Translate

Thursday, July 30, 2020

कलात्मक स्वतंत्रता के नाम पर...

पिछले दिनों दो ऐसी खबरें आईं जिसने ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटऑर्म की बढ़ती लोकप्रियता की ओर इशारा किया। पहली खबर तो ये कि पिछले तीन महीनों में डेढ करोड़ ग्राहकों ने नेटफ्लिक्स का एप डाउनलोड किया। ये इतनी बड़ी संख्या है जिसकी कल्पना नेटफ्लिक्स के कैलिफोर्निया में बैठे कर्ताधर्ताओं ने सपने में भी नहीं की होगी। इस संख्या में उनको व्यापक संभावना नजर आ रही है, बहुत बड़ा बाजार नजर आ रहा है और इसके साथ ही मुनाफे का एक ऐसा फॉर्मूला भी उनके हाथ लग गया है जिसमें जोखिम कम है। अगर हम सिर्फ इस डेढ़ करोड़ की संख्या को ही लें और उसको सबसे कम यानि 199 रु प्रतिमाह की सदस्यता शुल्क के आधार पर देखें तो करीब तीन अरब रुपए प्रतिमाह का कारोबार होता है। ये तो सिर्फ इन तीन महीनों में बने नए ग्राहकों के न्यूनतम सदस्यता शुल्क के आधार पर कारोबार का टर्न ओवर है। अब जरा इसी से जुड़ी दूसरी खबर पर विचार कर लेते हैं। एक और प्लेटफॉर्म है जिसका नाम है एमएक्स प्लेयर। इसपर एक वेब सीरीज है जिसका नाम है मस्तराम। एक एजेंसी के आंकड़ों के मुताबिक इस वेब सीरीज को तीन जुलाई को एक दिन में एक करोड़ दस लाख से अधिक दर्शकों ने देखा। इसके मुताबिक इसको अबतक छत्तीस करोड़ से अधिक लोग देख चुके हैं। ये वेब सीरीज तमिल, तेलुगू और हिंदी में उपलब्ध है और ये संख्या इन तीन भाषाओं के दर्शकों को मिलाकर है। निर्माता इस वेब सीरीज को भले ही वयस्क की श्रेणी में डालकर पेश कर रहे हों लेकिन ये है अश्लील। मस्तराम के नाम से कुछ वर्षों पूर्व पीली पन्नी में लपेटकर इरोटिक पुस्तकें बेची जाती थीं लेकिन अब ये खेल खुलकर चल रहा है। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर न केवल यौनिकता को खुलकर बढ़ावा दिया जा रहा है बल्कि वहां हमारे देश और देश की संस्थाओं के खिलाफ भी बहुधा अमर्यादित टिप्पणियां की जा रही हैं। 
अगप हम देखें तो वेब सीरीज में गाली गलौच और यौनिकता की शुरुआत को विदेशा कंटेंट से हुई लेकिन कुछ भारतीय निर्माताओं ने इसकी भौंडी नकल करनी शुरू कर दी और वो हिंसा और यौनिकता दिखाने में जुट गए। इसके अलावा उनकी जो राजनैतिक विचारधारा है उसका प्रकचीकरण भी उनके द्वारा निर्मित वेब सीरीज में दिखाई देने लगा। अगर विचार करें तो इस तरह को मामलों ने जोर पकड़ा लस्ट स्टोरीज और सेक्रेड गेम्स के बाद । ‘सेक्रेड गेम्स’ 2006 में प्रकाशित विक्रम चंद्रा के इसी नाम के उपन्यास पर बनाया गया धारावाहिक था, जिसको अनुराग कश्यप और विक्रमादित्य मोटवाणी ने निर्देशित किया है। भारतीय बाजार में सफलता के लिए कुछ तय फॉर्मूला है जिसपर चलने से कामयाबी मिल जाती है। ये फॉर्मूले हैं धर्म, हिंसा, सेक्स और अनसेंसर्ड सामग्री दिखाना। नेटफ्लिक्स ने ‘लस्ट स्टोरीज’ और ‘सेक्रेड गेम्स’ में इन फॉर्मूलों का जमकर इस्तेमाल किया।‘लस्ट स्टोरीज’ में भी सेक्स प्रसंगों को भुनाने की मंशा दिखती है। अनुराग कश्यप अपनी फिल्मों में गाली-गलौच वाली भाषा के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने यही काम इस सीरीज में भी किया है। फिल्म, धारावाहिक या साहित्य तो ‘जीवन’ जैसी कोई चीज है ‘जीवन’ तो नहीं है। अगर हम धारावाहिक या फिल्म में ‘जीवन’ को सीधे-सीधे उठाकर रख देते हैं तो यह उचित नहीं होता है। जीवन को जस का तस कैमरे में कैद करना ना तो फिल्म है ना ही धारावाहिक। जिस भी फिल्म में इस तरह का फोटोग्राफिक यथार्थ दिखता है वो कलात्मक दृष्टि से श्रेष्ठ नहीं माना जाता है।‘सेक्रेड गेम्स’ में सेक्स प्रसंगों की भरमार है, अप्राकृतिक यौनाचार के भी दृश्य हैं, नायिका को टॉपलेस भी दिखाया गया है। हमारे देश में इंटरनेट पर दिखाई जानेवाली सामग्री को लेकर पूर्व प्रमाणन जैसी कोई व्यवस्था नहीं है लिहाजा इस तरह के सेक्स प्रसंगों को कहानी में ठूंसने की छूट है जिसका लाभ उठाया गया है।
