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Thursday, April 30, 2020

प्रेम और विद्रोह का नायक


कहते हैं कि पूत के पांव पलने में दिख जाते हैं लेकिन ऋषि कपूर के पांव तो खाट पर दिखे थे जब उन्होंने बचपन में ही अपने दादा पृथ्वीराज कपूर निर्देशित नाटक पठान में अभिनय किया था। जिसने फिल्मों के सेट पर उसकी शूटिंग के दौरान चलना सीखा हो, जिसके लिए सेट पर लगाए गए सामान खिलौने की तरह हों, जो अपने बचपन में फिल्मों के सेट को ही वास्तविक दुनिया समझता हो उसके लिए फिल्मों में काम करना स्वाभाविक है। ऋषि कपूर का बचपन भी फिल्म श्री 420 और मुगल ए आजम के सेट पर अपने भाई बहनों के साथ खेलते हुए बीता था। मुगल ए आजम के सेट पर वो तलवार से खेलते थे। उन्होंने कहा भी था कि सेट पर तलवारबाजी करना उन्हें बचपन में बहुत पसंद था। फिल्मों और फिल्मकारों के बीच गुजर रहे बचपन से जब किशोरावस्था में पहुंचते हैं तो उनके पिता खुद उनको स्कूल से भगाकर फिल्म में काम करने ले जाने लगे। ये भी एक दिलचस्प तथ्य है कि राज कपूर साहब अपने बेटे को स्कूल से भगाकर फिल्म मेरा नाम जोकर में काम करवाने ले जाते थे। जाहिर सी बात है जो अभिनय उनके रगों में दौड़ था वो इस तरह का वातावरण और सहयोग पाकर निखरने लगा था। तब किसे पता था कि एक ऐसा नायक गढ़ा जा रहा है जो हिंदी सिनेमा के इतिहास में पैंतालीस साल से अधिक समय तक दर्शकों के दिलों पर राज करेगा। अगर हम इसको थोड़ी सूक्षमता के साथ देखें तो पाते हैं कि 1973 में बॉबी के रिलीज होने से लेकर 1998 की फिल्म कारोबार तक यानि पच्चीस साल तक ऋषि कपूर एक रोमांटिक हीरो के तौर पर दर्शकों के दिलों पर राज करते रहे। उसके बाद उन्होंने अपने लिए अलग तरह की भूमिकाएं चुनीं।   
साल 1973 को हिंदी फिल्मों के इतिहास में इस वजह से याद किया जाएगा कि उसने एक साथ हिंदी फिल्मों को एंग्री यंगमैन भी दिया और एक ऐसा हीरो भी दिया जिसकी मासूम रोमांटिक छवि के मोहपाश में दर्शक पचीस साल तक बंधे रहे। 1973 में जब बॉबी फिल्म रिलीज हुई थी तो ऋषि कपूर एक रोमांटिक हीरो के तौर पर स्थापित हो गए थे, इस फिल्म में उनका किरदार युवाओं में मस्ती और मोहब्बत की दीवानगी का प्रतीक बन गया था। इस फिल्म में ऋषि कपूर और डिंपल के चरित्र को इस तरह से गढ़ा गया था कि वो उस दौर में युवाओं की बेचैनी और कुछ कर गुजरने की तमन्ना को प्रतिबिंबित कर सके। किशोरावस्था से जवानी की दहलीज पर कदम रख रहे युवा प्रेमी जोड़े के कास्टूयम को भी इस तरह से डिजायन किया गया था ताकि ऋषि और डिंपल युवा मन आकांक्षाओं को चित्रित कर सकें। जिस तरह से डिंपल के बालों में स्कार्फ और उसके ब्लाउज को कमर के ऊपर बांधकर ड्रेस बनाया गया था या फिर ऋषि कपूर को बड़े बड़े चश्मे पहनाए गए थे उसमें एक स्टाइल स्टेटमेंट था।इस फिल्म के बाद पोल्का डॉट्स के कपड़े खूब लोकप्रिय हुए थे। फिल्म में इन दोनों के चरित्र को टीनएज प्यार और उस प्यार को पाने के लिए विद्रोही स्वभाव का प्रतिनिधि बनाया गया था। ऋषि कपूर और डिंपल की ये सुपर हिट इस फिल्म के बाद जुदा हो गई क्योंकि फिल्म के हिट होते ही डिंपल और राजेश खन्ना ने शादी कर ली थी। ये दोनों फिर करीब बारह साल बाद एक साथ फिल्म सागर में आए। बारह साल बाद भी इस जोड़ी ने सिल्वर स्क्रीन पर प्रेम का वही उत्स पैदा किया और दर्शकों ने दिल खोलकर इस फिल्म को पसंद किया।
