देश की सबसे बड़ी और पुरानी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस इन दिनों एक अजीब से संकट से जूझ रही है । उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पार्टी संगठन में फेरबदल कर उसे मजबूती प्रदान करना चाहती है । इस बात को लेकर पार्टी में खासी मशक्कत हो रही है लेकिन जनाधार वाले नेताओं की खासी कमी महसूस की जा रही है । पार्टी में फिलहाल जो नेता मौजूद हैं उसमें राजनीतिक कौशल या जनाधार की कमी है जिसके बूते वो विरोधियों को टक्कर दे सके । अब अगर हम राज्यवार बात करें तो बिहार के विधानसबा चुनाव में कांग्रेस की दुर्गति को सालभर से ज्यादा हो गए लेकिन अब तक पार्टी वहां एक ढंग का प्रदेश अध्यक्ष नहीं ढूंढ पा रही है । अब भी महबूब अली कैसर के भरोसे ही पार्टी चल रही है । समस्या यह है कि वहां नीतीश कुमार को टक्कर देने की बात तो दूर उनके आस पास का भी कोई नेता कांग्रेस में दिखाई नहीं दे रहा है । यही हालत उत्तर प्रदेश की भी है जहां किसी नेता के पास मुलायम सिंह यादव या मायावती जैसा जनाधार नहीं है । बेनी वर्मा या श्री प्रकाश जायसवाल या सलमान खुर्शीद जैसे नेता उत्तर प्रदेश से आते हैं लेकिन विधानसभा चुनाव में जनता ने उन्हें उनकी असली जगह दिखा दी थी । रही बात आर पी एन सिंह और जितिन प्रसाद जैसे युवा नेताओं की तो उन्हें अभी अपने आप को प्रूव करना बाकी है ।
यही हाल गुजरात का हैं जहां इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन नरेन्द्र मोदी के सामने अर्जुन मोढवाडिया और शक्ति सिंह गोहिल जैसे नेता हैं जो कहीं से भी मोदी की लोकप्रियता के आगे टिकते नहीं हैं । गुजरात में एक जमाने में अहमद पटेल जैसे नेता हुए जो इमरजेंसी के बाद कांग्रेस विरोध के लहर के बावजूद 1977 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की । उसके बाद भी दो लोकसभा चुनाव में जीत का परचम फहराया । गुजरात के बाद अगर हम बात महाराष्ट्र की करें को वहां विलासराव देशमुख और सुशील कुमार शिंदे के बाद कोई दमदार नेता नजर नहीं आता । इन दोनों नेताओं के नाम आदर्श घोटाले में आने के बाद पार्टी का संकट और बढ़ गया है । मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण की छवि भले ही अच्छी हो लेकिन उनका राज्य में कोई बड़ा जनाधार नहीं है । बंगाल और उड़ीसा में भी पार्टी की यही गत है । उड़ीसा में भी पार्टी के पास नवीन पटनायक के करिश्मे को चुनौती देनेवाला नेता नहीं है । बंगाल में तो खैर संगठन कभी मजबूत हो ही नहीं पाया और ममता बनर्जी को कांग्रेस अपने साथ रख नहीं पाई । मध्यप्रदेश में पार्टी के पास भले ही दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ जैसे नेता हैं लेकिन तीनों की रुचि केंद्र में ज्यादा है । दक्षिण भारत में तो कांग्रेस की हालत और बुरी है । तमिलनाडु में तो कांग्रेस काफी दिनों से डीएमके और एआईएडीएमके की अंगुली पकड़कर ही राजनीति करती रही है । जी के मूपनार के बाद वहां भी कोई मजबूत कांग्रेसी हुआ नहीं जो करुणानिधि और जयललिता को टक्कर दे सके । वाई एस राजशेखर रेड्डी की मौत के बाद आंध्र प्रदेश में पार्टी अनाथ सी हो गई लगती है । पिछले लोकसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश में कांग्रेस ने जोरदार प्रदर्शन किया था लेकिन अब कमजोर नेतृत्व की वजह से वहां की समस्याएं लगातार बढ़ती जा रही है । कर्नाटक में पार्टी के पास जरूर एस एम कृष्णा, मोइली जैसे नेता हैं लेकिन लोकप्रियता में येदुरप्पा उनपर भारी पड़ते हैं । पंजाब में ले देकर कैप्टन अमरिंदर सिंह बचते हैं जिसे लोगों ने विधानसभा चुनाव में नकार दिया । लब्बोलुआब यह कि कांग्रेस पार्टी इन दिनों मजबूत और जुझारू नेताओं की कमी से परेशान है ।