इन वेब सीरीज के माध्यम से दलितों, अल्पसंख्यकों के अधिकारों और राष्ट्रवाद की भ्रामक परिभाषाओं के
आधार पर एक अलग तरह का नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश की गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों के क्रियाकलापों को कट्टरता से जोड़कर एक अलग ही तरह की तस्वीर पेश करने की कोशिशें भी की गई। इसका उदाहरण वेब सीरीज ‘लैला’ में देखा जा सकता है। ये सीरीज लेखक प्रयाग अकबर के उपन्यास पर आधारित है। ये हिंदुओं के धर्म और उनकी संस्कृति की कथित भयावहता को दिखाने के उद्देश्य से बनाई गई है। इस वेब सीरीज का निर्देशन दीपा मेहता ने किया है। भविष्य के भारत को आर्यावर्त बताया गया है। आर्यावर्त के लोगों की पहचान उनके हाथ पर लगे चिप से होगी। यहां दूसरे धर्म के लोगों के लिए जगह नहीं होगी। कुल मिलाकर भविष्य के भारत को हिंदू राष्ट्र की तरह पेश किया गया है। ‘आर्यावर्त’ में अगर कोई हिंदू लड़की किसी मुसलमान लड़के से शादी कर लेती है तो उसके पति की हत्या कर लड़की को ‘शुद्धिकरण केंद्र’ लाया जाएगा। इस ‘शुद्धिकरण केंद्र’ का भी घिनौना चित्रण किया गया है। धर्म के अलावा इस वेब सीरीज में जातिगत भेदभाव को उभारा गया है ताकि सामाजिक विद्वेष बढ़े। इसमें बेहद शातिर तरीके से हिंदुत्व को बदनाम करने की मंशा दिखती है।
सेक्रेड गेम्स के दूसरे सीजन में निर्माताओं ने एक कदम और बढ़ा दिया। उनको मालूम है कि इस माध्यम पर किसी तरह की कोई बंदिश नहीं है लिहाजा वो सांप्रदायिकता फैलाने से भी नहीं चूके जो परोक्ष रूप से एक राष्ट्र के तौर पर भारत को कमजोर करता है। इसके एक संवाद में जब मुसलमान अभियुक्त से पुलिस पूछताछ के क्रम में कहती है कि उसको यूं ही नहीं उठाकर पूछताछ किया जा रहा है तो अभियुक्त कहता है कि इस देश में मुसलमानों को उठाने के लिए किसी वजह की जरूरत नहीं होती है। अब इस बात पर विचार किया जाना आवश्यक है कि इस सीरीज के निर्माता और निर्देशक इस तरह के संवाद किसी पात्र के माध्यम से सामने रखकर क्या हासिल करना चाहते हैं। इस तरह के कई प्रसंग और संवाद इस सीरीज में है। जो मुसलमानों के मन में देश की व्यवस्था के खिलाफ गुस्से और नफरत के प्रकटीकरण की आड़ में उनको उकसाते हैं। इसी तरह से अभी एक वेब सीरीज आई पाताल लोक, इस सीरीज में भी मुसलमानों को लेकर बेहद ही अगंभीर टिप्पणियां की गईं और परोक्ष रूबप से ये बताने की कोशिश की गई कि भारतीय एजेंसियां मुसलमानों को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रसित रहती हैं। इस वेब सीरीज में साफ तौर पर पुलिस और सीबीआई दोनों को मुसलमानों के प्रति पूर्वग्रह से ग्रसित दिखाया गया। थाने में मौजूद हिंदू पुलिसवालों के बीच की बातचीत में मुसलमानों को लेकर जिस तरह के विशेषणों का उपयोग किया जाता है उससे ये लगता है कि पुलिस फोर्स सांप्रदायिक है। इसी तरह से जब इस वेब सीरीज में न्यूज चैनल के संपादक की हत्या की साजिश की जांच दिल्ली पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंपी जाती है, और जब सीबीआई इस केस को हल करने का