कोरोना के खतरे को देखते हुए जो लॉकडाउन किया गया है उसने लेखकों, पुस्तकों, प्रकाशकों और पाठकों की श्रृंखला भी प्रभावित हुई है। ना तो पुस्तकें छप पा रही हैं और ना ही वो पाठकों तक पहुंच पा रही हैं। ऐसे माहौल पाठकों और लेखकों के बीच संवाद बाधित होता देख दिल्ली के कई प्रकाशकों ने एक बेहतर पहल की। उन्होंने लेखकों और पाठकों के बीच संवाद करवाने की ठानी। इसके लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म एक ऐसी जगह थी जिसका दायरा भी बड़ा था और जिससे हिंदी का पाठक वर्ग जुड़ा भी था। सभी हिंदी के बड़े प्रकाशक सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं और अह उन्होंने सोशल मीडिया का उपयोग लेखकों और पाठकों के बीच संवाद बनाने में किया। हलांकि इसमें एक चुनौती भी थी। हिंदी के वरिष्ठ लेखकों में से अब भी कई ऐसे हैं जो फेसबुक पर तो हैं पर उसके तकनीकी पक्ष से बहुत ज्यादा परिचित नहीं हैं। उनको तकनीक समझाना और लाइव करवाना एक बड़ी चुनौती थी. कहते हैं न कि आवश्यकता सबकुछ करवा लेती है लिहाजा थोड़ी मेहनत के बाद हिंदी के उन वरिष्ठ लेखकों ने भी फेसबुक पर लाइव करना सीख लिया, जो अबतक इसका उपयोग नहीं जानते थे। वाणी प्रकाशन ने ऑनलाइन साहित्य महोत्सव की शुरुआत की थी जिसमें देश-विदेश के लेखक भाग ले रहे हैं लेकिन बाद में इसका नाम बदलकर समय और समाज ऑनलाइन गोष्ठी कर दिया गया। अदिति के मुताबिक ये नाम इस वजह से बदला गया क्योंकि उन्होंने जब दिल्ली से बाहर जानेवालों की भीड़ और उनका दर्द देखा तो उनको लगा कि ऐसे माहौल में किसी तरह का महोत्सव उचित नहीं है, लिहाजा उसको गोष्ठी का नाम दे दिया गया।
ऑनलाइन साहित्य संवाद की पहल करनेवाली वाणी प्रकाशन की युवा निदेशक अदिति माहेश्वरी कहती हैं कि लॉकडाउन शुरू होने के बाद उनके पास लेखकों के फोन आते थे तो कईबार एक निराशा का भाव भी महसूस करती थी। उन्होंने कहा ’मैंने महसूस किया कि एक सवादहीनता की स्थिति बन रही है और मुझे लगा कि कहीं इससे निराशा न व्याप्त हो जाए। फिर मैंने ऑनलाइन साहित्य महोत्सव शुरू करने का फैसला लिया। कई लेखकों को लॉगइन करके लाइव करना सिखाना पड़ा, उनको वाणी प्रकाशन के पेज से लाइव किया। इसके बहुत अच्छे नतीजे रहे। लाइव के वक्त हजारों की संख्या में पाठक जुड़े।‘ अब तो रास्ता खुल गया था और हिंदी के कई प्रकाशकों ने भी लाइव करने शुरू कर दिया। राजपाल एंड संस की कर्ताधर्ता मीरा जौहरी कहती हैं कि ‘लेखकों को फेसबुक पर लाइव करवाने का अनुभव बेहद अच्छा है। इसका एक फायदा यह भी हुआ है कि आप अगर लाइव के दौरान अपने पसंदीदा लेखक की बात नहीं सुन सकते हैं तो आप बाद में भी उसको देख सकते हैं। लेखक का वीडियो और उनकी बातें हमारे फेसबुक पेज पर लगी ही रहती हैं, पाठकों को जब इच्छा होती है तो वो अपनी सुविधानुसार इसके देख सकते हैं। हां, लाइव में एक फायदा ये होता है कि कि कोई पाठक अगर चाहे तो अपने लेखक से सवाल भी पूछ सकता है, उनकी रचनाओं के बारे में बात भी कर सकता है.यह एक बिल्कुल नई शुरुआत है और इसने संवाद को लेकर एक नई उम्मीद जगाई है।‘
लॉकडाउन के इस दौर में जब सबलोग अपने घरों में ही रह रहे हैं और अभी लगभग एक पखवाड़ा तक ये दौर चलेगा उसमें दिल्ली के प्रकाशकों की इस पहल का असर हिंदी साहित्य पर असर डालनेवाला है। जैसे-जैसे इंटरनेट का दायरा बढ़ेगा वैसे-वैसे ये संवाद और भी बढ़ेगा। पश्चिम के देशों में इस प्रवृत्ति के कई लाभ देखने को मिले हैं। कुछ सालों पहले ई एल जेम्स की फिफ्टी शेड्स ट्राएलॉजी प्रकाशित हुई थी जिसने पूरी दुनिया में धूम मचा दी थी। इस उपन्यास का दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। इसपर फिल्म भी बनी। लेखिका को करोड़ों की कमाई हुई थी। ई एल जेम्स ने इस उपन्यास को लिखने के पहले छोटे छोटे अंश लिखकर इंटरनेट पर डाले थे और पाठकों की प्रतिक्रिया मांगी थी। पाठकों की प्रतिक्रिया के आधार पर वो उस अंश को आगे बढ़ाती थी। उन्होंने एक इंटरव्यू में स्वीकार किया था इस उपक्रम से उसको फिफ्टी शेड्स लिखने में काफी मदद मिली थी। कहने का मतलब ये है कि ऑनलाइन इस तरह के संवाद से पाठकों की रुचि जानने में लेखकों को मदद मिल सकती है। अगर पाठकों के फीडबैक को लेखक अपनी रचनाओं में शामिल करते हैं तो हो सकता है कि पाठक उसको अधिक पसंद करें और लेखक की लोकप्रियता बढ़े।
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