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Tuesday, July 12, 2011

बिहार में 'सांस्कृतिक क्रांति'

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी मशहूर किताब संस्कृति के चार अध्याय में कहा है कि – विद्रोह, क्रांति या बगावत कोई ऐसी चीज नहीं है जिसका विस्फोट अचानक होता है । घाव भी फूटने के पहले बहुत दिनों तक पकता रहता है । दिनकर जी की ये पंक्तियां उनके अपने गृह राज्य पर भी पूरी तरह से लागू होती है। बिहार में लालू यादव और उनकी पत्नी श्रीमती रावड़ी देवी के तकरीबन डेढ दशक के शासन काल में सूबे की सारी संस्थाएं एक एक कर नष्ट होती चली गई या फिर प्रयासपूर्वक उनको बरबाद कर दिया गया । जो बिहार में एक जमाने में शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में विश्व में मशहूर था, जहां नालंदा विश्वविद्यालय जैसे उच्च कोटि के शिक्षा केंद्र हुआ करते थे, उन पंद्रह सालों के दौरान सबकुछ खत्म सा हो गया । जिस बिहार में कला संस्कृति की एक समृद्ध परंपरा थी वहां कला –संस्कृति मजाक बनकर रह गए । जो सूबा शिक्षा का अप्रतिम केंद्र हुआ करता था वहां से हर साल उच्च शिक्षा के लिए हजारो छात्र पलायन कर दिल्ली और अन्य शहरों का रुख करने लगे । जिस सूबे में ज्ञान की गंगा बहा करती थी वहां अपराध और रंगदारी का बोलबाला हो गया । राज्य के संवैधानिक मुखिया होने के नाते यह सारी जिम्मेदारी लालू-रावड़ी की की बनती है कि उन्होंने बिहारी गौरव को बिहारी गाली में तब्दील कर दिया । लालू यादव का फूहड़पन और उनके रिश्तेदारों के रंगदारी के किस्सों पर फिल्में बननी लगी और उन फिल्मों के अहम किरदारों में आपको उन लोगं की झलक साफ तौर पर दिखाई देने लगी । बिहारी शब्द हास्य और व्यंग्य का प्रतीक बन गया । लेकिन जैसा कि दिनकर जी ने लिखा है कि विद्रोह क्रांति या बगावत कोई ऐसी चीज नहीं कि उसका विस्फोट अचानक होता है । उसी तरह जनता के गुस्से का विस्फोट होने में सालों लग गए । बिहार की जनता ने समझदारी दिकाते हुए सूबे में सरकार बदल दी । पहले तो कुछ अंदेशे के साथ लेकिन दूसरी बार जब भरोसा हो गया तो प्रचंड बहुमत के साथ। इस प्रचंड बहुमत के साथ ही जनता की आशाएं और आकांक्षाएं भी सातवें आसमान पर जा पहुंची है ।
यह वर्ष बिहार राज्य के स्थापना के सौ वर्ष के रूप में साल भर जश्न के रूप में मनाया जा रहा है । राज्य की नीतीश सरकार ने साल भर के कई कार्यक्रम बनाए हैं जिनमें राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर गोष्ठी सेमिनार तो हैं ही उसके अलावा कई पुस्तकों का प्रकाशन और सांस्कृतिक रूप से लुप्त हो रही कलाओं के संरक्षण का काम भी शुरू किया गया है । इस काम में बिहार का कला संस्कृति मंत्रालय बेहद शिद्दत से जुटा है । इसी कड़ी में मंत्रालय ने बिहार विहार नाम से एक कॉफी टेबल बुक का प्रकाशन किया है । इस किताब में बिहार की कला संस्कृति एवं युवा विभाग की मंत्री सुखदा पांडे ने मर्म पर चोट की है – मैकाले के हवाले से उन्होंने लिखा है – हिंदुस्तानी यदि अपनी सांस्कृतिक और वैचारिक इतिहास को जान जाएं तो हम उनको गुलाम नहीं कर पाएंगे इस लिए उन्हें उनके इतिहास को नहीं जानने दो । बिहार में तकरीबन डेढ दशत में यही हुआ । बिहार की नई पीढ़ी को उसके सांसक्कृति और वैचारिक इतिहास की जानकारी से वंचित रखने का षडयंत्र रचा जाता रहा और प्रयासपूर्वक ऐसा किया भी गया । लेकिन अब सुखदा पांडे के नेतृत्व में बिहार का यह मंत्रालय मैकाले के इस सिद्धांतो को झुठलाने में लगा है । सुखदा पांडे शिक्षण कार्य से जुड़ी रही हैं और उनसे .ह उम्मीद भी की जा सकती है कि कला और संस्कृति के क्षेत्र में बिहार के गौरव को वापस लाने में महती भूमिका निभाएंगी ।
