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Tuesday, December 15, 2009

कांग्रेस का महिला (अ)प्रेम

देश की प्रथम नागरिक यानि राष्ट्रपति महिला, लोकसभा की अध्यक्ष महिला, देश की सत्तरूढ पार्टी की अध्यक्ष महिला ...कांग्रेस पार्टी हर वक्त इस बात का दंभ भरती है कि उसने महिलाओं को आगे बढ़ाने और उसको अवसर देने के लिए पर्याप्त कदम उठाए हैं । यह ठीक है कि राष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष के पद पर महिलाओं को चुनवाकर कांग्रेस ने एक प्रतीकात्मक काम किया लेकिन अगर हम इसे व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो कांग्रेस के महिला सशक्तिकरण का दावा खोखला नजर आता है, और ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस की रुचि कुछ खास महिलाओं को आगे बढाने में है जिससे उसे इस बात का दावा करने में सहूलियत होती रहे कि पार्टी महिलाओं के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है ।
नौकरी के दौरान महिलाओं के सेक्सुअल हेरसमेंट के खिलाफ लंबे समय से बहस चल रही है । लगभग बारह साल पहले यानि उन्नीस सौ सनतानवे में सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं के सेक्सुअल हेरासमेंट को लेकर एक गाइडलाइन जारी किया था और हर कंपनी, विश्वविद्यालय और कॉलेजों के लिए यह अनिवार्य कर दिया था कि वहां इन शिकायतों पर गौर करने के लिए एक कमिटी बनाई जाए । इस कमेटी में आधी हिस्सेदारी महिलाओं की हो और इसमें एक वकील की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाए । सर्वोच्च न्यायलय के मुताबिक इस कमिटी की प्रमुख का महिला का होना अनिवार्य है । इस गाइडलाइन के जारी होने के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग ने संबंद्ध पक्षों से बातचीत शुरू की और लगभग नौ साल बाद प्रस्तावित कानून के लिए एक ड्राफ्ट तैयार हो पाया ।
बिल के ड्राफ्ट को तैयार हुए भी तीन साल हो गए लेकिन अब तक इसे संसद में पेश नहीं किया जा सका । पिछले दिनों प्रधानमंत्री से जब एक प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की तो मनमोहन सिंह ने जल्द ही इस विषय में कुछ करने का आश्वासन देकर इससे पल्ला झाड़ लिया । दरअसल द प्रीवेंशन ऑफ द सेक्सुअल हेरासमेंट एट द वर्कप्लेस बिल दो मंत्रालयों के बीच झूल रहा है और शास्त्री भवन के कमरों में धूल चाट रहा है । बाल और महिला क्लयाण मंत्री कृष्णा तीरथ का दावा है कि इस बिल को जल्द से जल्द कानूनी जामा पहना दिया जाएगा । कृष्णा तीरथ का दावा है कि बिल तैयार है और उसपर कानून मंत्रालय की सलाह ली जा रही है । लेकिन देश के कानून मंत्री से जब पूछा जता है तो उनका कहना है कि अभी प्रस्तवित बिल को देखा जाना बाकी है । संकेत साफ है कि सरकार अभी इस बिल को लेकर गंभीर नहीं है। इस तरह के बयानों से इस प्रस्तावित बिल को सरकार का उपेक्षा भाव साफ तौर पर परिलक्षित किया जा सकता है । कानून के जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस से काम की जगह पर यौन शोषण से निबटना आसान नहीं है । इस गाइडलाइंस में यौन शोषण को परिभाषित करना मुश्किल है और दंड का कोई प्रावधान नहीं है, सिर्फ सिफारिश की जा सकती है , कार्रवाई तो अभी के कानून के मुताबिक ही संभव है । इस गाइडला के मुताबिक बनी जांच कमिटी में शिकायतकर्ता को भी बुलाकर पूछताछ की जाती है और उसके आरोपों के बहाने ऐसे तेजाब बुझे शब्दों के प्रयोग किया जाता है कि शिकतायत करनेवाली महिला के होश उड़ जाते हैं । जिस महिला ने यौन शोषण की शिकायत की हो उससे फिर से पूरी घटना को बयान करने को कहना कितना बड़ा मानसिक उत्पीड़न है ।
प्रस्तावित बिल में जिसके बारे में शिकायत की गई है उसको यह साबित करना होगा कि वो निर्दोष है । य़ह एक बड़ी राहत है क्योंकि अभी हो यह रहा है कि जिसने शिकायत की उसे ही दोष साबित करना पड़ता है । और शिकायतकर्ता को अपने साथियों के तानों का भी शिकार होना पड़ता है । प्रस्तवित बिल में इससे भी बचाव का प्रावधान है ।
आईपीसी में बलात्कार और महिलाओं से छेड़छाड़ के लिए सजा का प्रावधान है लेकिन अगर किसी महिला को उसका बॉस हर दो मिनट पर अपने केबिन में बुलाता है या फिर बड़े ही शातिराना अंदाज में उसके कंधे पर हाथ रखकर उसको तंग करता है तो इसके लिए कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीड्यूर या आईपीसी की किसी धारा में ना तो शिकायत का प्रावधान है और ना ही सजा का । ऐसी किसी शिकायत को लेकर कोई भी लड़की या महिला पुलिस थाने जाती भी है तो पुलिसवाले ही उसका मजाक उड़ाकर बात को हवा में उड़ा देते हैं । लेकिन प्रस्तावित कानून में इस तरह की ज्यादतियों को भी ध्यान में ऱखकर धाराएं और सजा निर्धारित की गई हैं ।
अगर सरकार कामकाजी महिलाओं के अधिकारों को लेकर सचमुच गंभीर है तो इस प्रस्तावित बिल को तत्काल संसद के चालू सत्र में पेश कर इसपर बहस करवाई जाए । सरकार की यह भी जिम्मेदारी बनती है कि इस बिल को संसद से पास करवाकर कानून बनवाए ताकि महिलाओं को कार्य स्थल पर सुरक्षा का माहौल मिल सके । नहीं तो यूपीए सरकार और उसकी चेयरपर्सन सोनिया गांधी पर भी सवाल खड़े होंगे क्योंकि महिला आरक्षण बिल पर भी कांग्रेस कोई टोस कदम अबतक उठा नहीं पाई है ।

