आज से तीन साल पहले जब नरेन्द्र मोदी ने देश की कमान संभाली थी तब
उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी ‘चलता है’ एटीट्यूड के भंवर जाल से देश को बाहर
निकालना। घोटालों में फंसी यूपीए सरकार की वजह से प्रशासन लगभग फैसले लेने में
हिचकने लगा था। ऐसे माहौल में फैसले लेने वाली सरकार के तौर पर एनडीए सरकार की छवि
निर्माण का मुद्दा भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने था। इन दो चुनौतियों के अलावा जो सबसे बड़ी चुनौती
थी वो थी देश के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर मुहैया करवाना। दो हजार तेरह चौदह
में देश में निवेश का माहौल नहीं होने की वजह से विदेशी पूंजी उस रफ्तार से नहीं आ
पा रही थी जिसकी दरकार एक विकासशील देश होने के नेता हमें थी। प्रधानमंत्री मोदी
ने मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत
करके विदेशी पूंजी को आमंत्रित करने का काम शुरू किया। रक्षा उतपादन के क्षेत्र
में भी निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए विदेशी निवेश की सीमा बढ़ा दी गई। मेक इन इंडिया का एक बड़ा उद्देश्य यह था कि विदेशी
धरती पर बनने वाले साजो समान भारत की धरती पर बनें ताकि यहां के लोगों को रोजगार
मिल सके। ज्यादातर कंपनियां हमारे पड़ोसी देश चीन में अपना बेस बनाकर बैठी थीं और
वहां सस्ते श्रम और कम लालफीताशाही की वजह से प्रोडक्शन कर मुनाफा कमाती थी।
प्रधानमंत्री मोदी ने जब मेक इंडिया कार्यक्रम की शुरुआत की थी तो एक उद्देश्य
युवाओं के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने का भी था। यही उद्देश्य स्टार्टअप
इंडिया का भी था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इन कार्यक्रमों की वजह से देश में
अलग अलग सेक्टर में रोजगार के अवसर उपलब्ध हुए भी, जिसकी पुष्टि हाल ही में जारी
संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन ने भी की है। इस रिपोर्ट
के मुताबिक भारत ने दो हजार सोलह में रोजगार के ज्यादा अवसर पैदा किए। रिपोर्ट के
मुताबिक दक्षिण एशिया में जो करीब एक करोड़ चौतीस लाख नए रोजगार दिए गए उनमें से
ज्यादातर भारत में ही दिए गए। इस रिपोर्ट में ये भी माना गया है कि भारत की सात
दशमलव छह फीसदी की विकास दर की वजह से ही दक्षिण एशिया की विकास दर छह दशमलव आठ
फीसदी पर कायम रह पाई। यूएन की इस संस्था की रिपोर्ट में भारत को लेकर कई
उत्साहजनक बातें कही गई हैं। इस
तरह से अगर हम देखें तो इतना तो कहा ही जा सकता है कि भारत में रोजगार के ज्यादा
अवसर पैदा होने लगे हैं। आईएलओ की इसी रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारत में
दो हजार सत्रह और दो हजार अठारह में बेरोजगारी में मामूली बढ़ोतरी होगी । इनके
आंकलन के मुताबिक दो हजार सत्रह में 17.8 मिलियन से बढ़कर दो हजार अठारह में अठारह
मिलियन पहुंचने का अनुमान है। इस मामूली वृद्धि को भी रोजगार के नए अवसर पैदा करने
के नतीजे के तौर पर देखा जाना चाहिए अन्यथा वैश्विक बेरोजगारी में वृद्धि की दर
लगभग पांच फीसदी प्रतिवर्ष है। बेरोजगारी को उसके औसत वृद्धि से कम दर पर रोकना भी
तभी संभव होता है जब रोजगार के नए अवसर पैदा किए जाएं।
मोदी
सरकार के तीन साल पूरे होने पर विपक्ष ने सरकार पर जो आरोप लगाए उनमें बढ़ी
बेरोजगारी भी एक है। बेरोजगारी एक ऐसा कारतूस है जिसको किसी भी तरह के गन में फिट
किया जा सकता है और किसी भी टारगेट पर फायर किया जा सकता है। सफलता की उम्मीद भी
की जा सकती है। बेरोजगारी एक मसला नहीं है जिसका हल पलक झपकते हो जाए। इसके लिए
दीर्घकालीन योजनाएं बनानी पड़ती हैं और इन योजनाओं को जमीन पर उतारने में वक्त भी
लगता है। मेक इन इंडिया कार्यक्रम को शुरु हुए अभी सिर्फ तीन साल हुए हैं। तमाम
विदेशी कंपनियां भारत में अपने प्रोडक्ट को बनाने के लिए तैयार हैं, बल्कि कइयों
ने तो उत्पादन शुरू कर दिया है। चीन की मोबाइल कंपनी से लेकर एप्पल तक ने भारत में
अपना काम काज शुरू कर दिया है। अब जाकर इसके ठोस नतीजे दिखाई देने लगे हैं जिसका
व्यापक असर आनेवाले दिनों में और दिखाई देगा। हाल ही में अमेरिकी फाइटर प्लेन एफ
16 बनाने वाली कंपनी ने टाटा के साथ करार किया है। अमेरिकी कंपनी लाकहीड मार्टिन
अब भारत में टाटा एडवांस डिफेंस सिस्टम लिमिटेड के साथ मिलकर एफ 16 का उत्पादन
करेगी। रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में ये करार बेहद अहम माना जा रहा है। एक तो इससे
हमारे देश की रक्षा के क्षेत्र में दूसरे पर निर्भरता कम होगी और आयात निर्यात का
संतुलन भी बेहतर होगा। इस वक्त दुनिया के छब्बीस देश एफ 16 फाइटर प्लेन का उपयोग
अपनी रक्षा सेवाओं में करते हैं। भारत में इसके उत्पादन के शुरू होने से इन देशों
को फाइटर प्लेन की स्पलाई यहां से भी संभव हो सकेगी। अब अगर ज्यादा उत्पादन होगा
तो प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूप में स्थनीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर
बढ़ेंगे। इसी तरह से राफेल और एडीएजी की रिलायंस डिफेंस में जिस तरह क करार हुआ है
वह भी बेहद उत्साहवर्धक है। इस डील से भी ना केवल लोकल प्रोडक्शन होगा बल्कि
रोजगार भी बढ़ेंगे।
तीन
साल क बाद अब जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं उससे विपक्षी दलों समेत देश की जनता के
सामने यह तस्वीर उभरनी शुरू हो गई है कि मौजूदा सरकार देश में बेरोगारी खत्म करने
के लिए गंभीरता से प्रयासरत है। जीएसटी के लागू होने के बाद एक बार फिर से विदेशी
निवेशकों का देश की अर्थव्यवस्था में भरोसा बढ़ेगा क्योंकि कर के मकड़जाल से उनको
मुक्ति मिलेगी। वह स्थिति भी बेरोजगारी को रोकने में मददगार होगी।
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