीत होती है जिसमें तथ्यों को अपने निष्कर्षों के हिसाब से कई जगह पर घुमाया गया है। शुरुआत के अध्याय में लेखक इस तरह से लिखते हैं ताकि पाठकों को लगे कि वो वस्तुनिष्ठ होकर समग्रता में शशि के व्यक्तित्व को सामने रख रहे हैं लेकिन जैसे जैसे किताब आगे बढ़ती है वैसे वैसे लेखक पर भक्ति हावी होती जाती है। लेखक जब उनको व्यस्ततम स्टार कहते हैं तो ये ध्वनित होता है कि वो उस दौर के सुपरस्टार थे । लेखक के मुताबिक शशि कपूर साठ से लेकर अस्सी के दशक तक लगातार सफलता की बुलंदियों पर रहे लेकिन इन बुलंदियों के बारे में बात करते हुए वो राजेन्द्र कुमार, दिलीप कुमार, राज कपूर, शम्मी कपूर की सफलता क़ा बस उल्लेख भर कर देते हैं। इसी तरह से जब वो सत्तर की दशक की बात करते हैं तो राजेश खन्ना की रिकॉर्डतोड़ सफलता को गहराई से रेखांकित नहीं करते हैं। उसके बाद अमिताभ बच्चन का जिक्र भर होता चलता है। लेखक इस बात से भी बचते नजर आते हैं कि शशि कपूर की सफलता में उनके को स्टार का बड़ा रोल रहा है। दीवार, त्रिशूल, शर्मीली, प्यार का मौसम, आमने सामने, चोर मचाए शोर आदि पर विस्तार से चर्चा बगैर शशि पर मुकम्मल किताब नहीं हो सकती है। दीवार के जिस रोल को लेकर शशि की तारीफ होती है वो रोल पहले नवीन निश्चल को मिलने वाला था लेकिन इसका उल्लेख दिखता नहीं है। निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि शशि कपूर के व्यक्तित्व औक कृत्तित्व पर यह मुकम्मल पुस्तक नहीं है। 

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