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Monday, July 25, 2011

भ्रष्टाचार पर कांग्रेस का दोहरा रवैया

हाल में ही में बांबे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के पशुधन मंत्री और कांग्रेस के दलित नेता नितिन राउत के खिलाफ कार्रवाई ना करने पर महाराष्ट्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई । कांग्रेस के इस नेता पर नागपुर के बेजनबाग इलाके में जमीन कब्जाने और हड़पने का संगीन इल्जाम है । हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को एक अगस्त से पहले अतिक्रमण हटाने और जमीन पर कब्जा करनेवालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करके हलफनामा दायर करने को का हुक्म दिया है । इस लेख का उद्देश्य नितिन राउत पर हाईकोर्ट के निर्देश के बारे में बताना नहीं है बल्कि यह बताना है कि भ्रष्टाचार पर कांग्रेस में दोहरा रवैया अपनाया जाता है । सामाजिक जीवन में उच्च मानदंडों की रक्षा करने और भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का दंभ भरनेवाली कांग्रेस पार्टी ने भी अब तक नितिन राउत के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है । दरअसल कांग्रेस पार्टी के साथ यह बड़ी दिक्कत है वह पार्टी ईमानदार दिखना तो चाहती है लेकिन बेईमानों के खिलाफ कार्रवाई करके नहीं बल्कि सिर्फ बयानबाजी और इक्का दुक्का कमजोर नेताओं के खिलाफ कार्रवाई का दिखावा करके । जिस भी नेता का जरा भी जनाधार होता है या फिर वो वोट बैंक की राजनीति की बिसात पर सधा हुआ मोहरा होता है उसके खिलाफ कांग्रेस कार्रवाई का दिखावा भी नहीं करती है । भ्रष्टाचार के आरोपों से चौतरफा घिरी कांग्रेस पार्टी में इस तरह के नेताओं की लंबी फेहरिश्त है जिनपर घोटालों और घपलों के संगीन आरोप के बावजूद कार्रवाई नहीं हुई ।
चंद महीनों पहले जब मुंबई में कारगिल के शहीदों के लिए बनने वाले आदर्श सोसाइटी घोटाला सामने आया था । उस घोटाले में महाराष्ट्र कांग्रेस के कई दिग्गज कांग्रेसी नेताओं की संलिप्तता की बात सामने आई । उस वक्त के सूबे के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख और सुशील कुमार शिंदे समेत कई कांग्रेस के नेताओं के दामन पर घोटाले के दाग लगे थे । लेकिन आदर्श घोटाले में कार्रवाई हुई सिर्फ युवा मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण पर । मीडिया के दबाव में कांग्रेस पार्टी ने उनसे इस्तीफा ले लिया । लेकिन उतने ही संगीन इल्जाम के बावजूद विलासराव देशमुख और सुशील कुमार शिंदे का बाल भी बांका नहीं हुआ था । बल्कि पिछले मंत्रिमंडल फेरबदल में विलासराव देशमुख को भारी उद्योग मंत्रालय से ग्रामीण विकास जैसा अहम मंत्रालय सौंप दिया गया । अब यह बात तकरीबन साफ हो गई है कि आदर्श सोसाइटी मामले में विलासराव देशमुख ने अतिरिक्त रुचि लेकर फाइलों को क्लीयरेंस दिया था । आदर्श के पहले भी विलासराव देशमुख का अपने गृह जिले में जमीन विवाद में नाम आया था । देशमुख के अलावा केंद्रीय उर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे के खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं हुई उल्टे हाल में उन्होंने देश का उपराष्ट्रपति बनने की इच्छा जता दी । अशोक चव्हाण के खिलाफ कार्रवाई होने और देशमुख और शिंदे के खिलाफ कोई एक्शन नहीं होने के पीछे की कई राजनीतिक वजहें हैं । विलासराव देशमुख महाराष्ट्र के मजबूत मराठा नेता हैं और कांग्रेस पार्टी उन्हें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार के बरख्श खड़ा करके मराठा वोट बैंक की राजनीति करती है । अशोक चव्हाण भी मराठा नेता हैं लेकिन पार्टी में उनका कद विलासराव देशमुख जितना बड़ा नहीं है । दूसरे अशोक चव्हाण अपने विरोधियों की राजनैतिक चाल नहीं समझ पाए और पार्टी की अंदरुनी राजनीति के शिकार हो गए । सुशील कुमार शिंदे महाराष्ट्र के मजबूत दलित नेता हैं । कांग्रेस उन्हें आगे कर दलितों को लुभाती है । शिंदे का दलित होना उनकी ताकत है और कांग्रेस की कमजोरी । अभी अगर कांग्रेस अपने नेता नितिन राउत के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है तो वह भी साफ है । नितिन राउत महाराष्ट्र की राजनीति में पार्टी का नया दलित चेहरा है । खैरलांजी कांड के बाद से नितिन राउत सूबे में एक आक्रामक युवा दलित नेता के तौर पर उभरे हैं । पार्टी उनमें भविष्य की दलित राजनीति तलाश रही है इस वजह से वो जमीन हड़पने और कब्जाने जैसे संगीन आरोपों के बाद भी महफूज हैं । महाराष्ट्र के ही एक और कांग्रेस नेता हैं सुरेश कलमाडी जो इन दिनों कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान हुए घोटाले के आरोपों में जेल की सलाखों के पीछे हैं । लंबे समय तक आलोचना झेलने के बाद जब सीबीआई ने कलमाडी को गिरफ्तार किया तो पार्टी नींद से जागी और कलमाडी को पार्टी के पद से हटा दिया गया । लेकिम मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष कृपा शंकर सिंह के बेटे पर टेलीकॉम घोटाले के आरोपी शाहिद बलवा की कंपनी से लेनदेन के आरोप लगे । मामला अदालत तक पहुंचा । मीडिया में खबरें आने के बाद लगा कि कृपाशंकर सिंह की मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष पर से छुट्टी हो जाएगी लेकिन वह हो ना सका । कृपाशंकर सिंह दिल्ली के अपने आकाओं की कृपा से अब भी अपने पद पर बने हैं । कांग्रेस पुरबिया लोगों के वोट बैंक के टूट जाने के खतरे को भांपते हुए कृपा पर कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है ।
अब अगर हम महाराष्ट्र से बाहर निकल कर देश की राजधानी दिल्ली आएं तो वहां भी पार्टी का इसी तरह का दोहरा रवैया दिखाई देता है । कॉमनवेल्थ घोटाले में कलमाडी को तो पार्टी ने पद से हटा दिया लेकिन घोटाले में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का नाम आने के वावजूद उनको मुख्यमंत्री पद से हटाना तो दूर की बात उनसे पार्टी ने सफाई तक नहीं मांगी । कॉमनवेल्थ घोटाले की जांच के लिए प्रधानमंत्री द्वारा गठित शुंगलू कमिटी ने सीधे सीधे शीला दीक्षित को कठघरे में खड़ा किया है । दिल्ली के ही एक और मंत्री राजकुमार चौहान पर लोकायुक्त की पद से हटाने की सिफारिश के बाद भी कोई कड़ा कदम नहीं उठाया जा सका । बल्कि बहुत ही बेशर्मी से उनका बचाव भी किया गया । यह भ्रष्टाचार पर कांग्रेस के दोहरे रवैये की एक बानगी भर है । साथ ही लोकायुक्त और उनकी सिफारिशों को लेकर पार्टी के स्टैंड को भी साफ करती है । कर्नाटक में वहां के लोकायुक्त संतोष हेगड़े की सिफारिशों और टिप्पणियों को लेकर सूबे के मुख्यमंत्री वी एस येदुरप्पा को घेरनेवाली कांग्रेस अपने मंत्री के खिलाफ लोकायुक्त की सिफारिश पर खामोश रह जाती है । भ्रष्टाचार के आरोप तो पार्टी के हाईप्रोपाइल महासचिव दिग्विजय सिंह पर भी लगे हैं । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए इंदौर में एक मॉल मालिक को जमीन के मामले में फायदा पहुंचाने के आरोप हैं । इन आरोपों की सूबे की आर्थिक अपराध शाखा जांच कर रही है और कुछ ही दिनों में उस केस में चालान भी पेश होने वाला है । लेकिन इन सबसे आंखें मूंदे कांग्रेस पार्टी ने दिग्विजय सिंह को छुट्टा छोड़ रखा है । संघ फोबिया से ग्रसित दिग्विजय सिंह पूरे देश में घूम घूमकर कांग्रेस पार्टी के लिए अलख जगा रहे हैं, पार्टी के युवराज राहुल गांधी के मुख्य सलाहकार बने हुए है । क्या कांग्रेस पार्टी दिग्विजय सिंह, शीला दीक्षित, विलासराव देशमुख या फिर सुशील कुमार शिंद पर वही मानदंड लागू कर पाएगी जो उसने बेचारे अशोक चव्हाण पर लागू कर उन्हें पद से च्युत कर दिया । क्या कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में वो इच्छाशक्ति है जो भ्रष्टाचार के आरोपो से घिरे अपने इन दिग्गज नेताओं पर कार्रवाई या उसका दिखावा मात्र भी कर सके । ऐसा प्रतीत होता नहीं है । कांग्रेस में कार्रवाई सिर्फ दो तरह के लोगों के खिलाफ ही होती है । पहले जो पार्टी में आतंरिक लोकतंत्र की बात करें और गांधी-नेहरू परिवार को चुनौती दें और दूसरे जिनका कोई जनाधार नहीं है । इन दो मसलों पर पार्टी त्वरित गति से कड़े से कड़ा कदम उठा सकती है । इन दो मामलों के अलावा अगर कोई बड़ा घोटाला भी हो जाए तो देर तक उसे लटकाए रखना ही कांग्रेस का सिद्धांत बन गया है । सोचना देश की जनता को है कि क्या वो दिखावे की कार्रवाई पर भरोसा करती रहेगी या फिर असली मुलजिमों के खिलाफ कार्रवाई होते देखना चाहेगी ।

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