इस वक्त पूरे देश में लॉकडाउन चल रहा है। ये
लॉकडाउन कोरोना वायरस की वजह से किया गया है ताकि इसके फैलाव को रोका जा सके।
सरकार के इस फैसले के बाद लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं। सारा देश कोरोना को
रोकने के आह्वान की वजह से लगभग ठप है। लगभग इस वजह से कह रहा हूं कि आवश्यक
सेवाएं जारी हैं। बड़े-बुजुर्ग, महिलाएं-पुरुष, बच्चे-किशोर सभी घरों में ही रह हैं। वो बाहर
बिकुल नहीं निकल रहे हैं। महानगरों में जहां फ्लैट की संस्कृति है, जहां संयुक्त परिवारों का चलन लगभग नहीं है, वहां
लोग अकेले अपने घरों में रह रहे हैं। शहरों के अलावा कस्बों और गांवों में भी ऐसे
लोगों की बहुत बड़ी संख्या है जो अपने घरों में अकेले रहकर कोरोना के इस संकट को
मात देने में लगे हैं। इसके लिए धैर्य और संकल्प की जरूरत है। अपने घरों में
इक्कीस दिनों तक अकेले रहना बेहद मुश्किल है। जो लोग वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं
उनको तो बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही है लेकिन जो लोग कारोबारी हैं, जिनका अपना काम है, जो
छात्र हैं ऐसे लोगों को घर में बहुत अधिक काम नहीं है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है
कि ‘कई बार अकेलापन लोगों को अवसाद की ओर भी ले जाता
है।‘
हिंदी फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री मीना कुमारी की
आगामी 31 मार्च को पुण्यतिथि है। इस माहौल में उनकी जिंदगी की कहानी याद आती है कि
किस तरह से अकेलापन एक बिंदास शख्सियत को अवसाद की ओर ले कर चला गया था। उनतालीस साल
की अपनी छोटी सी उम्र में जब-जब मीना कुमारी ने अपना अकेलापन दूर करने की कोशिश की
वो जिंदगी के तमाम रंगों को अपने व्यक्तित्व में उतारने में सफल रहीं। अपनी निजी
जिंदगी में भी और अपने प्रोफेशन में भी। जब-जब अकेलापन उनपर भारी पड़ा तब-तब वो
अवसाद में गईं और उनका और पूरे कलाजगत का नुकसान हुआ।
इस संदर्भ में मशहूर अभिनेत्री नर्गिस ने एक
प्रसंग लिखा है, ‘राजेश खन्ना और मीना कुमारी अभिनीत फिल्म ‘दुश्मन’ की शूटिंग खत्म हो
चुकी थी। उसकी एडिटिंग शुरू हो चुकी थी। इस फिल्म की डबिंग का काम नरगिस के घर पर
स्थित छोटे से थिएटर में शुरू हो चुका था। एक दिन फिल्म की डबिंग के लिए मीना
कुमारी वहां पहुंची। उन्हें पता था कि ये थिएटर नर्गिस के घर में ही है। उन्होंने
किसी से कहा कि जाओ देखकर आओ नर्गिस है कि नहीं। जब उनको पता चला कि नर्गिस घर पर
हैं तो उन्होंने अपने स्टॉफ को नर्गिस के पास इस अनुरोध के साथ भेजा कि वो उनसे
मिलना चाहती हैं।‘ नर्गिस किसी काम में व्यस्त थीं लेकिन मीना
कुमारी के अनुरोध को वो ठुकरा नहीं सकती थीं क्योंकि दोनों में काफी दोस्ती हो
चुकी थी। मीना कुमारी को नर्गिस मंजू कहती थीं और वो नर्गिस को बा’जी के नाम से बुलाती थी। दोनों के बीच की दोस्ती