दावा करने के लिए प्रेस कांफ्रेंस करती है तो वहां तक उसको मुसलमानों के खिलाफ ही दिखाया गया है। मुसलमान हैं तो आईएसआई से जुड़े होंगे, नाम में एम लगा है तो उसका मतलब मुसलमान ही होगा आदि आदि। संवाद में भी इस तरह के वाक्यों का ही प्रयोग किया गया है ताकि इस नेरेटिव को मजबूती मिल सके। और अंत में ऐसा होता ही है कि सीबीआई मुस्लिम संदिग्ध को पाकिस्तान से और आईएसआई से जोड़कर उसे अपराधी साबित कर देती है। कथा इस तरह से चलती है कि जांच में क्या होना है ये पहले से तय है, बस उसको फ्रेम करके जनता के सामने पेश कर देना है। अगर किसी चरित्र को सांप्रदायिक दिखाया जाता तो कोई आपत्ति नहीं होती, आपत्तिजनक होता है पूरे सिस्टम को सांप्रदायिक दिखाना जो समाज को बांटने के लिए उत्प्रेरक का काम करती है। बात यहीं तक नहीं रुकती है, इस वेब सीरीज में तमाम तरह के क्राइम को हिंदू धर्म के प्रतीकों से जोड़कर दिखाया गया है।
ये सब सिर्फ इन ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ही नहीं दिखाय जा रहा है बल्कि फिल्मों में भी परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप से इस तरह के प्रसंगों को फिल्माया जाता है। अगर हम एक फिल्म मुक्काबाज की बात करें तो उसमें एक जगह एक संवाद है, वो आएंगें भारत माता की जय बोलेंगे और तुम्हारी हत्या करके चले जाएंगे। अब इस संवाद का फिल्म में जहां उपयोग हुआ है उसकी जरूरत बिल्कुल भी नहीं है लेकिन फिर भी निर्देशक को अरनी विचारधारा को आगे बढ़ाना है और भारत माता की जय बोलनेवाले को नीचा दिखाना है लिहाजा वो उसको ठूंस देते हैं। फिल्मों में चूंकि प्रमाणन की व्यवस्था है इसलिए ये दबे छुपे होता है लेकिन होता है। लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कोई बंधन नहीं है किसी तरह का नियमन नहीं है लिहाजा वहां स्वच्छंदता है। कई बार ये तर्क दिया जाता है कि इन प्लेटफॉर्म पर जानेवाले लोग जानते हैं कि वो क्या करने जा रहे हैं. वो इनकी सदस्यता लेते हैं, शुल्क अदा करते हैं और उसके बाद वेब सीरीज देखते हैं। तो किसी को भी क्या सामग्री देखनी है ये चयन करने का अधिकार तो होना ही चाहिए। ठीक बात है, कि हर किसी को अपनी रुचि की सामग्री देखने का अधिकार होना चाहिए लेकिन उन अपरिपक्व दिमाग वाले किशोरों का क्या जिनके हाथ में बड़ी संख्या में स्मार्टफोन भी है, उसमें इंटरनेट कनेक्शन भी है और इतने पैसे तो हैं कि वो इन ‘ओवर द टॉप’ प्लेटफॉर्म की सदस्यता ले सके। क्या हम या इन प्लेटफॉर्म पर सामग्री देनेवाली संस्थाएं ये चाहती हैं कि हमारे देश के किशोर मन को अपरिपक्वता की स्थिति से ही इस तरह से मोड दिया जाए कि आगे चलकर इस तररह की सामग्री को देखनेवाला एक बड़ा उपभोक्ता वर्ग तैयार हो सके। इसके अलावा जो एक और खतरनाक बात यहां दिखाई देती है वो ये कि इन प्लेटफॉर्म्स पर कई तरह के विदेशी सीरीज भी उपलब्ध हैं जहां पूर्ण नग्नता परोसी जाती है। ऐसी हिंसा दिखाई जाती है जिसमें मानव शरीर को काटकर उसकी अंतड़ियां निकाल कर प्रदर्शित की जाती हैं। जिस कंटेंट को भारतीय सिनेमाघरों में नहीं दिखाया जा सकता है उस तरह के कंटेंट वहां आसानी से उपलब्ध हैं। चूंकि वेब सीरीज के लिए किसी तरह का कोई नियमन नहीं है लिहाजा वहां बहुत स्वतंत्र नग्नता और अपनी राजनीति चमकाने या अपनी राजनीति को पुष्ट करनेवाली विचारधारा को दिखाने का अवसर उपलब्ध है। लेकिन अब वक्त आ गया है कि सरकार इन वेब सीरीज के नियमन के बारे में जल्द से जल्द विचार करे।  

No comments: