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Sunday, November 17, 2019

पुस्तक मेला नहीं सांस्कृतिक समागम


समकालीन साहित्यिक परिदृश्य में देशभर में साहित्य महोत्सवों की धूम मच रही है और कस्बों और मोहल्ले स्तर पर लिटरेचर फेस्टिवल हो रहे हैं। दिल्ली के द्वारका से लेकर सुदूर कोच्चि तक में उसी नाम से लिटरेचर फेस्टटिवल हो रहे हैं। कई बार तो इन लिटरेचर फेस्टिवल में इस तरह के विषय और संवाद होते हैं जो साहित्य को मर्यादाहीन करते प्रतीत होते हैं। कई साहित्य महोत्सवों में मीना बाजार जैसा माहौल तैयार किया जाता है। साहित्य महोत्सव के नाम पर दुकानें सजाई जाती हैं, कपड़े, गहने से लेकर जूते तक साहित्यिक मेलों में बेचने का चलन शुरू हो चुका है। कई साहित्यिक महोत्सवों में सांस्कृतितिक कार्यक्रमों के नाम पर फूहड़ता का प्रदर्शन भी होता है। देशभर में आयोजित होनेवाले कई साहित्यिक मेलों को देखकर कहा जा सकता है कि लोगों की रुचि इस ओर बढ़ी है। लोग साहित्य कला और संस्कृति की ओर बढ़ रहे हैं। जब तक साहित्यिक महोत्सवों का उद्देश्य साहित्य और कला को बढ़ाना देना है तबतक इसका स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन जैसे ही उद्देश्य इससे अलग होता है तो उनकी आलोचना भी होनी चाहिए। लिटरेचर फेस्टिवल की भीड़ में एक पुस्तक मेला ऐसा है जो इस तरह के साहित्यिक आयोजन से बिल्कुल अलग दिखता है। यह आयोजन है पटना पुस्तक मेला। पिछले चौंतीस साल से पटना में आयोजित होनेवाला ये पुस्तक मेला पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में 8 नवंबर से शुरू हो चुका है और ये 18 नवंबर तक चलेगा। पटना पुस्तक मेला का ये पच्चीसवां आयोजन है। 1985 में शुरू हुआ ये पुस्तक मेला पहले हर दो साल पर आयोजित किया जाता था जो बाद में सालाना पुस्तक उत्सव के रूप में नियमित हुआ। पांच छह साल में पटना पुस्तक मेला बिहार में इतना लोकप्रिय हो गया कि वो प्रदेश के सांस्कृतिक कैलेंडर का अभिन्न हिस्सा हो गया। यहां सिर्फ पुस्तकों की बिक्री नहीं होती बल्कि लेखकों आदि से संवाद का सत्र भी होता है।
कहा जाता है कि लड़के स्कूल और कॉलेज छोड़कर या भागकर फिल्में देखने चले जाते हैं लेकिन कोई भी स्कूल कॉलेज से भागकर पुस्तकालय या फिर पुस्तकों के पास नहीं पहुंचता है । यह बात सत्य हो सकती है पर मेरा अनुभव बिल्कुल भिन्न है । हम तो कॉलेज छोड़कर अपने दोस्तों के साथ 1992 के पुस्तक मेला को देखने तकरीबन सवा दो सौ किलोमीटर की रेल यात्रा करके भागलपुर से पटना पहुंचे थे । कई हिंदी के प्रकाशकों के स्टॉल पर जाकर पुस्तक क्लब आदि की सदस्यता भी ली थी । दो तीन दिनों तक पुस्तक मेले में खरीदारी की थी और समृद्ध होकर लौट आए थे । मेरे जैसे जाने कितने नौजवान बिहार के दूर दूर के गांवों कस्बों से पटना पुस्तक मेले में पहुंचे थे। बिहार की बारे में मान्यता है कि वहां सबसे ज्यादा पत्र-पत्रिकाएं बिकती हैं। लोग