Translate

Friday, September 3, 2021

गुलामी के चिन्हों से मुक्ति का अवसर


आज संपूर्ण राष्ट्र अपनी स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है। हम अपने उन पुरखों को याद कर रहे हैं जिन्होंने देश की स्वाधीनता के लिए बलिदान किया। हम अपने उन क्रांतिवारों का भी स्मरण कर रहे हैं जिन्होंने अपने देश को गुलामी बेड़ियों से मुक्त करवाने के लिए अपनी जान की बाजी तक लगा दी। आज स्वाधीन राष्ट्र के सामने अवसर है कि वो अपने उन वीर सपूतों को ना केवल याद करे बल्कि आनेवाली पीढ़ियों के सामने भी उनकी वीरता की कहानी को बताएं। ये सभी भारतीयों का सामूहिक दायित्व है। इन बलिदानियों का स्मरण करने में किसी तरह की दलगत राजनीति या विचाराधारा आड़े नहीं आनी चाहिए। लंबे समय की गुलामी ने जनमानस को भी गहरे तक प्रभावित किया जिससे मुक्त होने में भी समय लग रहा है। अब भी देश के कई शहरों या इलाकों में आततायियों और आक्रमणकारियों के नाम से सड़कें और इमारतें मौजूद हैं। राजधानी दिल्ली में भी कई सड़कें अब भी विदेशी आक्रांताओं के नाम पर हैं। उन आक्रांताओं के नाम पर जिन्होंने भारत पर न केवल हमला किया बल्कि हमारी संस्कृति और सनातन परंपरा को भी नष्ट करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी। आज नई दिल्ली इलाके में बाबर के नाम पर सड़क है, बाबर रोड। ये वही बाबर है जिसने भारत पर न केवल हमला किया, बल्कि हजारों लोगों की हत्या कर अपना सल्तनत स्थापित किया। अपने शासन के दौरान भारत की जनता पर बेइंतहां जुल्म किए।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अपने एक व्याख्यान में शक्ति के सिद्धांत की चर्चा करते हुए बताया था कि दिल्ली में बाबर रोड है लेकिन राणा सांगा के नाम पर रोड नहीं है। दिल्ली में न केवल बाबर रोड है बल्कि कई ऐसी सड़कें हैं जो अंग्रेजों और मुगल शासकों के नाम पर हैं। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के वर्ष में राष्ट्र को इसपर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि आक्रांताओं के नाम पर सड़कें क्यों रहनी चाहिए। सड़कों या इमारतों का नाम किसी व्यक्ति के नाम पर इस वजह से रखा जाता है कि हम उनको सम्मान देना चाहते हैं, उनके योगदान को याद रखना चाहते हैं। प्रश्न ये उठता है कि क्या बाबर को उनके जुल्मों की वजह से या भारत पर हमला करने की वजह से याद रखा जाना चाहिए। क्यों नहीं इन सड़कों और इमारतों के नाम बदलकर स्वाधीनता संग्राम के शहीदों के नाम पर कर दिए जाने चाहिए। कई बार सड़कों के नाम बदलने को लेकर राजनीति होने लगती है। अलग अलग राजनीतिक दलों और विचारधारा से जुड़े लोग इसका विरोध करते हैं। पर जब सवाल एक संप्रभु राष्ट्र के स्वाभिमान का हो तब राजनीति से किनारा कर एक स्वर में बात होनी चाहिए।

No comments: