पिछले दिनों दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकाररों और संपादकों का जमावड़ा हुआ था – मौका था पत्रकार शैलेश और डॉ ब्रजमोहन की वाणी प्रकाशन से प्रकाशित किताब स्मार्ट रिपोर्टर के विमोचन का । किताब का औपचारिक विमोचन प्रेस परिषद के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व विद्वान न्यायाधीश जस्टिस मार्केंडेय काटजू के साथ साथ एन के सिंह, आशुतोष, कमर वहीद नकवी, शशि शेखर ने किया । विमोचन के बाद वक्ताओं ने बोलना शुरू किया । जस्टिस काटजू की बगल में बैठे ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन के महासचिव एन के सिंह ने सारगर्भित भाषण दिया और पत्रकारों को पेशेगत जरूरी औजारों से लैस रहने की वकालत भी की । उसके बाद आईबीएन7 के प्रबंध संपादक आशुतोष ने ओजपूर्ण तरीके से अपनी बात रखी और कहा कि एक पत्रकार को अपने पेशे के हिसाब से जरूरी जानकारी रहनी चाहिए लेकिन उन्होंने ये कहा कि यह बिल्कुल जरूरी नहीं है कि उसे हर विषय का विद्वान होना चाहिए । इसके अलावा आशुतोष ने वाटरगेट कांड का उदाहरण देते हुए कहा कि एक पत्रकार को छोटी से छोटी घटना को मामूली कहकर खारिज नहीं करना चाहिए । आशुतोष ने कहा कि एक पत्रकार की सबसे बड़ी भूमिका यह होती है कि वो जो देखे उसको दिखाए । आशुतोष के बाद आजतक के न्यूज डारेक्टर कमर वहीद नकवी ने एक बेहद दिलचस्प वाकया बयां किया । उन्होंने बताया कि एक दिन उनके चैनल पर खबर चली कि अमुक जगह पर पारा साठ डिग्री के पार हो गया । जब खबर चली को उन्होंने पूछताछ शुरू कि खबर कहां से आई और कैसे चली । काफी छानबीन के बाद पता चला कि उस इलाके के एक स्ट्रिंगर ने खबर भेजी और उसमें एक सिपाही की बाइट लगी हुई थी कि इस बार गर्मी काफी बढ़ गई है और लगता है पारा साठ डिग्री के पार हो गया है । नकवी जी ने बताया कि उन्हें इस बात की हैरानी हुई कि कहीं भी किसी भी स्तर पर यह चेक करने की कोशिश नहीं की गई कि पारा साठ डिग्री तक पहुंच गया । यह बात कौन कह रहा है । नकवी जी ने इस वाकए के हवाले से पत्रकारिता में तथ्यों की जांच करने की कम होती प्रवृत्ति की ओर ध्यान दिलाया और खबरों को चेक करने की जोरदार वकालत की । उसके बाद हिंदुस्तान के प्रधान संपादक शशि शेखर ने भी एक रिपोर्टर और संपादक की खबरों को फिल्टर की करने की क्षमता विकसित करने पर जोर दिया । उन्होंने बताया कि जब वो आजतक में काम करते थे उस दौरान संसद में गोलीबारी की खबर आई । उस वक्त वो लोग एक मीटिंग में थे और जब यह खबर आई तो मीटिंग से प्रोडक्शन कंट्रोल रूम तक दौड़ते हुए आशुतोष ने यही कहा था कि संसद में गोलीबारी हुई है बस इतनी सी खबर चलाओ । शशिशेखर ने इस वाकये के हवाले से कठिन से कठिन परिस्थिति में भी खबरों को पेश करने में संतुलन को कायम रखने का मुद्दा उठाया ।
इसके बाद बारी थी प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष जस्टिस काटजू की । काटजू ने पहले तो शैलेश-ब्रजमोहन की किताब की जमकर तारीफ की और उसको पत्रकारिता के कोर्स में लगाने की वकालत भी । थोड़ी देर बाद काटजू अपने पुराने फॉर्म में लौटे और वहां मौजूद तमाम संपादकों के सामने मीडिया को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इसका उपदेश देने लगे । तकरीबन सभी हिंदी न्यज चौनलों के संपादकों की उपस्थिति से काटजू साहब कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो गए । बोलते बोलते वो कुछ ज्यादा ही आगे चले गए और सचिन तेंदुलकर और देवानंद के बारे में अपमानजनक टिप्पणी कर डाली । देवानंद की मौत की खबर को न्यूज चैनलों पर प्रमुखता से प्रसारित करने पर काटजू ने मीडिया पर तीखा हमला बोला । उनके कहने का लब्बोलुआब यह था कि देवानंद मर गए तो कोई आफत नहीं आ गई जो सारे न्यूज चैनल दिनभर उस खबर पर लगे रहे । उसके पहले भी उन्होंने वहां मौजूद संपादकों को चुभनेवाली बातें कही थी लेकिन पद की गरिमा और कार्यक्रम की मर्यादा का ध्यान रखते हुए तमाम संपादक और पत्रकार चुप रहे थे । जब देवानंद के बारे में उन्होंने हल्की टिप्पणी की तो आशुतोष ने उनके भाषण को बीच में रोककर जोरदार प्रतिवाद दर्ज कराया । आशुतोष ने कहा कि देवानंद एक महान कलाकार थे और उनके बारे में इस तरह की हल्की टिप्पणी नहीं की जा सकती है । उसके