बिहार के गौरवशाली इतिहासल को सामने लाने के लिए संस्कृकि मंत्रालय ने एक किताब बिहार-विहार छापी है य़ इस किताब का संपादन राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त लेखक विनोद अनुपम ने किया है । विनोद अनुपम ने अएपने संपादकीय में बिहारकी होने की पीड़ा से ही सुरुआत की है कि किस तरह से जब वो 1992 में फिल्म एप्रिशिएशन का कोर्स करने के लिए पुणे गए थे तो उनके साथ के लोगों को इस बात का आश्चर्य होता था और व्यंग्यात्मक लहजे में पूछते थे कि कैसा है आपका बिहार । विनोद अनुपम के मुताबिक - अब बदलते वक्त में भी लोग बिहार के बारे में जानना चाहते हैं लेकिन अब वो लोग बिहार के इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं, बिहार में हो रहे नवीनतम बदलाव के बारे में जानना चाहते हैं । जनता वह सबकुछ जानना चाहती है जो शायद हम भी नहीं जानते। शायद इसलिए कि उन्हें पता है कि बदलाव की इबारत बिहार से ही लिखी जानी है , देश में भविष्य की रोशनी बिहार से ही आनी है । बिहार को करीब से जानने की इसी क्षुधा की पूर्ति की छोटी सी कोशिश है – बिहार विहार । दरअसल इस कॉफी टेबल बुक से बिहार की संस्कृति और समृद्ध लोक कलाओं की एक छोटी से झलक भर ही मिलती है । संकेत मिलते हैं कि हमारे बिहार की कला परंपराएं कितनी समृद्ध रही है । बिहार का होने के बावजूद इस किताब को पढ़ने के बाद मेरी जानकारी में भी जबरदस्त इजाफा हुआ । इस किताब से भी एक दिलचस्प प्रसंग जुड़ा है । विनोद अनुपम ने जब फोन पर मुझे कहा कि बिहार की कला संस्कृति पर वो बिहार सरकार की तरफ से प्रकाशित होनेवाली कॉफी टेबल बुक का संपादन कर रहे हैं तो मुझे लगा था कि वो मजाक कर रहे हैं । पहले तो मुझे लगा था कि सरकार की कला संस्कृति में क्यों दिलचस्पी होगी । और उसपर से कॉफी टेबल बुक । जब भी हमारी बातचीत होती थी तो विमोद अनुपम उलके बारे में बताते थे लेकिन हर बार मैं सोचता था कि वो दिवास्वप्न देख रहे हैं और मैं सपने तोड़ने में यकीन नहीं रखता हूं इसल वजह से उनको कुछ कहता नहीं था लेकिन कालांतर में पता चला कि बिहार विहार को जो सपना था और जिसे मैं दिवा-स्वपन सोच समझ रहा था, दरअसल वो हकीकत था और सपना पूरा भी हुआ ।
कॉफी टेबल बुक की योजना के बारे में विवेक कुमार सिंह ने अपनी पूर्व पीठिका में लिखा है – देश विदेश में घूमते हुए मुझे कॉफी टेबल बुक की उपयोगिता का एहसास हुआ। विषय विशेष में रुचि जगाने के लिए कॉफी टेबल बुक हमेशा से एक बेहतर माध्यम रही है । यह विषय की विस्तार से जानकारी भले ही ना दे, उसके प्रति दिलचस्पी अवश्य जगाती है । बिहार विहार की परिकल्पना बिहार के प्रति दुनिया की दिलचस्पी जगाने के लिए ही की गई है । विवेक कुमार सिंह को नजदीक से जानने वाले यह बताते हैं कि इस प्रशासनिक अधिकारी ने बिहार में कला संस्कृति के विकास के लिए बहुच कार्य किए हैं और कई मृत प्राय संस्थाओं में नई जान फूंक दी थी । लेकिन कॉफी टेबल बुक की उपयोगिता उसकी उपलब्धता पर भी निर्भर करती है । अगर बिहार सरकार सिर्फ किताब छापकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेगी तो इसका उद्देश्य पराजित हो जाएगा । जरूरत इस बात की है कि इस किताब को उन खास लोगों तक पहुंचाया जाए जहां से किसी भी सूबे की छवि निर्मित होती है । अन्यथा यह किताब भी अन्य सरकारी प्रकाशनों की तरह गोदाम में धूल फांक रही होगी और इसके प्रकाशम से जुड़े लोग अपनी पीठ थपथपा रहे होंगे ।
इस किताब में बेहद श्रमपूर्वक सामग्री का चयन किया गया है लेकिन इसमें जो चित्र लगे हैं वो इस किताब की कमजोरी हैं । हो सकता है वक्त की कमी के चलते ऐसा हुआ हो या फिर कोई और कारण रहे हों लेकिन सामग्री के हिसाब से ना तो चित्रण कमजोर हैं चाहे वो रामलीला के पहले के चित्र हों राजाओं का चित्रण हो । लेकिन हमें इस प्रयास की सराहना करनी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की और सामग्री सामने आएं, कमजोरियां तो दूर हो ही जाती है । बस जैसा कि मैंने उपर भी कहा कि इसे टारगेट पाठक वर्ग तक पहुंचावने का काम होना चाहिए ।

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