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Saturday, July 18, 2020

विकलांग मानसिकता से उपजा हास्य

हरिशंकर परसाईं का एक बेहद मशहूर व्यंग्य है, राजनीतिक पुंगी। उसमें वो लिखते हैं, ‘आदमी और पुंगी में क्या फर्क है? आदमी खुद बोलता है और पुंगी बजायी जाती है। पुंगी में सिर्फ खाली पोल होती है, उसमें स्वर नहीं होता। पुंगी का स्वर उसी आदमी का स्वर होता है, जिसके हाथ में वो है और जो उसको फूंक रहा है। पिछले कुछ सालों में इस देश के स्टैंडअप कॉमेडियनों ने यह सिद्ध कर दिया कि वो स्टैंडअप कॉमेडियन नहीं हैं, मेले में मिलनेवाली दो टके की पुंगी हैं।‘ हमने नेता की जगह स्टैंडअप कॉमेडियन कर दिया है। हरिशंकर परसाईं की याद इस वजह से आई कि पिछले दिनों हास्य के नाम पर सार्वजनिक मंचों पर बजनेवाली ये पुंगियां अज्ञान की वजह से बेसुरी हो गई हैं। इन सबसे निकलनेवाले स्वर समाज के बहुसंख्यक समुदाय को आहत भी करने लगा हैं और उनके अंदर गुस्से का बीज भी बोने लगे हैं। हास्य की ये पुंगियां जब बजती हैं तो संविधान में प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ लेने की कोशिश करती हैं, लेकिन जब पुंगी सड़ने लगती है तो उससे स्वर की सुंदरता की अपेक्षा करना और उसके स्वर के अनुशासन के दायरे में रहने की कल्पना करना व्यर्थ है। लिहाजा हास्य की ये पुंगियां बहुधा संविधान के तहत मिली अभिव्यक्ति की आजादी का अतिक्रमण करती हैं और बहुसंख्यक समाज की भावनाओं को आहत कर देती हैं। ये पुंगियां अपने संवैधानिक अधिकारों को तो याद रखती हैं लेकिन लोकप्रियता हासिल करने के चक्कर में शायद ये भूल जाती हैं कि जो संविधान उनको अभिव्यक्ति की आजादी देता है वही संविधान अन्य नागरिकों को भी अन्य कई तरह के अधिकार देता है। जिसमें उनकी भावनाएं आहत न हों इसका भी ख्याल रखा गया है।
अब जरा इस बात पर विचार कर लें कि हास्य के इन पुंगियों यानि स्टैंडअप कॉमेडियंस किस तरह से हिंदू धर्म, हिंदू परंपरा, हिंदू भगवान, हिंदू अनुष्ठान, हिंदू रीति-रिवाज और हिंदू धार्मिक संस्कारों का उपहास करते हैं। कभी गणेश जी की सूंढ़ को लेकर प्लास्टिक सर्जरी के सौंदर्य की बातें करते-करते मर्यादा की सभी सीमा लांघ जाते हैं। उन्हें यह याद नहीं रहता कि गणेश जी को हिंदू, भगवान के तौर पर पूजते हैं और उनका मजाक उड़ाना कुछ लोगों की भावनाओं को बुरी तरह आहत कर सकता है। स्टेज पर खडे होकर फूहड़ बातें करके जनता को हंसाने की कोशिश करनेवाले इन स्टैंडअप कॉमेडियंस को इसकी परवाह कहां। अभी पिछले दिनों एक वीडियो सुन रहा था जिसमें एक स्टैंडअप कॉमेडियन कहता है कि वो इस वजह से नास्तिक बन गया क्योंकि अगर वो नास्तिक नहीं बनता तो उसको ब्राह्मण कहलाना पड़ता। फिर अपनी मुद्राओं से लोगों को हंसाने की कोशिश करता है और बोलने के क्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आईएसआईएस को एक ही कोष्ठक में रखते हुए आगे निकल जाता है। ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जहां हिंदू प्रतीकों और देवताओं का मजाक उड़ाते नजर आते हैं। 
स्टैंडअप कॉमेडियंस की जो फौज इन दिनों यूट्यूब पर है उसमें से ज्यादातर ये मानते हैं कि विवादित बातें करके ही लोगों को अपनी ओर आकृष्ट किया जा सकता है। विवादप्रियता की वजह से ये लोग हिंदू देवी-देवताओं के बारे में उलजलूल बोलते हैं। उनको ये बात भी अच्छी तरह से मालूम है कि हिंदू समाज सहिष्णु है और वो बहुत जल्दी इस तरह की किसी बात पर उत्तेजित नहीं होता है। ये सब इसी सहिष्णुता का फायदा उठाकर हिंदू देवी-देवताओं के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी तक कर जाते हैं। एक कॉमेडियन तो भगवान शिव के बारे में इतनी आपत्तिजनक बातें कह गया है कि उसको लिखा भी नहीं जा सकता है। लेकिन जब हिंदू के अलावा किसी और धर्म की बात आती है तो इनकी जुबान तालू से चिपक जाती है। आपको याद होगा कि कुछ साल पहले एआईबी ने क्रिश्चियन समुदाय से बिना शर्त माफी मांगी थी। एक कार्यक्रम