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Thursday, June 17, 2010

धोखे का सरकारी दस्तावेज

मनमोहन सिंह सरकार ने अपनी दूसरी पारी में एक साल पूरे होने पर समारोहपूर्वक अपने कामकाज का लेखा-जोखा पेश किया । इस लेखा-जोखा को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की जनता के लिए रिपोर्ट के तौर पर पेश किया गया । इस रिपोर्ट कार्ड में मनमोहन सरकार ने मुख्यतया तेरह क्षेत्रों में अपनी उपलब्धियों का बखान किया । रिपोर्ट कार्ड की प्रस्तावना में प्रधानमंत्री ने बढ़ती महंगाई पर काबू पाने में अपनी सरकार की नाकामी सीधे तौर पर तो नहीं मानी लेकिन शब्दों की बाजीगरी को अगर डिकोड करें को यह साफ तौर पर सामने आती है । यह रिपोर्ट कहती है कि वैश्विक आर्थिक मंदी का सामना हमारी अर्थव्यवस्था ने बेहतर ढंग से किया । आर्थिक संकट से निबटने और सरकार की मानें तो उबरने में उसकी वृहद आर्थिक प्रबंधन की सरकार की कार्यनीति की सफलता साफ झलकती है । पता नहीं मनमोहन सिंह किस कार्यनीति और किस वृहद आर्थिक प्रबंधन की बात कर रहे हैं । सरकार अरना राजकोषीय घाटा पूरा करने के लिए थ्री जी मोबाइल सेवा से जुटाए गए लगभग एक लाख करोड़ का सहारा ले रही है । बेहतर आर्थिक प्रबंघन के नाम पर सरकार ने अभी चुपके से एक फरमान जारी कर दिया । सरकार ने इस बात को अनिवार्य कर दिया है कि शेयर बाजार में लिस्टेड सभी कंपनियों को अपने पच्चीस प्रतिशत शेयर जनता के लिए जारी करने होंगे । इसके पीछे की मंशा यह है कि सरकारी कंपनियों के शेयर भी बेचे जा सकें ताकि बढ़ते राजकोषीय घाटे को पाटा जा सके । अपनी संपत्ति बेचकर घाटा कम करना कैसा वित्तीय प्रबंधन है,आप अनुमान लगा सकते हैं ।
उधर पूरा देश महंगाई से त्रस्त है । जिस आम आदमी की बेहतरी के नाम पर कांग्रेस ने पिछले चुनाव में वोट मांगे थे वो त्राहिमाम कर रही है । जरूरी सामनों के अलावा हर चीज के दामों में जोरदार बढो़तरी हुई है । बीते सप्ताह में फूड इंफ्लेशन पौनै सत्रह फीसदी पहुंच गई है । सरकार विकास दर के बेहतर होने के नाम पर आंकड़ों की बाजीगरी में जुटी है । जनता को सुनहरे सपने दिखाए जा रहे हैं । लेकिन दरअसल जनता को विकास का सपना दिखाकर उसके साथ छल किया जा रहा है । सरकार के पास महंगाई पर लगाम लगाने के लिए ना तो कोई ठोस योजना है और ना ही इसपर काबू पाने के लिए दृढ इच्छा । हर बार केंद्र सरकार महंगाई के लिए राज्य सरकारों के सर ठीकरा फोड़कर अपनी जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश करती है ।
अपनी इस रिपोर्ट कार्ड में मनमोहन सिंह हर तरह की विपदा का इस्तेमाल अपनी नाकामियों को ढकने में करते दिख रहे हैं । महंगाई के लिए सरकार ने दो हजार नौ के में देश में आए सूखे को भी ढाल बनाने की कोशिश की है । यहां भी सरकार ने सूखे से निपटने के सरकार के कदमों को लेकर अपनी पीठ थपथापाई है । मनमोहन सिंह शायद यह भूल गए कि सूखे के बावजूद देश में अनाज के गोदाम भरे रहे । फूड कॉर्पोरेशन के गोदामों में अनाज खुले में सड़ते रहे और जनता के बीच पहुंच ही नहीं पाए । कीमतें आसमान छूती रही लेकिन सरकार है कि बेहतर प्रबंधन का ढोल पीट रही है । चीनी की कीमतों पर ही बात करें तो पहले देश से चीनी निर्यात में छूट दी गई फिर जब कीमतें बेकाबू होने लगी तो चीनी आयात किया गया । चीनी के आयात-निर्यात का खेल अलग से जांच का विषय है, जिसमें अगर ईमानदारी से तफ्तीश की जाए तो एक बड़ा घोटाला सामने आएगा । इस रिपोर्ट कार्ड में सरकार ने बढ़ती महंगाई पर नजर रखने की बात कही है लेकिन सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतों को अंतराष्ट्रीय मूल्य की आड़ में बढाने के लिए भी एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए है । सरकार के वित्त और पेट्रोलियम मंत्री लगातार इस बात की वकालत कर रहे हैं कि पारिख कमेटी की रिपोर्ट जल्द से जल्द मानकर पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दाम बढाए जाएं । बेहतर आर्थिक प्रबंधन का दावा करनेवाली सरकार को क्या यह नहीं मालूम है कि पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से हर क्षेत्र में इसका असर पड़ेगा ।