फिल्म ‘मैं चुप रहूंगी’ की
शूटिंग के दौरान अंतरंगता में बदल गई थी। जब इस फिल्म की शूटिंग चेन्नई में चल रही
थी तो उसका शेड्यूल काफी लंबा हो गया था। सुनील दत्त साहब ने नर्गिस को फोन कर
अपने दोनों बच्चों संजय और नम्रता के साथ वहां बुला लिया था। तब संजय दत्त ढाई साल
के थे और नम्रता दो महीने की थी। ये सभी लोग जब चेन्नई पहुंचे तो वहां होटल ओसनिक
में रुके थे। उनके कमरे के बगल के कमरे में ही मीना कुमारी भी रह रही थीं। वहीं
दोनों की दोस्ती परवान चढ़ी थी। एक दिन शाम को सुनील दत्त ने चाइनीज खाने का
प्रोग्राम बनाया तो नर्गिस ने मीना कुमारी को भी साथ चलने का निमंत्रण दिया। मीना
कुमारी उस दिन शूटिंग करते हुए बहुत थक गई थी इसलिए उसने साथ जाने में असमर्थता
जताई। लेकिन मीना कुमारी ने नर्गिस के सामने एक प्रस्ताव रखा कि वो उनके दोनों
बच्चों को अपने साथ रख लेंगी ताकि वो और दत्त साहब अकेले डिनर पर जा सकें। नर्गिस
और सुनील दत्त को मीना कुमार का ये प्रस्ताव भाया और वो दोनों बच्चों को उनके पास
छोड़कर चाइनीज खाने का आनंद लेने चले गए। जब वो लौटकर आए तो दोनों बच्चे मीना
कुमारी से चिपटकर सो रहे थे। नर्गिस ने लिखा कि ‘उस वक्त
मीना कुमारी के चेहरे पर सुखद संतुष्टि का भाव था और उसका एक हाथ संज और एक हाथ नम्रता के ऊपर था’
हम बात कर रहे थे ‘दुश्मन’ फिल्म की डबिंग के दौरान मीना कुमारी का नर्गिस
को अपने पास बुलाने की। नर्गिस जब वहां पहुंची तो मीना कुमारी ने वहां मौजूद सभी कर्मचरियों
से अनुरोध किया कि वो ग थोड़ी देर के लिए कहीं चले जाएं, दोनों अकेले में कुछ
बातें करना चाहते हैं। जैसे ही लोग वहां से निकले तो मीना कुमारी ने अपना सर
नर्गिस के कंधे पर रख दिया और सुबकने लगी। अचानक मीना कुमारी के इस बर्ताव से
नर्गिस हतप्रभ रह गईं। मीना कुमारी लगातार रोए जा रही थीं और नर्गिस उनके पीठ पर
हाथ फेरते हुए उनको सांत्वना दे रही थी। रोते-रोते मीना कुमारी ने नर्गिस से कहा ‘बा’जी, मैं कितनी अभागन हूं कि कोई भी मुझे प्यार नहीं करता, आप भी नहीं। आप भी मुझसे महीनों नहीं मिलती हैं, कोई मुझसे बात नहीं करता, मैं किसको अपने मन की बात कहूं’ । इतना सुनते ही नर्गिस भी भावुक हो गईं और
उन्होंने मीना कुमारी को बच्चों की तरह अपने सीने से लगा लिया और समझाना शुरू कर
दिया। नर्गिस के भरोसे के बाद मीना कुमारी बेहद खुश दिखीं और उन्होंने नर्गिस से
वादा लिया कि वो ‘पाकीजा’ के प्रीमियर पर
जरूर आएंगी। इस पूरे प्रसंग को बताने का मकसद इतना है कि मीना कुमारी के अवसाद में
जाने की वजह उनका अकेलापन था। वो इस बात को लेकर खुद को अभागन तक मानने लगी थीं कि
कोई न तो उनसे बात करता है न ही उनकी बात सुनता है। अकेलापन को लेकर लोगों में