ऋषि कपूर अपनी फिल्म बॉबी की सफलता के बाद सातवें आसमान पर थे। 1974 में उनकी और नीतू सिंह की फिल्म आई जहरीला इंसान जो फ्लॉप हो गई लेकिन इस जोड़ी के काम को सराहना मिली। उसके बाद इन दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया। पर बॉबी जैसी सफलता नहीं मिल पाई। कर्ज को जब अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो वो गहरे अवसाद में चले गए। ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा खुल्लम खुल्ला में माना है कि उनको कभी भी संघर्ष करने की जरूरत नहीं पड़ी। बहुत कम उम्र में ही बॉबी फिल्म मिल गई और वो बेहद सफल रही। जब असफलताओं से उनका सामना हुआ तो वो लगभग टूट से गए। वो अपनी असफलता के लिए नीतू सिंह को जिम्मेदार मानने लगे थे इस वजह से पति-पत्नी के रिश्तों में तनाव गया था। यह उस वक्त हो रहा था जब नीतू सिंह गर्भवती थी। तब इस तनाव को दूर करने का बीड़ा राज कपूर ने उठाया और ऋषि को बैठाकर गीता का उपदेश देना शुरू किया। राज कपूर के प्रयासों से ऋषि इस अवसाद से ऊबर पाए। अवसाद के उबरने के बाद ऋषि कपूर ने नसीब और प्रेम रोग जैसी फिल्में की जो बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट रहीं। इसके पहले जब वो अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना के साथ फिल्म अमर अकबर एंथोनी में काम कर रहे थे तो उनके सामने ये चुनौती थी कि दो इतने बड़े अभिनेताओं के सामने अपनी उपस्थिति को बचा भी पाएंगें या नहीं। लेकिन अकबर के रूप में जिस तरह से उन्होंने एक टपोरी चरित्र को निभाया उसने अमिताभ और विनोद खन्ना के समांतर खुद को खड़ा कर लिया।
फिर आया 1989 का साल जब ऋषि कपूर और यश चोपड़ा दोनों ने एक बेहद शानदार और सुपरहिट फिल्म से धमाकेदार मौजूदगी दर्ज कराई। धमाकेदार इसलिए कि सालभर पहले ही यश चोपड़ा की फिल्म विजय में ऋषि ने काम किया था जो फ्लॉप हो गई थी। चांदनी का रोल भी पहले अनिल कपूर को ऑफर हुआ था लेकिन बाद में ऋषि को मिला। ऋषि भी इस रोल को लेकर हिचक रहे थे लेकिन यश चोपड़ा के आश्वसान के बाद मान गए थे। इस फिल्म से ऋषि कपूर की लवर बॉय की इमेज पुख्ता हुई। आज भी दर्शकों को वो दृश्य याद है जब ऋषि कपूर हेलीकॉप्टर से अपनी प्रेमिका श्रीदेवी पर गुलाब की पंखुड़ियां उड़ाता है। लोगों को प्रेम का पाठ पढ़ानेवाला, अपने प्रेम को हासिल करने के लिए विद्रोह करनेवाला नायक अब नहीं रहा। उसके जाने से हिंदी फिल्मों का ये सृजनात्मक कोना सूना हो गया।

1 comment:

veethika said...

बहुत मन से प्रेम के साथ प्यारा लेख। रोमांटिक छवि को श्रद्धांजलि देने का तरीका पसंद आया। थोड़े में सुंदर तरीके से समेटा है आपने ऋषि कपूर के निजी और फ़िल्मी जीवन को।