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Saturday, January 6, 2024

भारतीय स्थापत्य कला का परम वैभव


अयोध्या के नव्य श्रीराममंदिर में प्रथम तल का कार्य लगभग पूर्ण होने को है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने निर्माणाधीन मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थापित गज, सिंह और गरुड़ जी की मूर्तियों के चित्र साझा किए हैं। ये सीढ़ियों के दोनों तरफ लगाए गए हैं। ये मूर्तियां राजस्थान के वंसी पहाड़पुर के हल्के गुलाबी रंग के बलुआ पत्थर से बनी है। श्रीरामजन्मभूमि मंदिर में राजस्थान के बंसी पहाड़पुर इलाके में मिलनेवाले गुलाबी पत्थर का काफी उपयोग हुआ है। श्रीराम मंदिर की इन सीढ़ियों से ऊपर चढ़ेंगे तो इन मूर्तियों में भारतीय परंपरा के अनुरूप गज की सूंढ़ में पुष्पमाला दिखेगी जो भारतीय स्थापत्य कला को दर्शाता है। भारतीय परंपरा में जिसे शार्दूल कहते हैं उस सिंह को सीढ़ियों के किनारे स्थापित किया गया है। ये सकारात्मक संभावनाओं को बढ़ानेवाला स्वरूप माना जाता है। सीढ़ियों के तीसरे सतह पर हनुमान जी दक्षिणाभिमुख हाथ प्रणाम की मुद्रा में खड़े हैं और उनके सम्मुख गरुड़ जी की उत्तराभिमुख हाथ जोड़े मुद्रा में प्रतिमा स्थापित की गई है। मंदिर के गर्भगृह के पहले तीन मंडप बनाए गए हैं। सीढ़ियों से जब आप गर्भगृह की तरफ बढ़ेंगे तो सबसे पहले नृत्य मंडप है। नृत्य मंडप की छतरी आठ स्तंभों पर टिकी हुई है। इन आठ स्तंभों पर भगवान शिव की विभिन्न मुद्राओं में नृत्य करते हुए मनोहारी चित्र उकेरे गए हैं। इसमें भगवान शिव का परम कल्याणकारी रूप सदाशिव, शिव और पार्वती के अलावा नंदी पर सवार शिव की मूर्तियां बनाई गई हैं। एक स्तंभ पर शिव अपने पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं। शिव के इन विभिन्न स्वरूपों को भी पत्थरों पर बारीकी से उकेरा गया है और ये मूर्तियां बहुत ही जीवंत वातावरण का निर्माण करती हैं। 

नृत्यमंडप से जब भक्तगण गर्भगृह की ओर बढ़ते हैं तो एक और मंडप मिलता है जिसका नाम है रंगमंडप। नृत्यमंडप और रंगमंडप के बीच आरंभ के चार स्तंभों पर गणपति जी की विशिष्ट और विभिन्न मुद्राएं उकेरी गई हैं। गणपति को अभय मंगल और शुभ का देवता माना जाता है। ये सभी स्तंभ पत्थरों से निर्मित किए गए हैं और इनमें किसी प्रकार के लोहे का उपयोग नहीं किया गया है। जब आप रंगमंडप से आगे बढ़ेंगे तो आपको गुड़ी मंडप या सभा मंडप मिलेगा। रंगमंडप और गुड़ी मंडप के बीच के चार स्तंभों पर भी गणपति की मूर्तियां उकेरी गई हैं। गुड़ी मंडप में प्रभु श्रीराम के बालरूप से लेकर यौवनावस्था तक के विभिन्न रूपों की मूर्तियां दीवारों और स्तंभों पर बनाई गई हैं। इसके अलावा इन्हीं स्तंभों और दीवारों पर विष्णु के दशावतार की मूर्तियां भी बनाई गई हैं। श्रीरामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र से मिली जानकारी के अनुसार मंदिर के विभिन्न मंडपों के खंभों और दीवारों पर अनेक देवी देवताओं और देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी जा रही हैं। गुड़ी मंडप की बाईं ओर प्रार्थना मंडप और दाईं ओर कीर्तन मंडप बनकर लगभग तैयार है। गुड़ी मंडप के ठीक सामने गर्भगृह बनाया गया है। 

गर्भगृह के मुख्य द्वार पर जय विजय की मूर्ति द्वारपाल के रूप मे लगाई गई है। सनातन परंपरा में जय विजय स्वर्ग के द्वारपाल माने जाते हैं। अबतक आप गुलाबी पत्थर पर इन मूर्तियों को देख रहे थे लेकिन जहां से गर्भगृह आरंभ होता है वहां से सफेद संगमरमर का काम दिखने लगता है। सभी स्तंभ और दीवारें सफेद हैं। मूर्तियां भी इन सफेद संगमरमर शिलाओं पर ही उकेरी गई हैं। गर्भगृह के चौखट पर दोनों तरफ चंद्रधारी गंगा यमुना की बहुत ही सुंदर मूर्तियां बनाई गई हैं। एक तरफ गंगा जी हाथ में कलश लिए हुए मकरवाहिनी स्वरूप में हैं तो दूसरी तरफ यमुना जी कूर्मवाहिनी स्वरूप में स्थापित की गई हैं। गर्भगृह की बाईं तरफ बड़े से मंडप में एक ताखे पर गणेश जी की मूर्ति है और उसके ऊपर रिद्धि सिद्धि और शुभ लाभ के चिन्ह बनाए गए हैं। यहां आकर गर्भगृह के पहले ही भक्तों को भारतीय परंपरा और लोक में प्रचलित देवी देवताओं के दर्शन होते हैं। एक ताखे में हनुमान जी की प्रणाम मुद्रा की मूर्ति के ऊपर अंगद, सुग्रीव और जामवंत की मूर्तियां बनाई गई हैं। इनसे गर्भगृह तक पहुंचते पहुंचते भक्त पूरी तरह से रामकथा में डूब जाते हैं । 