बाद थोड़ा सा हो हल्ला मचा लेकिन फिर मामला शांत पर गया । लेकिन संपादकों के विरोध से काटजू और ज्यादा आक्रामक हो गए । उन्होंने सचिन तेंदुलकर के सौवें शतक की खबर को बिना रुके न्यूज चैनलों पर दिखाए जाने पर भी गंभीर आपत्ति दर्ज कराई । वहां भी उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि सचिन के शतक से ऐसा लगा कि देश में दूध की नदियां बह जाएंगी, खुशहाली आ जाएगी आदि आदि । जस्टिस काटजू विद्वान न्यायाधीश रहे हैं, काफी पढ़े लिखे माने जाते हैं लेकिन वो यह कैसे भूल गए कि भारतीय परंपरा में मृत लोगों के बारे में अपमानजनक बातें नहीं कही जाती हैं । देवानंद हमारे देश के एक महान कलाकार थे और उनकी कला को काटजू के प्रमाण पत्र की जरूरत भी नहीं है । लेकिन जिस तरह से उन्होंने देवानंद पर टिप्पणी की वह उनकी सामंती मानसिकता को दर्शाता है जिसमें फिल्मों में काम करनेवाला महज नाचने गाने वाला होता है । काटजू को देवानंद पर दिए गए अपने बयान पर देश से माफी मांगनी चाहिए ।
काटजू ने मीडिया को एक बार फिर से गरीबों, किसानों की आवाज बनने और देश की आम जनता को शिक्षित करने के उनके दायित्व की याद दिलाई । जस्टिस काटजू ने यह कहकर अपनी पीठ भी थपथपाई कि अगर उन्होंने मुहिम नहीं चलाई होती तो ऐश्वर्या राय के मां बनने की खबर न्यूज चैनलों पर बेहद प्रमुखता से चली होती । लेकिन अपनी तारीफ करते वक्त जस्टिस काटजू को यह याद नहीं रहा कि उसके पहले भी संपादकों की संस्था बीईए ने कई मौकों पर ऐसे फैसले लिए । जिसकी सबसे बड़ी मिसाल अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराए जाने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के वक्त की रिपोर्टिंग में देखी जा सकती है । दरअसल जस्टिस काटजू न्यूज चैनलों को भी प्रेस परिषद के दायरे में लाना चाहते हैं लेकिन वो यह भूल जाते हैं कि प्रेस परिषद ने अपने गठन के बाद से लेकर अबतक कोई भी उल्लेखनीय कार्य नहीं किया । उसकी वजह चाहे जो भी हो । दरअसल जिस तरह से देश का माहौल बदला है वैसे में प्रेस परिषद जैसी दंतविहीन संस्थाओं का कोई औचित्य ही नहीं है । प्रेस परिषद तो जनता के पैसे की बर्बादी है जहां से कुछ ठोस निकलता नहीं है क्योंकि उसकी परिकल्पना ही सलाहकार संस्था के रूप में की गई थी । इसलिए अब वक्त आ गया है कि सरकार प्रेस परिषद पर होने वाले फिजूल के खर्चों को बंद करे और इस संगठन को बंद कर जनता की गाढ़ी कमाई को किसी जनकल्याणकारी कार्य में खर्च करे ।
इन तमाम बहस मुहाबिसे के बीच शैलेश और ब्रजमोहन द्वारा लिखी गई किताब पर कम चर्चा हो पाई । यह किताब पत्रकारिता में कदम रखनेवालों को बेहद बुनियादी जानकारी देता है । उसे न्यूज चैनलों में होने वाली हलचलों से ना केवल वाकिफ कराता है बल्कि उसे एजुकेट भी करता चलता है । ब्रजमोहन जी की इस किताब में देश के शीर्ष रिपोर्टर्स की नजरों से उनके अनुभवों को आधार बनाया गया है जो इसको पांडित्य और शास्त्रीय बोझिलता से मुक्त करता है । इस किताब की एक और विशेषता है कि उसमें कई चित्रों के माध्यम से स्थितियों को समझाने की कोशिश की गई है जिससे पाठकों को सहूलियत होती है । दरअसल यह किताब सिर्फ पत्रकारिता के छात्रों के लिए नहीं होकर उन सभी लोगों के लिए उपयोगी और रोचक है जिनकी इस विषय में थोड़ी सी भी रुचि है ।
2 comments:
http://www.apnimaati.com/2012/04/blog-post_02.html
इतनी अच्छी रिपोर्टिंग के लिए आप बधाई के पात्र हैं भाई! कुछ कहना चाहूँगा. चैनल्स पर चलने वाले समाचारों पर मुझे भी आपत्ति है.मुझे याद नहीं कि जिस दिन देवानंद जी दिवंगत हुए उस दिन और ऐसी कौन सी खबर थी जिसे प्रमुखता के साथ चलाया जाना अत्यंत ही जरूरी था और जो नहीं चलायी गयी या प्रमुखता से नहीं चलायी गयी. लेकिन ऐसा अक्सर होता है और तब निश्चित जानिये कि सर दीवार पर मारने का मन करता है. कौन सी खबर महत्व पूर्ण है और कितनी महत्व पूर्ण है यह सम्बंधित चैनल पर निर्भर करता है लेकिन बार बार एक ही खबर को इस दलील के साथ लगातार चलाना कि नया दर्शक अभी आकर जुड़ा है वेह भी इस खबर से लाभान्वित हो ले तो इससे पहले से जुड़े दर्शक के सामने चैनल की स्थिति हास्यास्पद हो जाती है और हो भी रही है.
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