सामाजिक, राजनीतिक और साहित्यक रूप से जागरूक हैं । यह हकीकत भी है । यहां के लोग सिर्फ पढ़ते ही नहीं हैं उसपर बेहिचक अपनी राय भी देते हैं, आपस में किसी मुद्दे पर बहस भी करते हैं । बिहार में इस जागरूकता को और फैलाने और नई पीढ़ी की पढ़ने की रुचि को संस्कारित करने में पटना पुस्तक मेला ने बेहद सकारात्मक और अहम भूमिका निभाई है । बिहार ने इस स्थापना को भी निगेट किया है कि युवा साहित्य नहीं पढ़ते या युवाओं की साहित्य में रुचि नहीं है । पटना पुस्तक मेले के दौरान युवाओं की भागीदारी और उनके उत्साह को देखकर संतोष होता है कि हिंदी के पाठक भारी संख्या में हैं जरूरत है उनतक पहुंचने के उपक्रम की है।
इस वर्ष पटना पुस्तक मेले में दैनिक जागरण हिंदी बेस्टसेलर की नई सूची भी जारी की गई। हिदी साहित्य की अलग अलग विधाओं में सबसे ज्यादा बिकनेवाली पुस्तकों को लेकर तैयार की गई दैनिक जागरण हिंदी बेस्टसेलर की सूची की घोषणा 15 नवंबर को पटना पुस्तक मेले में की गई। हिंदी साहित्य के लगभग हर मंच पर दैनिक जागरण हिंदी बेस्टसेलर सूची की चर्चा होती है। दरअसल हिंदी में किताबों की बिक्री और उसके प्रामाणिक आंकड़ों को लेकर भ्रम की स्थिति रही है। इस भ्रम को दूर करने के लिए दैनिक जागरण ने तीन साल पहले एक ऐतिहासिक पहल की थी और हिंदी बेस्टसेलर सूची का प्रकाशन शुरू किया था। हिंदी में पहली बार प्रामाणिक और पारदर्शी तरीके से हिंदी बेस्टसेलर की सूची तैयार करवाई गई । दैनिक जागरण के लिए विश्व प्रसिद्ध एजेंसी नीलसन-बुकस्कैन बेस्सेलर की सूची तैयार करती है । नीलसन-बुकस्कैन दुनिया के कई देशों में बेस्टसेलर की प्रामाणिक सूची प्रस्तुत करती है। जब हिंदी में पहली बार बेस्टलर की सूची प्रकाशित हुई तो तमाम चर्चा इसके इर्द गिर्द होने लगी। दैनिक जागरण हिंदी बेस्टसेलर सूची को चार श्रेणियों में बांटा गया है – कथा, कविता, कथेतर और अनुवाद । हर श्रेणी में दस बेस्टसेलर पुस्तकों की सूची होती है। यह दैनिक जागरण की मुहिम हिंदी हैं हम के तहत किया जा रहा है।
हिंदी में बिकनेवाली पुस्तकों की प्रामाणिक और पारदर्शी सूची को तैयार करने में कई मानदंडों को रखा गया है। प्रकाशकों के साथ बैठकर इस मानदंडों को तैयार किया गया था। पुस्तकों पर तेरह अंकों के वैध आईएसबीएन नंबर का होना आवश्यक है। दैनिक जागरण हिन्दी बेस्टसेलर के चयन के लिए देशभर के 42 बड़े शहरों का चुनाव किया जाता है जहां की मुख्य भाषा हिन्दी है। बेहतर नतीजों के लिए उन शहरों के चिन्हित पुस्तक विक्रेताओं से तय तिमाही के बिक्री के आंकड़ें इकट्ठा किए जाते हैं। बिक्री संबंधी जानकारी के लिए नीलसन एजेंसी के प्रतिनिधि हर शहर के चिन्हित पुस्तकों की दुकानों पर जाते हैं और प्रामाणिकता की जांच करने के बाद ही आंकड़ों को शामिल किया जाता है। बेस्टसेलर सूची को तैयार करने के लिए चिन्हित किये गए पुस्तकों की दुकानों के आंकड़ों को नील्सन-बुकस्कैन रिटेल पैनल