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Monday, March 2, 2020

बंगला नंबर 5 और मोरारजी


मोरारजी देसाई और दिल्ली का बहुत गहरा रिश्ता रहा है। 1956 में वो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कहने पर दिल्ली आए और फिर इस शहर को ही अपनी राजनीति का केंद्र बनाया। मोरारजी देसाई पर लिखी गई किताब में अरविंदर सिंह ने उनके दिल्ली से जुड़े कई प्रसंगों को लिखा है। उनके  मुताबिक जवाहरलाल नेहरू उनको अपने मंत्रिमंडल में चाहते थे और इस वजह से 1956 में उनको महाराष्ट्र की राजनीति छोड़कर दिल्ली बुला लिया था।14 नवंबर 1956 को मोरारजी देसाई देश के वाणिज्य और उद्योग मंत्री बनाए गए थे। जब उन्होंने वाणिज्य और उद्योग मंत्री का पद संभाला था तो उस वक्त इस मंत्रालय का दफ्तर नॉर्थ ब्लॉक में हुआ करता था। लेकिन समय बीतने के साथ मंत्रालयों को बड़े कार्यालय की जरूरत पड़ने लगी तो यह तय किया गया कि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय को अन्यत्र ले जाया जाए। 1957 में जब उद्योग भवन बनकर तैयार हो गया तो मोरारजी देसाई का कार्यालय नॉर्थ ब्लॉक से उद्योग भवन आ गए। तब उनको नहीं मालूम था कि वो जल्द ही फिर से नॉर्थ ब्लॉक में शिफ्ट होनेवाले हैं। गड़बड़ियों के आरोप के चलते फरवरी 1958 में वित्त मंत्री टी टी कृष्णामचारी को इस्तीफा देना पड़ा था। इनके इस्तीफे के बाद मार्च 1958 में मोरारजी देसाई वित्त मंत्री बने और फिर से नॉर्थ ब्लॉक जा पहुंचे। लेकिन मोरारजी देसाई को तब कहां मालूम था कि नियति ने उऩके लिए साउथ ब्लॉक का प्रधानमंत्री कार्यालय भी तय कर रखा था। यह अलग बात है कि मोरारजी देसाई को राजपथ को क्रास करके साउथ ब्लॉक तक पहुंचने में करीब दो दशक लगे। उन्होंने नार्थ ब्लॉक से साउथ ब्लॉक जाने की कोशिश कई बार की लेकिन हर बार उऩको असफलता ही हाथ लगी।
कुलदीप नैयर ने अपनी किताब बियांड द लाइंसमें उनके साउथ ब्लॉक जाने के पहले प्रयास के बारे में जानकारी दी थी। उन्होंने बताया था कि जब 27 मई 1964 को नेहरू जी का निधन हो गया था तो उसके अगले दिन वो मोरारजी देसाई के घर गए थे जहां उनकी मुलाकात मोरारजी के बेटे कांतिभाई से हुई थी। वहां कांतिभाई ने नैय्यर को शास्त्री का आदमी बताते हुए कहा था कि जाकर शास्त्रीजी से कह दें कि वो प्रधानमंत्री पद की रेस से बाहर जो जाएं। कांतिभाई के हाथ में तब कांग्रेस के उन सांसदों की सूची थी जो मोरारजी देसाई को समर्थन दे रहे थे। वहां से लौटकर कुलदीप नैयर ने एक लेख लिखा जो कि समाचार एजेंसी यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया से जारी हुआ। उस लेख को कई अखबारों ने छापा। उस लेख में कुलदीप नैयर ने लिखा कि मोरारजी पहले शख्स हैं जो नेतृत्व करने के लिए सामने आए हैं और उसके अंत में ये लिखा दिया कि शास्त्री हिचक रहे हैं। इस लेख का तब गहरा असर पड़ा था और उस वक्त कहा गया था कि मोरारजी को समर्थन करनेवाले सौ सांसद पीछ हट गए थे। वजह ये थी कि जनता जब नेहरू जी के निधन पर शोकाकुल थी तो मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बनने में लगे थे। तब कुलदीप नैयर को शास्त्री जी ने भी संकेत किया था कि अब कोई जरूरत नहीं है किसी लेख की। अरविंदर सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने किसी सवाल पर कुलदीप नैयर से कहा था कि अगर कुलदीप नैयर ने उनको 1964 में प्रधानमंत्री बनने दिया होता तो ये समस्याएं नहीं आतीं।
दूसरी बार भी मोरारजी देसाई साउथ ब्लॉक नहीं पहुंच पाए वो वर्ष था 1966। शास्त्री जी के असामयिक निधन के बाद एक बार फिर से देश के सामने ये सवाल था कि कौन बनेगा प्रधानमंत्री। मोरारजी देसाई ने तब भी तय किया था कि वो कांग्रेस संसदीय दल क नेता पद का चुनाव लडेंगे। वो लड़े भी और इंदिरा गांधी से पराजित हुए लेकिन 165 सांसदों का समर्थन उनको मिला था। अरविंदर सिंह का कहना है कि कांग्रेस संसदीय दल के नेता पद के लिए हुआ आखिरी चुनाव था। इस पराजय के बाद भी मोरारजी निराश नहीं हुए और देशभर का दौरा करने लगे । तब वो दिल्ली के ड्यूप्लेक्स रोड पर रहते थे जिस सड़क का नाम बदलकर अब कामराज रोड कर दिया गया है। दरअसल समय समय पर दिल्ली के सड़कों का नाम बदला जाता रहा है, खासतौर पर उन सड़कों का नाम जो गुलामी के दौर की याद दिलाते हैं। दिल्ली की कई सड़कों का नाम बदला गया था जिसमें केनिंग रोड, चेम्सफोर्ड रोड और हार्डिंग रोड के साथ-साथ ड्यूप्लैक्स रोड भी शामिल था। जोजेफ फ्रांस्वा ड्यूप्लैक्स अठारहवीं शताब्दी के मध्य में भारत में फ्रांसीसी कब्जे वाले इलाके के गवर्नर जनरल थे।