2 comments:

geetashree said...

आपका लेख बहुत अच्छा है,,विचार भी गंभीर, मगर आ अधूरी बातें क्यों करते हैं. क्या हर मामले में बास ही दोषी होता है. कार्य स्थल पर हमेशा छेड़छाड़ एक की गल्ती से होती है। क्या लड़कियां बास की कृपा नहीं चाहती.उन्हें अपने साथियों को छोड़ कर आगे बढने की ख्वाहिश कम शातिर बना रही है। प्रगति का शार्टकट देखिए.मैं भी स्त्रीवादी हूं..मगर आंख मूंद कर नहीं। जहां विरोध करना चाहिए, वहां अपनी आवाज उठा रही हूं. मगर कुछ लड़कियां कार्यस्थल पर क्या गेम कर रही हैं, आपको पता नहीं है क्या। नहीं पता तो उनसे पूछिए जो एसी लड़कियों की मारी हुई है..

geetashree said...

आपका लेख बहुत अच्छा है,,विचार भी गंभीर, मगर आ अधूरी बातें क्यों करते हैं. क्या हर मामले में बास ही दोषी होता है. कार्य स्थल पर हमेशा छेड़छाड़ एक की गल्ती से होती है। क्या लड़कियां बास की कृपा नहीं चाहती.उन्हें अपने साथियों को छोड़ कर आगे बढने की ख्वाहिश कम शातिर बना रही है। प्रगति का शार्टकट देखिए.मैं भी स्त्रीवादी हूं..मगर आंख मूंद कर नहीं। जहां विरोध करना चाहिए, वहां अपनी आवाज उठा रही हूं. मगर कुछ लड़कियां कार्यस्थल पर क्या गेम कर रही हैं, आपको पता नहीं है क्या। नहीं पता तो उनसे पूछिए जो एसी लड़कियों की मारी हुई है..