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Wednesday, November 6, 2019

पुस्तक केंद्र की खलती कमी


दिल्ली में अब भी बहुत कम ऐसी जगह हैं जहां साहित्य की हर विधा की पुस्तकें मिलती हों। सामने लॉन हो जहां बैठकर चाय कॉफी का लुत्फ लिया जा सके। कॉफी हाउस की जगह पर पालिका बाजार बनने के बाद मोहन सिंह प्लेस के कॉफी हाउस में साहित्यकारों की बैठकी जमा करती थी। लेकिन एक जगह ऐसी थी जहां साहित्यकारों के अलावा रंगकर्मी से लेकर संस्कृतिक्रमी तक जुटा करते थे। ये जगह थी श्रीराम कला केंद्र के भूतल पर स्थित वाणी पुस्तक केंद्र। उससे सटा एक कैफेटेरिया भी था और सामने लॉन । वाणी पुस्तक केंद्र में देशभर की साहित्यिक पत्रिकाएं एक जगह मिल जाया करती थीं। कैफेटेरिया में चाय-कॉफी। साहित्य चर्चा के लिए बेहद मुफीद जगह भी और वातावरण भी। वाणी पुस्तक केंद्र के मालिक अरुण माहेश्वरी के मुताबिक ये केंद्र सन 2000 में खुला था। पत्रकार सुरेन्द्र प्रताप सिंह को कहीं से ये जानकारी मिली कि श्रीराम कला केंद्र वाले अपने परिसर में एक पुस्तक की दुकान चलवाना चाहते हैं। सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने इसकी चर्चा अपने मित्र पत्रकार राजकिशोर से की। राजकिशोर ने इस पुस्तक केंद्र के लिए वाणी प्रकाशन के मालिक अरुण माहेश्वरी को तैयार कर लिया। इस तरह से इस केंद्र की शुरुआत हुई थी। इस केंद्र का शुभारंभ पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और फिल्मकार महेश भट्ट ने किया था। शुभारंभ के मौके पर उस वक्त अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे मनोज वाजपेयी ने कवि चंद्रकांत देवताले की कविताओँ का पाठ किया था। अरुण माहेश्वरी बताते हैं कि चंद्रशेखर पुस्तक प्रेमी थे। चंद्रशेखर जी को जब इस बात का पता लगा कि मंडी हाउस के पास एक ऐसा पुस्तक केंद्र खुल रहा है तो वो इसका शुभारंभ करने के लिए फौरन तैयार हो गए थे। वो समय पर आए काफी देर तक रुके भी थे। हिंदी साहित्य जगत के तमाम बड़े लेखक, रंगकर्मी और संस्कृतिकर्मी भी इसके शुभारंभ के मौके पर उपस्थित थे।
इसके शुभारंभ समारोह को लेकर अरुण माहेश्वरी ने दैनिक जागरण के साथ अपनी बहुत सारी यादें साझा की। एक दिलचस्प बात उन्होंने बताई। उद्घाटन समारोह के लिए उन्होंने फिल्मकार महेश भट्ट से चर्चा की। महेश भट्ट ने उनको कविता पाठ के लिए मनोज वाजपेयी का नाम सुझाया और कहा कि ये लड़का मुंबई में फिल्मों में नाम करने लगा है। महेश भट्ट ने कहा था कि वो एक दिन बहुत बड़ा स्टार बनेगा। तबतक मनोज की दो तीन फिल्में आ चुकी थी। महेश भट्ट ने मनोज वाजयेपी का नंबर दिया और फिर अरुण माहेश्वरी के निमंत्रण पर मनोज वाजयेपी दिल्ली आ गए। मनोज दिल्ली एयरपोर्ट से खुद ही टैक्सी लेकर हिमाचल भवन पहुंच गए थे। उस वक्त मनोज वाजपेयी को हिमाचल भवन में ठहराया गया था क्योंकि वो जगह समारोह स्थल के बहुत पास था। कार्यक्रम के दौरान मनोज वाजपेयी ने चंद्रकांत देवताले की कविताओं को पाठ किया था, जिसको उपस्थित सभी लोगों ने काफी सराहा था। अरुण माहेश्वरी के मुताबिक कार्यक्रम के बाद उन्होंने मनोज वाजपेयी को धन्यवाद दिया और कुछ तोहफा देने की इच्छा जताई। मनोज ने तब अरुण माहेश्वरी से कहा था कि अगर तोहफा देना है तो उदय प्रकाश का संग्रह तिरिछ दे दीजिए। ये संग्रह मंगवाकर मनोज वाजपेयी को गिफ्ट दिया गया था। उस वक्त उदय प्रकाश की कहानी तिरिछ की काफी चर्चा थी।
ये तो रही उद्घाटन समारोह की दिलचस्प कहानी लेकिन उसके बाद श्रीराम कला केंद्र स्थित ये पुस्तक केंद्र दिल्ली की साहित्यिक बिरादरी का प्रमुख केंद्र बन गया। इसकी वजह वहां साहित्यिक पत्रिकाओं की उपलब्धता तो थी ही वहां का माहैल भी रचनात्मक था। ये जगह दिल्ली की सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र में भी थी। करीब दस साल तक ये वाणी पुस्तक केंद्र चलता रहा था लेकिन एक दिन अचानक लैंड एंड डेवलपमेंट डिपार्टमेंट ने इमारत के मालिकों को परिसर में व्यावसायिक गतिविधियां चलाने पर रोक लगाने का नोटिस दे दिया। थोड़े दिन की बातचीत के बाद दिल्ली का ये साहित्यिक केंद्र बंद कर दिया गया। पुस्तक केंद्र बंद होने के कुछ दिनों बाद तक कैफेटेरिया चलता रहा लेकिन फिर वो भी बंद हो गया, फिर खुला। उसके बंद होने के बाद तो लेखकों के मिलने जुलने का एक स्थान खत्म हो गया। दरअसल इस स्थान की उपयोगिता इस वजह से भी थी कि जो भी श्रीराम कला केंद्र में नाटक देखने आता था उनके लिए भी ये जगह मुफीद थी। लेकिन एक सरकारी नोटिस ने इस बेहतरीन साहित्यिक केंद्र को बंद कर दिया।   

1 comment:

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

दुःखद। ऐसे केंद्र की कमी तो हमेशा खलेगी ही। मैं केवल कल्पना कर सकता हूँ कि जब यह चल रहा होगा तो उधर कैसा माहौल रहा होगा।