में इन लोगों ने कथित तौर पर जीजस और चर्च के खिलाफ कुछ टिप्पणी कर दी थी। उनकी टिप्पणी के सार्वजनिक होने के बाद एआईबी के खिलाफ कुछ क्रिश्चियन संगठनों के बयान आए थे। फौरन बाद एआईबी ने मुंबई के बिशप से मिलकर बिना शर्त लिखित माफी मांगी थी। माफी मांगनेवालों में जो लोग शामिल थे उनमें तन्मय भट्ट, गुरसिमरन, आशीष शाक्य और रोहन जैसे स्टैंडअप कॉमेडियन शामिल थे। बिशप ने इनका माफीनामा सार्वजनिक कर दिया था। इस्लाम को लेकर तो खैर कोई टिप्पणी आती ही नहीं। एंकर अर्णब गोस्वामी से विमान में सवाल पूछने का वीडियो जारी कर प्रचार हासिल करनेवाले कुणाल कामरा के बारे में मुझे किसी ने बताया कि उन्होंने कुछ समय पहले अपने ट्वीटर हैंडल से इस्लाम के बारे में की गई सारी टिप्पणियां हटा दी थीं। ये वही कुणाल कामरा है जो हिंदू धर्म और प्रतीकों के बारे में टिप्पणी करके खुद को परमवीर समझते हैं।    
स्टैंडअप कॉमेडियंस इतने पर ही नहीं रुकते, ये तो इतने संवेदनहीन हैं कि बलात्कार पीड़िता से लेकर एसिड अटैक पीड़िताओं तक का मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते। हैरत इस बात पर होती है कि हमारे समाज में वो कौन लोग हैं जो इतने संवेदनशून्य हो चुके हैं कि इन पीड़िताओं के सार्वजनिक मजाक में भी उनको हास्य नजर आता है। पिछले दिनों सौरभ घोष नाम के कॉमेडियन ने छत्रपति शिवाजी का मजाक उड़ाया था, एक महिला कॉमेडियन ने भी। शिवाजी महाराज का मजाक उड़ाने का जब विरोध हुआ तो उस महिला ने एक वीडियो जारी करके माफी मांगी। इसका एक और पहलू भी है जहां से इस तरह की संवेदनहीन और आपत्तिजनक बातें करनेवालों को ताकत मिलती है। हिंदू देवी-देवताओं या प्रतीकों का जब मजाक उड़ाया जाता है और उसका विरोध होता है तो कथित तौर पर खुद को लिबरल कहनेवाली पूरी जमात उनके समर्थन में खड़ी हो जाती है। विरोध करनेवालों को संघी और भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल से जुड़ा बताकर मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश होती है। सोशल मीडिया पर तो इस विरोध को मोदी से जोड़ दिया जाता है और विरोध करनेवालों को भक्त आदि कहकर इस तरह से प्रचारित करने की कोशिश होती है कि हिंदूवादी कितने असहिष्णु हैं। सोशल मीडिया पर ये कथित लिबरल्स एक और खेल खेलते हैं। वो किसी एक ऐसे व्यक्ति को खोजते हैं जिसकी टिप्पणी स्तरहीन होती है और फिर उसको मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जोड़कर शोर मचाने लगते हैं कि देखो सारे हिंदू ऐसे ही हैं। सवाल इन लिबरल्स का नहीं है, सवाल तो उन स्टैंडअप कॉमेडियंस का है जो हिंदू धर्म और उसके प्रतीकों का मजाक उड़ाते हुए एक बड़ी जनसंख्या की आस्था को अपमानित करते हैं। हुसैन के केस में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि ‘शब्द, पेंटिंग, रेखाचित्र और भाषण के माध्यम से अभिव्यक्ति की आजादी को संविधान में जो अधिकार मिला है वो हर नागरिक के लिए अमूल्य है। कोई भी कलाकार या पेंटर मानवीय संवेदना और मनोभाव को कई तरीकों से अभिव्यक्त कर सकता है। इन मनोभावों और आइडियाज की अभिव्यक्ति को किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता है । लेकिन कोई भी इस बात को विस्मृत नहीं कर सकता कि जितनी ज्यादा स्वतंत्रता होगी उतनी ही ज्यादा जिम्मेदारी भी होती है।‘ स्टेज पर बजनेवाले पुंगियों के समर्थक लिबरल्स को ये बात कब समझ में आएगी पता नहीं, लेकिन जिस रफ्तार से इंटरनेट पर इस तरह के वीडियो अपलोड हो रहे हैं वो चिंता की बात है। देश को और सरकार को इसपर विचार करना ही चाहिए। 

3 comments:

Unknown said...

गंभीर विषय को सरल शब्दों से पाठकों के संज्ञान में लाया गया है बहुत आभार

शिवम कुमार पाण्डेय said...

सरकार को ऐसे लोगो के सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। हर ये "विकलांग मानसिकता" वालो ने भसड मचा के रखा हुआ है इनके खिलाफ उचित कार्रवाई होना चाहिए..

Rajat said...

Sahi baat 👍