बच्चो को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिए जाने और प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा में सुधार को लेकर सरकार अपने उठाए कदमों से गदगद है । शिक्षा का अधिकार कानून बना देने से ही सबको शिक्षा मिलनी शुरू हो जाएगी यह जरूरी नहीं है । यह कानून बना देना आसान है, यह भी मान लिया जा सकता है कि आपकी मंशा भी साफ है लेकिन इस बात पर विचार किया गया कि इस कानून को देशभर में लागू कैसे किया जाएगा, इसके लिए वांछित संसाधन कहां से जुटाए जाएंगें । बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे राज्य इस बात की आशंका जता चुके हैं कि धनाभाव की वजह से इस कानून को लागू करने में मुश्किल होगी । उच्च शिक्षा में सुधार के नाम पर विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए देश में आने का रास्ता खोल दिया गया । लेकिन शिक्षा के नाम पर व्यवसाय करनेवाले विदेशी विश्वविद्यालय ही यहां अपना कारोबार चलाएंगी । अभी तक इस बात के कोई संकेत नहीं है कि कैंब्रिज या ऑक्सफोर्ड जैसी प्रतिष्टित युनिवर्सिटी यहां अपना कैंपस खोलेंगी । देश में मेडिकल शिक्षा की क्या गत हुई है ये मेडिकल काउंसिल के मुखिया केतन देसाई की गिरफ्तारी के बाद साफ हो गया । अपनी इस रिपोर्ट कार्ड में सरकार ने स्कूली छात्रों को मिड डे मील देने का दंभ भी भरा है । लेकिन इस योजना की जमीनी हकीकत आए दिन सामने आती रहती है ।
ग्रामीण विकास के नाम पर भी सरकार ने बेहद बेशर्मी से अपनी उपलब्धियां गिनाई हैं । आज देश के ग्रामीण इलाकों में क्या हालत है ये किसी रिपोर्ट कार्ड से सामने नहीं आ सकता । इसके लिए उन इलाकों में जाने की जरूरत है । ग्रामीण विकास में ऐतिहासिक काम करने का दावा करनेवाली मनमोहन सरकार को विदर्भ के किसानों की खुदकुशी नजर नहीं आती । अगर मनमोहन सरकार के पिछले छह साल के कार्यकाल में सिर्फ विदर्भ में किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों को जोडा़ जाए तो यह एक सभ्य सरकार के मुंह पर तमाचा होगा । खाद पर सब्सिडी हटाने की भी साजिश रची जा रही है । कृषि प्रधान देश और अर्थवयवस्था में किसानों को सहूलियत देने के बजाए सरकार बडे़ उद्योगपतियों को सहूलियतें दे रही है । उनको टैक्स हॉलीडे के नाम पर अरबो रुपये की छूट दी गई लेकिन किसानों से ऋण वसूली के लिए बैंक के बाबू उसकी जान के पीछे पड़ जाते हैं । दो बड़ी विमान कंपनियों ने तेल के सात सौ करोड़ रुपए सरकार को नहीं चुकाए हैं लेकिन अबतक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है । ये कुछ ऐसे मसले हैं जो समेकित विकास का दावा करनेवाली इस सरकारी रिपोर्ट कार्ड की चमक को फीका कर देते हैं ।
इस रिपोर्ट कार्ड में सुरक्षा के भी बड़े दावे किए गए हैं । सरकार ने कहा है कि वामपंथी उग्रवादियों से निपटने के लिए सुरक्षा विकास और जन धारणा जैसे क्षेत्रों में समेकित दृष्टिकोण अपनाया गया है । लेकिन सरकार और कांग्रेस पार्टी में वामपंथी उग्रवादियों से निपटने में जिसतरह का मतभेद दिखाई देता है उससे भ्रम की स्थिति बनती है । गृहमंत्री नक्सलियों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की वकालत करते हैं तो कांग्रेस का महासचिव और पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने लेखों में कार्रवाई के साथ नरमी के भी संकेत देती है । नतीजा यह है कि पिछले दो महीने में वामपंथी उग्रवादियों ने तकरीबन तीन बड़े हमले कर तीन सौ से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया । नक्सलियों से निपटने के लिए सरकार के पास कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है ।
अपनी उपलब्धियों को गिनाते-गिनाते सरकार ने एक बेहद दिलचस्प उपलब्धि को अपनी इस रिपोर्ट कार्ड में सम्मिलित कर लिया । सरकार ने गिनाया है कि – प्रवासी भारतीय दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में पंद्रह सौ प्रवासी भारतीयों ने शिरकत की । सरकार ने इसमें से चौदह को प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार दिए । सत्तर पृष्ठ की उपलब्धि पुस्तिका में इस तरह के उपलब्धियों की भरमार है । दरअसल यह पूरी पुस्तिका जनता के साथ छल है और उसे भरमाने की एक सोची समझी चाल भी ।
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