में मौजूद ऑनलाइन बिक्री के आंकड़ों के साथ मिलाकर हिन्दी बेस्टसेलर की सूची को अंतिम रूप दिया गया है । यह बहुत ही वैज्ञानिक तरीका है। इस वर्ष इस पुस्तक मेले में दैनिक जागरण ने अपने अभियान हिंदी हैं हम के तहत जागरण सान्निध्य का आयोजन भी किया था। इसमें बिहार और देश के कई नामचीन लेखक जुटे थे। पटना पुस्तक मेला तो पुस्तक मेला से आगे जाकर सांस्कृतिक आंदोलन की शक्ल अख्तियार कर चुकी है । जैसा कि उपर संकेत किया गया है कि पटना पुस्तक मेले में लेखकों, पत्रकारों और विशेषज्ञों के साथ विषय विशेष पर विमर्श भी होते हैं । पटना पुस्तक मेला ने सूबे में समाप्तप्राय नुक्कड़ नाटक को एक विधा के तौर फिर से संजीवनी प्रदान की। इसके अलावा पटना पुस्तक मेला हर वर्ष कई तरह के नए प्रयोग भी करता है। इस वर्ष 8 नवंबर से शुरू हुए आयोजन का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन की बजाए पौधों में पानी डालकर किया गया क्योंकि इस वर्ष की थीम को पर्यावरण से जोड़ा गया था। किसी मशहूर शख्सियत की बजाए मेले का उद्घाटन पटना के स्कूलों के प्राचार्यों से करवाया गया। यहां बच्चों के लिए लेखन की कार्यशाला आदि भी आयोजित की जाती है। नवोदित कवियों को अपनी रचनाओं के पाठ के लिए मंच मुहैया करवाया जाता है।
पटना पुस्तक मेला के आयोजकों ने बिहार की कला-संस्कृति को संजोने के लिए भी तरह तरह के प्रयोग करते रहे हैं। यहां से राजनीतिक संकेत भी निकलते रहे हैं। पाठकों को याद होगा कि वो पटना पुस्तक मेला की पेंटिंग प्रदर्शनी ही थी जहां से नीतीश कुमार ने महागठबंधन से अलग होने का संकेत दिया था। पुस्तक मेले में पहुंचे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कमल के फूल में रंग भरे थे। दरअसल हुआ यह था कि नीतीश कुमार उस वक्त राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ महागठबंधन की सरकार चला रहे थे। उस वक्त तक किसी को इस बात का इल्म भी नहीं था कि नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हो सकते हैं। जब नीतीश कुमार पटना पुस्तक मेले की पेंटिंग प्रदर्शनी में मिथिला की प्रसिद्ध कलाकार बउआ देवी के पास पहुंचे थे और उनके बनाए कमल के फूल में अपनी कूची से रंग भरे थे तब पहली बार ये बात निकली थी कि नीतीश भारतीय जनता पार्टी के साथ जा सकते हैं। चंद दिनों बाद यही हुआ था और नीतीश कुमार ने महागठबंधन को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी के समर्थन और साथ से सरकार बनाई थी। अगर हम समग्रता से पुस्तक मेले पर विचार करें तो हमें दो उत्साही युवाओं, अमित झा और रत्नेश्वर की दाद देनी जो अपनी टीम के साथ इस मेले को बेहतर बनाने में लगे रहते हैं। जरूरत इस बात की है कि बिहार सरकार भी इस पुस्तक मेले मे को अपने सांस्कृतिक कैलेंडर में शामिल करे और इस मेले को बेहतर बनाने की दिशा में अपना सहयोग करे।  

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