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Saturday, January 6, 2024

भक्ति ज्ञान और सदाचार की त्रिवेणी


अयोध्या में श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के पहले देश के अनेक शहरों में दैनिक जागरण श्रीरामोत्सव की चर्चा कवि चेतन कश्यप से हो रही थी। बातचीत के क्रम में उन्होंने बताया कि गायक मुकेश ने श्रीरामचरितमानस को आज से 50 वर्ष पूर्व गाया था। मुकेश के गाए चौपाइयों का पहला एलपी रिकार्ड एचएमवी से 1973 में आया था। ये बालकांड पर आधारित था। तब एचएमवी ने ये घोषणा की थी कि तुलसी रामायण, भारत व्यापी मानस चतु:शताब्दी समारोह में एचएमवी के योगदान स्वरूप एक विशिष्ट एल्बम के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। पहले एल्बम को पहला पुष्प बताया गया था। मानस की चतु:शताब्दी के शुभ अवसर पर मानस के रचयिता का पुण्य स्मरण स्वाभाविक था। कहा गया था कि गोस्वामी तुलसीदास हिंदी भाषा के तो सर्वश्रेष्ठकवि हैं ही संसार भर में वो सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रतिष्ठित महाकवि माने जाते हैं। उनका सबसे महान ग्रंथ रामचरितमानस है जिनकी चौपाइयां और दोहे शिलालेख और सुभाषित पुष्प बन गए हैं। उन्होंने जनता के मनोराज्य में रामराज्य के आदर्शों को सदा के लिए प्रतिष्ठित कर दिया है। 1974 में उन्होंने मानस के सभी खंडों को गाया था जिसका रिकार्ड भी तब आया था, जो आज भी बेहद लोकप्रिय है। आज भी मुकेश के गाए इन चौपाइयों का अपना अलग महत्व और लोकप्रियता है। कहनेवाले तो यहां तक कहते हैं कि अगर मुकेश के एक काम को याद किया जाएगा तो वो है उनका ये गायन। तुलसी रामायण के नाम से आए इस रिकार्ड का जो कवर था उसके ऊपर एक टिप्पणी भी प्रकाशित थी, ‘तुलसी रामायण की कथावस्तु रामचरितमानस से संकलित है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस का शुभारंभ विक्रम संवत 1631 में रामनवमी के दिन अयोध्या में किया था। विगत चार सौ वर्षों में रामचरितमानस की लोकप्रियता और प्रतिष्ठा निरंतर बढ़ती रही है। किसान का कच्चा मकान हो या आलीशान राजमहल , गृहस्थ का घर हो या महात्मा का आश्रम, देश हो या विदेश, सर्वत्र रामचरितमानस हिंदी भाषा का सर्वोत्तम और सर्वमान्य पवित्र ग्रंथ माना जाता है। निरक्षर श्रोता हो शास्त्री वक्ता ,सामानय जन हो या अतिविशिष्ट व्यक्ति, हिंदी भाषी हो या अहिंदी भाषी, देशी भाष्यकार हो या विदेशी अनुवादक, सबने रामचरितमानस से महत्व को शिरोधार्य किया। अनेक देशी और विदेशी भाषा में ये ग्रंथ अनुदित है। किंतु सर्वोपरि महत्व तो रामचरितमानस का यह है कि इसकी पावन वाणी कोटि-कोटि जन के मन में भक्ति ज्ञान और सदाचार की त्रिवेणी बनी है। विगत चार सौ वर्षों से रामचरितमानस जनमानस में राम भक्ति का कमल खिलानेवाले सूर्य के समान प्रकाशित रहा है।‘ आज से 50 वर्ष पूर्व जो एल्बम आया था उसमें मुकेश के अलावा वाणी जयराम, कृष्णा कल्ले, पुष्पा पागदरे, प्रदीप चटर्जी, सुरेन्द्र कोहली और अंबर कुमार की आवाज भी थी। इसकी संगीत रचना मुरली मनोहर स्वरूप ने की थी और संकलन पंडित नरेन्द्र शर्मा ने किया था। इस समय जब पूरा देश राममय हो रहा है तब मुकेश के साथ इन कलाकारों के योगदान का स्मरण भी किया जाना चाहिए। उस दौर में जब तकनीक इतनी उन्नत नहीं थी तब भी मुकेश के गाए तुलसी रामायण हर उस घर में गूंजती थी जिस घर में रिकार्ड प्लेयर होता था। 

श्रीरामचरितमानस की लोकप्रियता का कारण कई वामपंथी विचारक इसका धर्म से जुड़ा होना मानते हैं। उनका मत है कि तुलसीदास ने चूंकि धर्म और भगवान पर लिखा इस कारण श्रीरामचरितमानस लोकप्रिय है। ऐसे विचारक जब इस तरह की टिप्पणी करते तो यह भूल जाते हैं कि यदि भगवान, धर्म और भक्ति ही किसी रचना का आधार होती तो भक्तिकाल के लगभग सभी कवि लोकप्रिय होते। उस काल के सभी कवियों ने इन्हीं को आधार बनाकर लिखा। लेकिन न तो सूरदास, न केशवदास न ही नाभादास जैसे भक्तिकाल के कवियों को तुलसीदास और उनकी कृति श्रीरामचरितमानस जैसी लोकप्रियता मिल पाई। विश्वनाथ त्रिपाठी ने लिखा है कि ‘तुलसीदास की लोकप्रियता का कारण यह है कि उन्होंने अपनी कविता में अपने देखे हुए जीवन का बहुत गहरा और व्यापक चित्रण किया है। उन्होंने राम के परंपरा प्राप्त रूप को अपने युग के अनुरूप बनाया। उन्होंने राम की संघर्ष कथा को अपने समकालीन समाज और अपने जीवन के संघर्ष कथा के आलोक में देखा। उन्होंने वाल्मीकि और भवभूति के राम को पुन:स्थापित नहीं किया है, अपने युग के राम को चित्रित किया है। उनके दर्शन और चित्रण के राम ब्रह्म हैं लेकिन उनकी कविता के राम लोक-नायक हैं।‘ त्रिपाठी ने जो लोक-नायक शब्द उपयोग किया है उसका जो लोक है उसमें ही तुलसी के रामचरित की लोकप्रियता के कारण हैं। लोक में राम या कह सकते हैं कि लोक के राम। राम का जो चरित्र चित्रण तुलसी ने किया है उसमें कहीं भी अहंकार नहीं है। लोक कभी भी अहंकारी नायकों को पसंद नहीं करता है। इसके अलावा राम का जो समर्पण दिखता है वो अप्रतिम है। जब वो छात्र होते हैं तो अपने गुरू के लिए समर्पित होते हैं, जब पुत्र होते हैं तो पिता के लिए, उनके वचन के लिए राज का त्याग कर वन गमन कर जाते हैं। कहीं किसी प्रकार का मलाल नहीं, क्षोभ नहीं। जब पति होते हैं तो पत्नी की हर इच्छा को पूरी करने का समर्पण दिखता है। पत्नी के खिलाफ हुए अत्याचार का प्रतिकार करने के लिए अयोध्या से सेना नहीं बुलाते, अपने दम पर अपनी सेना बनाते हैं और रावण को सबक सिखाते हैं। जब मित्र होते हैं तो सुग्रीव के साथ खड़े होते हैं। 

यह अकारण नहीं है कि प्रेमचंद भी कहते हैं कि उनके आदर्श राम और कृष्ण हैं। 1932 में प्रेमचंद ने एक निबंध लिखा था जाग्रति। उसमें वो लिखते हैं कि ‘हमारे जीवन का उद्देश्य प्रभुत्व की प्राप्ति नहीं बल्कि परमार्थ संचय है। हमारे जीवन का आदर्श स्वार्थ की अंधी उपासना नहीं संसार की निधि को समेटकर अपनी थैली में भर लेना नहीं वरन संसार में इस तरह रहना है कि हमसे किसी को हानि न हो। किसी को कष्ट न हो किसी का गला न दबे। हमारे आदर्श चरित्र नेपोलियन जैसे नहीं जो संसार पर अधिकार प्राप्त करना चाहता था न क्लाइब और क्रामबेल जैसे न ही लेनिन और मुसोलिनी जैसे। हमारे आदर्श चरित्र कृष्ण और राम और अशोक जैसे राजा अर्जुन और भीष्म जैसे योद्धा और गांधी जैसे गृहस्थ हैं। हमारा विश्वास संघर्ष में नहीं सहयोग में है। प्रेमचंद की इन पंक्तियों में हमें तुलसी के राम का चरित स्पष्ट रूप से दिखता है। बाल्यकाल से लेकर राज्याभिषेक तक श्रीराम कहीं भी संघर्ष के लिए उद्यम करते नहीं दिखते। रामचरित में सहयोग का भाव है। इसलिए जब मुकेश रामचरित को गाते हैं तो लोगों के दिल को छूते हैं। पंति नरेन्द्र शर्मा का सहयोग भी इस एल्बम में मिला था। नरेन्द्र शर्मा ऐसे कवि गीतकार थे जिन्होंने भारतीय परंपरा और शब्द संपदा का उपयोग अपने गीतों में किया और लोकप्रियता भी हासिल की। लता मंगेशकर जब ‘राम रतन धन पायो’ नाम का एल्बम तैयार कर रही थीं तब नरेन्द्र शर्मा ने उनसे कहा कि ‘राम ऐसे अकेले भगवान हुए हैं कि अगर कोई उनकी तन मन से सेवा करे तो तो उसका सारा कार्य सिद्ध होता है। राम ही वो ईश्वर हैं जो सत्य के छोर पर खड़े होकर आपको अंत में निर्वाण की दशा में ले जाते हैं। नरेन्द्र शर्मा की इस बात का लता पर इतना असर हुआ कि उनकी राम में श्रद्धा बढ़ने लगी थी। लता ने माना था कि ‘तभी से मैं राम भक्त हूं और मैं मानती हूं कि उनके जैसा चरित्र बल किसी दूसरे पौराणिक किरदार में नहीं मिलेगा। राम और उनके चरित की लोक में इतनी व्याप्ति है कि हर कोई उनमें अपना आदर्श ढूंढ लेता है। 


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