अंग्रेजी में प्रकाशित ज्यादातर आत्मकथात्मक पुस्तकों
के प्रकाशन के पहले एक उत्सुकता का वातावरण बनाया जाता है या फिर किताब को लेकर
सकारात्मक-नकारात्मक चर्चा की रणनीति तैयार की जाती है। चर्चा के लिए सबसे आसान
होता है पुस्तक के किसी विवादास्पद हिस्से को प्रकाशन के पहले जारी कर देना। ये
ट्रेंड पूरी दुनिया में है। पिछले कुछ सालों की पुस्तकों पर नजर डालें तो तस्वीर
बिल्कुल साफ हो जाती है। जब ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की आत्मकथा
‘अ जर्नी’
प्रकाशित होनेवाली थी तो प्रकाशकों ने उसके रसभरे प्रसंगो के चुनिंदा अंश लीक कर
दिए। ये रणनीति जोरदार बिक्री का आधार बनी और प्रकाशन के चार हफ्ते के अंदर उसके
छह रिप्रिंट करने पड़े। इसी तरह से न्यूयॉर्क टाइम्स के पूर्व कार्यकारी संपादन
जोसेस लेलीवेल्ड की गांधी पर लिखी किताब ‘ग्रेट
सोल महात्मा गांधी एंड हिज स्ट्रगल विद इंडिया’
प्रकाशित होनेवाली थी तो लंदन के एक अखबार में लेख छपा था जिसका शीर्षक था, ‘गांधी लेफ्ट हिज वाइफ टू लिव विद मेल लवर’। लंदन के अखबार में छपी खबर के आधार पर मुंबई के
एक समाचारपत्र ने लेख छाप दिया। जमकर विवाद हुआ। तब गुजरात विधानसभा में राज्य में
पुस्तक पर प्रतिबंध का प्रस्ताव पास हो गया था। बाद में जब किताब आई तो पता चला कि
गांधी और उनके जर्मन मित्र हरमन कैलबाख के पत्रों के आधार पर लेखक ने ये संकेत
देना चाहा कि गांधी समलैंगिक थे। प्रचारित ये किया गया कि गांधी के बारे में जोसेफ
लेलीवेल्ड ने कोई नया तथ्य उद्घाटित किया है। किताब को पढ़ने के बाद ये साफ हुआ कि
ये पुरानी बात है, लेकिन तबतक पुस्तक हिट हो चुकी थी। इसी तरह से अमेरिका के पूर्व
राष्ट्रपति कैनेडी पर मिमी अल्फर्ड की किताब ‘वंस
अपॉन अ सीक्रेट, माई अफेयर विद जॉन एफ कैनेडी एंड इट्स ऑफ्टरमाथ’ प्रकाशित होनेवाली थी तो पुस्तक के चुनिंदा अंश
लीक करके किताब की बिक्री बढ़ाने का उपक्रम किया गया था।
हाल ही में जब भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल रहे
और अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर जमीरउद्दीन शाह की किताब ‘द सरकारी मुसलमान’ प्रकाशित
होनेवाली थी तो 2002 के गुजरात दंगों को लेकर एक विवाद खड़ा करने की कोशिश की गई। 2002
के गुजरात दंगों के वक्त शाह वहां सेना की अगुवाई कर रहे थे। अपनी पुस्तक में
उन्होंने एक जगह लिखा है कि 1 मार्च को सुबह सात बजे तक अहमदाबाद एयरपोर्ट पर सेना
के तीन हजार जवान पहुंच गए थे। राज्य सरकार ने सूबे के अलग अलग हिस्लों में सेना
के जवानों की तैनाती के लिए गाड़ी आदि मुहैया करवाने में एक दिन की देरी की। लेखक
का दावा है कि उन्होंने उस वक्त के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को सुबह
दो बजे तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस की मौजूदगी में अनुरोध किया था,
बावजूद इसके सेना की तैनाती में देरी हुई।
इसको लेकर विवाद होना ही था, हुआ भी लेकिन यह भी पुस्तक की बिक्री का एक ट्रिक
ही साबित हुआ क्योंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एसआईटी इस मामले में पहले ही
सरकार को क्लीन चिट दे चुकी है।
No comments:
Post a Comment