गर्भगृह के मुख्यद्वार के ठीक ऊपर समस्त सृष्टि के पालक विष्णु भगवान की शेषनाग पर लेटी मुद्रा को पत्थर पर उकेरा गया है। भगवान राम और कृष्ण को विष्णु भगवान का ही अवतार माना जाता है। इस कारण से गर्भगृह के मुख्यद्वार पर शेषशायी भगवान विष्णु का चित्र उकेरा गया है। शेषनाग के विग्रह की शैया पर लेटे हुए भगवान विष्णु के मस्तक पर मुकुट है। उनके पांव के पास धन और वैभव की देवी लक्ष्मी जी बैठी हुई हैं। हमारे पौराणिक और धर्मिक ग्रंथों में भगवान के तीन स्वरूप बताए गए हैं, ब्रह्मा विष्णु और महेश। ब्रह्मा जी इस समस्त सृष्टि के निर्माता, विष्णु जी समस्त सृष्टि के पालनकर्ता और शिवजी यानि महेश को सृष्टि का संहारक कहा जाता है। गर्भगृह के मुख्यद्वार के ऊपर शेषशैया पर लेटे विष्णु भगवान के साथ ब्रह्माजी और शिवजी की मूर्तियां भी बनाई गई हैं। गर्भगृह के द्वार के ऊपर जहां ये मूर्तियां बनाई गई हैं वो एक अर्धचंद्राकार क्षेत्र है। इस अर्धचंद्राकार की परिधि पर ही सूर्य, चंद्रमा और गरुड़ जी की मूर्तियां बनाई गई हैं। 

नव्य श्रीराम मंदिर पूरा गर्भगृह सफेद संगमरमर के पत्थरों से बना है और नागर शैली में बने इस मंदिर के गर्भगृह की गोलाकार छत में बेहद सुंदर अलंकरण किया गया है। गोलाकार छत के ठीक नीचे प्रभू श्रीराम के नव्य विग्रह के लिए एक चबूतरा बनाया है जो तीन स्तर का है। चबूतरे के सबसे पीछे वाले हिस्से में भगवान श्रीराम के बाल्यवस्था की मूर्ति लगाई जाएगी। ये मूर्ति पांच फीट की है जिसमें 51 इंच पर प्रभु श्रीराम का मस्तक है। मंदिर का डिजाइन इस प्रकार से बनाया गया है कि प्रत्येक रामनवमी पर श्रीराम के मस्तक पर सूर्यकिरण का अभिषेक होगा। अब तक जो सूचनाएं आ रही हैं उसके अनुसार कर्नाटक के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने ये मूर्ति बनाई है। अरुण योगीराज की बनाई मूर्ति शास्त्रों में वर्णित प्रभु श्रीराम के रूपरंग के अनुरूप श्यामल रंग की है। इस मूर्ति को भी कर्नाटक के पत्थर से तैयार किया गया है। नव्य प्रतिमा के लिए वस्त्र और आभूषण तैयार किए जा रहे हैं। गर्भगृह के इस चबूतरे के दूसरे हिस्से पर श्रीराम का जो विग्रह इस समय अस्थायी मंदिर में है उसको स्थापित किया जाएगा। उनके साथ वहां लक्ष्मण जी और भरत जी के विग्रह भी स्थापित होंगे। तीसरे सतह पर श्रीराम के पूजा पाठ की सामग्री और घंटियां आदि रखी जाएंगी। मंदिर के द्वितीय तल पर भव्य रामदरबार होगा। 22 जनवरी को होनेवाले प्राण प्रतिष्ठा के समय तक प्रथम तल ही तैयार हो पाएगा। 

मंदिर के लोअर प्लिंथ यानि भूतल से पांच फीट ऊपर तक गुलाबी पत्थरों पर वाल्मीकि रामायण के आधार राम जन्म से लेकर राम राज्याभिषेक तक की मूर्तियां उकेरी जाएंगीं। इन मूर्तियों को संस्कार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रख्यात चित्रकार वासुदेव कामत के चित्रों के आधार पर तैयार किया जाएगा। इनमें से दो प्रसंग का आधार श्रीरामचरितमानस भी होगा, पहला अयोध्या का राजदरबार और चित्रकूट का बनवासी प्रसंग। इस तरह से देखें तो प्रभु श्रीराम के मंदिर में जिस प्रकार का स्थापत्य, चित्रकारी और मूर्तिकला का उपयोग किया जा रहा है वो पूरी तरह से भारतीय परंपराओं और कलाओं से जुड़ा है। जिस प्रकार मंदिर निर्माण की पूरी तकनीक भारतीय है उसी प्रकार से मंदिर में निर्मित सभी प्रसंग सनातनी हैं। कई जगह इसका उल्लेख मिलता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने जिस राममंदिर का निर्माण करवाया था वो कसौटी पत्थर के चौरासी स्तंभों तथा सात कलशों वाला विशाल मंदिर था। उस मंदिर के अवशेष ही मिले थे लेकिन अब श्रीराघवेंद्र सरकार को जो मंदिर बन रहा है वो भी भव्यता में कम नहीं है। श्रीरामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र के अनुसार पूरे मंदिर में 392 स्तंभ होंगें जो मंदिर और अयोध्या के वैभव को पुनर्स्थापित करेंगे। 


1 comment:

Nitish Tiwary said...

सुंदर लेख।