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Saturday, May 14, 2016

वोटरों को मुफ्त सामान का लॉलीपॉप

भारतीय राजनीति में सत्तर के दशक के बाद क्षेत्रीय क्षत्रपों के उदय को देश की राजनीति में एक प्रस्थान बिंदु के तौर पर देखा जाना चाहिए । ये वही दौर था जब दक्षिण से लेकर उत्तर भारतीय सूबों में राज्यस्तरीय नेताओं ने अपनी धाक जमानी शुरू कर दी थी । दक्षिण में एम जी रामचंद्रन हों या फिर यूपी में चरण सिंह या हरियाणा में देवीलाल । राजनीतिक विश्लेषकों में इस बात पर अच्छी खासी बहस हुई थी और अब भी जारी है कि लोकतंत्र के ये सूबेदार कितने मुफीद हैं । कई लोगों का मानना है कि जातियों के इन स्थानीय नेताओं की वजह से लोकतंत्र मजबूत हुआ । उदाहरण के तौर पर लालू यादव और मुलायम सिंह यादव या फिर चौधरी देवीलाल और अजीत सिंह को देखा जा सकता है । यादव और जाटों के नेता होने के बावजूद ये अलग अलग दल में हैं और इस तरह से किसी भी जाति विशेष का किसी समुदाय या जाति के खिलाफ एकजुट होने का खतरा नहीं है । राजनीतित विश्लेषण के लिए यह तर्क काफी हद तक सही हो सकता है लेकिन इन क्षेत्रीय क्षत्रपों ने अपनी राजनीतक जमीन बचाने के लिए लोकतंत्र को कमजोर करने का काम भी किया है । लोकतंत्र की मजबूती और सफलता के लिए मतदाताओं का बगैर किसी लोभ लालच या डर भय के लिए अपने प्रतिनिधियों को चुनने की स्वतंत्रता आदर्श स्थिति मानी गई है । होती भी है । लेकिन चुनावी वादों के नाम पर इन क्षेत्रीय दलों मे पिछले कई दशकों से वोटरों को लुभाकर अपने पाले में खींचने का काम किया है । यह काम दक्षिण के राज्यों में खूब हुआ जो अब उत्तर भारत के राज्यों तक पहुंचने लगा है । वोटरों को लुभाने के लिए चुनावी वादों के लिए एक बहुत ही मशहूर किस्सा है जिसके बारे में हर बार बात की जाती है । तमिलनाडू में एम जी रामचंद्रन की लोकप्रियता चपम पर थी वो सूबे के मुख्यमंत्री थे, चुनाव सर पर थे । चुनाव के उस दौर में तत्कालीन मद्रास के लोग पानी के भयंकर संकट से गुजर रहे थे । आंध्र प्रदेश के साथ तेलुगू गंगा प्रोजेक्ट पर समझौता होना शेष था । एम जी रामचंद्रन ने देखा कि समझौते में देरी हो रही है और पानी का संकट गहराता जा रहा है । इस बात को भांपते हुए कि चुनाव में पानी एक बड़ा मुद्दा बनेगा, एम जी रामचंद्रन ने एलान कर दिया कि गरीबों को पानी रखने के लिए बड़ी बड़ी बाल्टियां सरकार की तरफ से मुफ्त में दी जाएंगीं । एमजीआर के इस चुनावी वादे का असर हुआ और जनता ने उनके पक्ष में मतदान किया । चुनाव में इस बात का कोई प्रमाण नहीं होता है कि वोटर ने किस वजह से अमुक पार्टी को वोट दिया । लेकिन राजनीतिक दलों के वादों और इरादों को जोड़कर एक तस्वीर तो बनाई ही जाती है ।
इस वक्त भी तमिलनाडू में चुनाव प्रक्रिया चल रही है । एम जी रामचंद्रन की विरासत संभाल रही सूबे की मुख्यमंत्री जयललिता ने वोटरों को लुभाने के लिए चुनावी वादों कि झड़ी लगा दी है । ये वादे ऐसे हैं जो तत्काल पूरे हो सकते हैं क्योंकि इसमें ज्यादातर मुफ्त समान देने एलान शामिल है । जयललिता ने एलान किया कि अगर वो जीत कर वापस सत्ता में आती हैं तो उन सभी लोगों को मोबाइल फोन दिए जाएंगें जिनके पास राशन कार्ड होगा । इसी तरह से उन्होंने दसवीं और बारहवीं के छात्रों के लिए मुफ्त लैपटॉप बांटने की घोषणा भी की । इसके अलावा सौ यूनिट बिजली मुफ्त, महिलाओं को स्कूटी खरीदने पर पचास फीसदी सब्सिडी, गर्भवती महिलाओं की सहायता राशि बारह हजार से बढ़ाकर अठारह हजार करने का एलान भी किया गया । जयललिता ने गरीब परिवार को शादी के वक्त बेटी के मंगलसूत्र लिए चार ग्राम सोना के तोहफे को बढ़ाकर आठ ग्राम करने का एलान भी किया है । दो हजार चौदह के चुनाव के वक्त जयललिता ने मुफ्त मिक्सर का एलान किया था। वादा तो दस करोड़ नई नौकरी का भी था लेकिन वादे हैं वादों का क्या । दरअसल तत्काल फायदे के लिए तात्कालिक चुनावी लॉलीपॉप का खेल तमिलनाडू की राजनीति में करीब चार दशकों से खेला जा रहा है । इसमें ना सिर्फ एआईएडीएमके शामिल हैं बल्कि करुणानिधि की पार्टी भी इसमें पीछे नहीं रही है । करुणानिधि भी सोलह लाख छात्रों के लिए फ्री लैपटॉप, टैबलेट, 10 जीबी तक का इंटरनेट कनेक्शन, गरीबों के लिए स्मार्ट फोन देने का चुनावी वादा किया है । इसके अलावा शिक्षा ऋण माफी का भी वादा किया गया है । कांग्रेस और बीजेपी का तमिलनाडू की सियासत में बहुत कुछ दांव पर है नहीं लिहाजा उनके चुनावी वादे भी इनकी तुलना में कम किए हैं । बीजेपी ने जलीकट्टू पर लगाई पाबंदी को हटाने का भरोसा दिया है और गरीब परिवार की बेटी को शादी में आठ ग्राम सोने का लॉलीपाप दिया है वहीं कांग्रेस ने आजमाए हुए नुस्खे को दोहराते हुए किसानों के कृषि ऋण माफी का एलान किया है । लेकिन सबसे दिलचस्प दावा विजयकांत की पार्टी डीएमडीके ने किया है । उन्होंने पोंगल पर एक हफ्ते की छुट्टी, पेट्रोल पैंतालीस रुपए लीटर और डीजल 35 रुपए लीटर के अलावा सूबे के पांच हजार किसानों को खेती की आधुनिक तकनीक सीखने के लिए विदेश भेजने का वादा किया है । विजयकांत ने वादा किया है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो गरीब परिवारों की आय बढ़ाकर पच्चीस हजार प्रतिमाह करवा देंगे । इस नायाब योजना के लिए वो सूबे में 1120 थिएटर और करीब सवा लाख दुकानें खोलेंगे ।