ड्यूप्लैक्स रोड के बंगले से ही मोरारजी देसाई के साउथ ब्लॉक पहुंचने का रास्ता खुला था। दरअसल 1975 मे जनता की नाराजगी कांग्रेस सरकार के खिलाफ बढ़ने लगी थी। गुजरात विधानसभा को भंग कर दिया गया था। तब मोरारजी देसाई ने 7 अप्रैल 1975 को एलान किया था कि वो अपने दिल्ली के घर 5, ड्यूपलैक्स रोड पर आमरण अनशन पर बैठेंगे। उन्होनें घोषणा की थी कि उनका ये आमरण अनशन देश में लोकतंत्र की बेहतरी के लिए है। उन्होंने तीन मांगे उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने रखी थी। पहली कि गुजरात विधानसभा के चुनाव की तारीखों का एलान किया जाए, दूसरा राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर मीसा ( मेंटनेंस ऑफ इंटरनल सेक्युरिटी एक्ट) नहीं लगाया जाए और तीसरा कि बांग्लादेश युद्ध के समय देश पर जो वाह्य इमरजेंसी लगाई गई थी, उसको हटाया जाए। उनकी इन मांगों पर इंदिरा गांधी के साथ बातचीत भी हुई लेकिन वो बेनतीजा रही। दिल्ली के ड्यूप्लैक्स रोड का ये पांच नंबर का बंग्ला उस दौर की राजनीति का केंद्र बनने लगा और इंदिरा विरोधियों की भारी भीड़ वहां जुटने लगी थी। मोरारजी देसाई का समर्थन बढ़ता देख इंदिरा गांधी ने तब उमाशंकर दीक्षित को उनके घऱ भेजा और कहलवाया कि सरकार उनकी गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीख घोषित करने की मांग मानने को तैयार है और बाकी दोनों मांगों पर भी विचार किया जा रहा है। सरकार के इस आश्वासन के बाद मोरारजी देसाई अनशन तोड़ने को राजी हुए थे। 13 अप्रैल की शाम पांच बजे के करीब जयप्रकाश नारायण मोरारजी देसाई के घर पहुंचे और साढे पांच बजे उनको जूस पिलाकर अनशन समाप्त करवाया। इस तरह ड्यूप्लैक्स रोड का ये बंगला इंदिरा सरकार को झुकाने की गतिविधियों का गवाह बना था।
इस बीच देश में राजनीति का घटनाक्रम तेजी से चला और कोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार दे दिया। कांग्रेस के ज्यादातर नेता तब भी इंदिरा गांधी के पक्ष में थे। एक बार फिर से मोरारजी देसाई ने कमान संभाली और उनके चेयरमैनशिप में लोकसंघर्ष समिति का गठन हुआ। राजनीतिक गतिविधि का केंद्र एक बार फिर से दिल्ली का वही पांच नंबर ड्यूप्लैक्स रोड का बंगला बना। इंदिरा गांधी ने 26 जून को देश में इमरजेंसी लगा दी। उनका विरोध करनेवाले सभी नेता गिरफ्तार किए जाने लगे। सुबह सुबह पुलिस मोरारजी देसाई के बंगले पर पहुंची और उनको गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार करके मोरारजी देसाई को पहले सोहना टूरिस्ट सेंटर गेस्ट हाउस में रखा गया फिर ताउरू के गेस्ट हाउस में रखा गया। इन दोनों जगहों पर मोरारजी देसाई को डेढ़ साल तक रखा गया था। सोहना में तो उनके बगल के कमरे में जयप्रकाश नारायण भी रहा करते थे। बाद में उनको चंडीगढ़ शिफ्ट कर दिया गया था। अरविंदर सिंह लिखते हैं कि इमरजेंसी में अपनी गिरफ्तारी के दिनों में मोरारजी देसाई ने अन्न छोड़ दिया था और वो सिर्फ दूध और फल खाते थे। डेढ साल तक इसी तरह का जीवन जीने के बाद 18 जनवरी 1977 की सुबह कुछ पुलिसवाले उनके पास पहुंचे और कहा कि सरकार ने उनको बगैर किसी शर्त रिहा करने का आदेश दिया है। मोरार जी संकट में पड़े उनके पास पैसे तो थे नहीं दिल्ली लौटते कैसे। उन्होंने अपनी मुश्किल पुलिस वालों को बताई। प्रशासन ने गाड़ी का इंतजाम किया और उनको दिल्ली के ड्यूप्लैक्स रोड के उनके घऱ तक छोड़ा गया। इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर दी थी और चुनाव की तारीखों का एलान हो गया था। 18 जनवरी 1977 की शाम से ही राजनीतिक बैठकों का दौर शुरू हो गया था और दो दिन बाद दिल्ली के इसी 5 ड्यूप्लैक्स रोड वाले मोरारजी देसाई के घर पर जनता पार्टी के गठन की घोषणा की गई थी। आगे की कहानी तो इतिहास है लेकिन इस बार किस्मत मोरारजी देसाई के साथ थी और उनका साउथ ब्लॉक जाने का सपना पूरा हुआ था। पांच नंबर के इसी बंगले से वो देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने निकले थे। अब भले ही दिल्ली की इस सड़क का नाम बदल दिया गया है लेकिन इस सड़क ने और इस बंगले ने इतिहास को बनते देखा है।

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