आज कांग्रेस में जो भी बड़े नेता हैं उनकी प्रतिभा को संजय गांधी ने पहचाना और युवा कांग्रेस के रास्त से उन्हें राजनीति का रास्ता दिखाया। चाहे वो अंबिका सोनी हो, कमलनाथ हों, अहमद पटेल हों, सुरेश पचौरी हों । दरअसल राजीव गांधी की पार्टी की कमान संभालने के बाद से ही कांग्रेस में दूसरी पंक्ति के नेताओं को तैयार करने का कोई प्रयास नहीं किया गया । राजीव गांधी के कई सखा राजनीति में जरूर आए लेकिन वो लंबे समय तक टिक नहीं पाए । राजीव के बाद तो कांग्रेस की हालत और बदतर हो गई और सीताराम केसरी के अध्यक्ष रहते तो एक बारगी यह लगा कि कांग्रेस खत्म ही हो जाएगी । लेकिन सोनिया गांधी ने पार्टी को तो संभाल लिया लेकिन नेताओं की पौध सींचने का काम नहीं हो पाया । अब जरूर राहुल गांधी ने इस कमी को महसूस किया और पार्टी में दूसरी पक्ति के युवा नेताओं को तैयार करने का काम शुरू किया । राहुल गांधी ने अलवर के जीतेन्द्र सिंह, सिरसा से अशोक तंवर, मध्यप्रदेश से मीनाक्षी नटराजन और तमिलनाडु से माणिक टैगोर को हैंडपिक किया और उन्हें लोकसभा का टिकट दिलवाकर संगठन में अहम भूमिका दी । राहुल के चुने गए इन नेताओं ने अपने इलाके में विपक्ष के दिग्गजों को लोकसभा चुनाव में शिकस्त दी । माणिक टैगोर ने तो वाइको को हराया, मीनाक्षी ने बीजेपी के गढ़ मंदसौर से तो अशोक तंवर ने चौटाला के गढ़ सिरसा से जीत हासिल की। अब इन नेताओं में ही कांग्रेस का भविष्य है । जितिन प्रसाद,सचिन पायलट और दीपेन्द्र हुडा तो राजनीतिक वंशवाद की उपज हैं । राहुल गांधी की इस बात के लिए तारीफ की जा सकती है कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा दिया और युवक कांग्रेस और एनएसयूआई में चुनाव करवाने की कोशिश की । राहुल गांधी ने संगठन को मजबूत करने के लिए दो हजार आठ से टैलेंट हंट शुरू किया जिसे आम आदमी का सिपाही नाम दिया गया । अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से सक्रिय रहे अब्दुल हफीज गांधी और उत्तर पू्र्व की सजरीटा इस टैलेंट हंट की उपज हैं । एक उत्तर प्रदेश में तो दूसरी उत्तर पूर्व में पार्टी के लिए मजबूती से काम कर रहे हैं । लेकिन राहुल गांधी ने जिस काम की शुरुआत की है उसके नतीजे इतनी जल्दी नहीं मिलेंगे,उसमें वक्त लगेगा, तबतक कांग्रेस पार्टी में नेताओं की कमी महसूस होती रहेगी और कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के लिए सूबों से लेकर केंद्रीय संगठन में नेताओं का चुनाव एक अपहिल टास्क होगा ।
2 comments:
Your analytic article only suggests that Congress is going to be more weak in States' Politics as it has no Shatrapas in different states.It also seems that Congress may have to face unprecedented situation in Northern States during ensuing Assembly elections. But, Congress's dilemma is self-generated:It's leadership or hicommand never liked state leadership to flourish. Rahul Gandhi has off-course shown his ability in formulating strategies, both in terms of organization and elections. But, Rahul Gandhi is appeared to have failed to win the hearts of common people across the country:recent elections are glimpse of his 'wide' unacceptability. In given circumstances Congress would have to bank on searching and developing new leadership. I BATS ON PRIYANKA! (DO YOU, TOO?)
वर्तमान कांग्रेस के भोथरे इठास को रिन साबुन से धोकर चमकाया नही जा सकता । इसे बंगाल की खाड़ी मे फेकना होगा। मुझे आश्चर्य है की एक ठीक ठाक समझ रखने वाला पत्रकार कूड़े-करकट की सफाई की जगह उसे धोने पोछने मे लगा है।
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