इन दिनों सोशल मीडिया पर बिहार में बहार है, टॉपर गिरफ्तार है का
जुमला लगातार चल रहा है। इसके अलावा भी तरह तरह के जुमले गढ़े और वायरल किए जा रहे
हैं। बिहार की शिक्षा व्यवस्था की पोल एक बार फिर खुली है। यह लगातार दूसरा साल है
जब बारहवीं के टॉपर को उसके विषय का ज्ञान ही नहीं है और वो न्यूज चैनलों के कैमरे
के सामने अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन करते हुए धरे गए हैं । पिछले साल हाजीपुर की
एक लड़की ने टॉप किया था और उसका विषय पॉलिटिकल साइंस था लेकिन उसको अपने विषय का
नाम भी पता नहीं था और उसने कैमरे के सामने पॉलिटिकल साइंस को प्राडिकल साइंस कहा
था । इस साल भी जिस शख्स ने म्यूजिक को विषय लेकर टॉप किया है उसको संगीत की ए बी
सी भी नहीं आती है । इसका सार्वजनिक प्रदर्शन भी हुआ। इकतालीस बयालीस साल का एक शख्स
बारहवीं में टॉप करता है और सिस्टम इसको कहीं भी जांच नहीं पाता है। सिस्टम को
धोखा देकर या सिस्टम की मदद लेकर टॉप कर जा रहा है। इससे मेधावी छात्रों को नुकसान
तो हो ही रहा है लेकिन उससे भी ज्यादा नुकसान बिहार की छवि को हो रहा है जिसको
लेकर बिहार के मुख्मंत्री खासे सतर्क रहते हैं । इस बार भी टॉपर पर केस हुआ,
गिरफ्तारी हुई लेकिन इस समस्या की जड़ में जाना होगा । पिछले साल भी बिहार के
मुख्यमंत्री ने कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिया था । कार्रवाई हुई भी लेकिन लगता है
वो नाकाफी था। पिछली बार जो टॉपर घोटाला हुआ था उसके बाद सरकार ने अड़सठ स्कूलों
की बारहवीं की मान्यता रद्द कर दी थी और 19 स्कूलों की मान्ता रद्द करने जैसी बड़ी
कार्रवाई भी हुई थी लेकिन सिस्टम में इतने झोल और सुराख हैं कि लीकेज को रोक पाना
संभव नहीं है । पिछले साल भी टॉपर घोटाले के सामने आने के बाद ताबड़तोड़ छापेमारी
हुई थी । पूर्व बोर्ड अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद आदि पर भी कार्रवाई हुई थी ।
पिछले साल बिहार में बोर्ड परीक्षा के वक्त एक फोटो वायरल हुआ था
जिसमें हर खिड़की पर एक शख्स लटका था और बताया जा रहा था कि हर मंडिल पर खिड़कियों
पर लटके लोग नकल करवाने में व्यस्त हैं । इस फोटो के सामने आने के बाद उसपर जमकर
चर्चा हुई थी और विदेशों तक में बिहार की शिक्षा व्यवस्था को उस फोटो के आधार पर
परखा गया था । विदेशी अखबारों ने उस फोटो के आधार पर एडिटोरियल लिखे थे। आवश्यकता
इस बात की है कि शिक्षा व्यवस्था को बुनियादी स्तर से ठीक किया जाए। बिहार की शिक्षा
व्यवस्था में कमजोरी की जड़ में बहुत हद तक शिक्षकों की कमी का होना है ।
प्रशासनिक लालफीताशाही में शिक्षकों की नियुक्ति का मामला उलझता रहा है और विभागीय
मंत्रियों ने इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया । प्राइमरी स्कूल से लेकर कॉलेज तक ये
बीमारी व्याप्त है लेकिन इसके इलाज के लिए पिछले दो दशक में कुछ किया गया हो ये
दिखाई नहीं देता । चंद सालों पहले जब ठेके पर प्राइमरी शिक्षक रखे गए थे तब उसमें
भी गड़बड़झाला हुआ था । बाद में पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद तीन हजार
कॉन्ट्रैक्ट शिक्षकों को बर्खास्त करने की प्रक्रिया शुरू की गई थी क्योंकि जब
उनका टेस्ट लिया गया तो वो आधारभूत जानकारी भी नहीं बता पाए । दो हजार बारह में भी
एक सौ इक्यावन प्राइमरी शिक्षकों को योग्य नहीं होने के चलते हटा दिया गया था । अब
जब शिक्षक ही इस तरह के होंगे तो छात्रों से क्या अपेक्षा की जा सकती है । पिछले
साल यह भी चर्चा उठी थी कि देशरत्न डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने छपरा के जिस स्कूल
से दसवीं पास की थी उस स्कूल की हालत ये है कि वहां नवीं- दसवीं के लिए एक भी
शिक्षक नहीं थे। राजेन्द्र बाबू ने वहां पढ़ाई की थी लिहाजा उसकी ऐतिहासिकता को
देखते हुए हाई स्कूल को इंटर कॉलेज बना दिया गया । स्कूल को अपग्रेड तो कर दिया
गया लेकिन स्कूल की रीढ़ माने जानेवाले शिक्षक वहां नहीं है । अब जिस स्कूल में
कोई शिक्षक नहीं हो और साल दर साल वहां परीक्षा हो तो फिर क्या हो सकता है इसकी
कल्पना ही की जा सकती है ।
बिहार मे स्कूली शिक्षा के अलावा कॉलेजों में भी
हाल बुरा है । बिहार में कई ऐसे कॉलेज हैं जहां विषय विशेष में कोई भी शिक्षक नहीं
है लेकिन वहां हर साल एडमिशन हो रहा है और छात्र पास भी कर रहे हैं । तिलकामांझी
भागलपुर विश्वविद्यालय के अंतर्गत मुंगेर के एक कॉलेजों में केमिस्ट्री, ज्योग्राफी
और संस्कृत में कोई शिक्षक नहीं है लेकिन वहां हर साल इन विषयों में छात्रों का
नामांकन हो रहा है । इसी तरह से इसी शहर के एक और कॉलेज में शिक्षकों की संख्या
इतनी कम हो गई है कि कॉलेज के जरूरी काम भी संभव नहीं हो पा रहे हैं । पास के
खड़गपुर के कॉलेज की भी स्थिति कुछ बेहतर नहीं है । अब यह तो अजूबा है कि किसी
कॉलेज में विषय का कोई शिक्षक नहीं हो और वहां से हर साल उसी विषय में छात्र पास
कर रहे हों । यहीं से नकल और टॉपर घोटाले की जमीन तैयार होती है । छात्र मजबूर हैं,
स्कूल और क़ॉलेज के शिक्षक इस नासूर को रोकने में बेबस । सवाल यही
उठता है कि टॉपर घोटाले में मुजरिम तो पकड़े जा सकते हैं लेकिन साल दर साल इस तरह
के घोटाले की वजहों को चिन्हित करके उसको दुरुस्त करने का काम जितना जल्द शुरू हो
सकते उतना अच्छा है । इस वक्त नीतीश कुमार के सहयोगी दल कांग्रेस के कोटे से
शिक्षा मंत्री हैं। कांग्रेस को आगे बढ़कर घोटाले की जमीन पर प्रहार करने की
इच्छाशक्ति दिखाना होगा।
1 comment:
घोटाले पीछे ही नहीं छोड़ रहे है, एक के बाद एक घोटालों को देखकर लोग उकता गए है, इसलिए पहले तो बहुत हल्ला होता है लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात।
विचारशील प्रस्तुति
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