साफ है कि तमाम राजनीतिक दल इस तरह के एलान कर सत्ता हासिल करना चाहती हैं लेकिन सत्ता के लिए वो भूल जाते हैं कि सूबे की वित्तीय स्थिति पर इसका क्या दूरगामी असर होगा । एक अनुमान के मुताबिक तमिलनाडू के कर्ज में पिछले पांच साल के दौरान सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है । वहां की सरकार ये तर्क दे सकती है कि कर्ज और सूबे की जीडीपी का अनुपात राष्ट्रीय औसत से कम है लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि कर्ज पर ब्याज अदायगी की दर में भी बढ़ोतरी हुई है और उनका राजस्व घाटा भी बढ़ा है । दरअसल वोटरों को लुभाने का ये खेल अब उत्तर भारतीय राज्यों में भी खुलकर खेला जाने लगा है । दो हजार बारह के यूपी चुनाव में अखिलेश की सफलता के पीछे फ्री लैपटॉप के एलान का बड़ा हाथ रहा था । इसी तरह से नीतीश कुमार ने छात्राओं को मुफ्त साइकिल देकर वाहवाही के साथ साथ वोट भी बटोरे थे । इस वक्त भले ही लालू-नीतीश साथ मिलकर बिहार में सरकार चला रहे हों लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त दोनों ने मुफ्त सामान के वादों को लेकर एक दूसरे पर जमकर तीर चलाए थे । इसी तरह से छत्तीसगढ़ में रमन सिंह ने गरीबों के लिए एक रुपए किलो चावल देकर अपने लिए चाउर बाबा का विशेषण तो अर्जित किया ही जमकर वोट भी बटोरे । रमन सिंह ने भी कॉलेज में प्रवेश करनेवालों छात्रों को लैपटॉप का लॉलीपॉप 2013 के विधानसभा चुनाव में दिया था ।
चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के इस मुफ्त सामान के वादों को लेकर विमर्श की कोशिश की थी लेकिन उसको सफलता हाथ नहीं लगी । एक दो छोटी पार्टियों को छोड़कर सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने इसके पक्ष में अपनी राय रखी थी । सवाल अब भी यही है कि क्या मुफ्त के इन सामानों का एलान कर राजनितक दल निष्पक्ष चुनाव की संविधान की भावना का सम्मान कर रहे हैं ।कतई नहीं ।   

  

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