मतैक्य नहीं है। कई लोग इसको रचनात्मकता बढ़ानेवाला मानते हं तो कई इसको अवसाद का
रास्ता। पर ज्यादातर केस में देखा गया है कि अकेलापन लोगों को अवसादग्रस्त करता
है। ग्रेट ब्रिटेन के ब्रिटिश रॉयल कॉलेज ऑफ जनरल प्रैक्टिशनर्स के मुताबिक ‘अकेलापन एक गंभीर बीमारी है. पूरी दुनिया में
डायबिटीज से जितनी मौत होती है उतनी ही मौत अकेलेपन के शिकार लोगों की होती है।‘
अगर हम मीना कुमारी के जिंदगी को ही देखें तो एक
इतनी कामयाब अभिनेत्री जिसने ‘बैजू बावरा’ से लेकर ‘पाकीजा’ जैसी बेहतरीन फिल्में की। अभिनय की जिन ऊंचाइयों
को उन्होने अपनी निभाई भूमिकाओं में छुआ उसने उनको कला के शिखर तक पहुंचा दिया था।
मीना कुमारी जब भी तन्हा होती थी तो उनकी व्यक्तिगत जिंदगी उनको परेशान करती थीं।
जब भी उनकी जिंदगी में तन्हाई दूर होती थी तो उनकी जिंदगी सतरंगी हो जाती थी। आज
जब सभी लोगो कोरोना वायरस से बचने के लिए अपने घरों में बंद हैं तो इस बात का
विशेष ध्यान रखना चाहिए कि आप अकेलापन के शिकार न हों। शारीरिक दूरी इस भयंकर
बीमारी को रोकने के लिए जरूरी है लेकिन अपनी सामाजिकता को बाधित न होने दें। फोन,
इंटरनेट और अन्य आभासी माध्यम से अपने संपर्कों को जीवंत रखें। दोस्तों से अपने मन
की बात कहें और दोस्तों के मन की बात सुनें। मीना कुमारी जब भी किसी वजह से परेशान
होकर घर बैठ जाती थीं तो वो अकेलेपन का शिकार हो जाती थीं क्योंकि वो खुद को घर में
सबसे दूर कर लेती थीं। लेकिन जब-जब को किसी रिलेशनशिप में रहीं या किसी काम में
व्यस्त रहीं तो उनकी जिंदगी बेहतरीन हो जाती थीं। जब वो अपनी व्यक्तिगत जिंदगी के
संघर्षों से बाहर निकलकर ‘पाकीजा’ फिल्म करने के लिए
वापस तैयार हुईं तो भी वो इस अकेलेपन से मुक्त हो गईं, उनके जीवन का खालीपन भर
गया। लेकिन फिल्म ‘पाकीजा’ के रिलीज होने के
बाद वो फिर से अकेलेपन की गिरफ्त में चली गईं। नाम, इज्जत शोहरत, काबिलियत,
रुपया-पैसा हासिल करने के बाद कई बार लोगों को लगता है कि उन्होंने अपनी जिंदगी के
सभी लक्ष्य हासिल कर लिया है। सारी भौतिक सुख सुविधाएं हासिल कर लेने के बाद भी जिंदगी
पूर्ण नहीं होती। मीना कुमारी की जिंदगी इस बात का उदाहरण है कि तमाम चीजें हासिल
करने के बाद भी इंसान अगर अकेला है तो वो उसकी जिंदगी अधूरी है। आप भी अपने जीवन
में अकेलेपन को आने न दें।
1 comment:
सही कहा आपने अकेलापन एक खतरनाक बिमारी की तरह है। कई बार लोग अर्थ पाने के चक्कर में इतना खो जाता है कि रिश्ते निभाना भूल जाता है। इससे होता यह है कि जब उसके पास धन दौलत आता है तब उसके पास उसके चाहने वाले नहीं बचते हैं। वह अकेला हो जाता है। इसलिए जीवन में एक संतुलन होना चाहिए। संतुलित जीवन जियेंगे तो बेहतर होगा वरना अकेलेपन का दंश झेलना पड़ेगा।
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