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Friday, September 10, 2021

सांस्कृतिक हमलावरों को सम्मान क्यों


नई दिल्ली में एक सड़क है जिसका नाम है हुमांयू रोड। ये सड़क करीब डेढ किलोमीटर लंबी है और दिल्ली के पाश इलाकों को जोड़ती है। इंडिया गेट से सुजान सिंह पार्क या खान मार्केट जाना हो तो हुमांयू रोड मिलता है। हिन्दुस्तान में मगुल सल्तनत की स्थापना करनेवाले बाबर के बेटे हैं हुमांयू। मध्यकाल पर लिखनेवाले इतिहासकारों ने हुमांयू पर बहुत उदारता के साथ लिखा है। 1970 के बाद के वर्षों में रूस के कई प्रकाशन गृहों ने इस तरह की पुस्तकें प्रकाशित की जिनमें मुगल बादशाहों का महिमामंडन किया गया था। उनको बहुत कम दाम पर बेचा भी जाता था ताकि अधिक से अधिक लोग खरीद कर पढ़ सकें। इनमें प्रगति प्रकाशन और रादुगा प्रकाशन प्रमुख थे। मुगलकाल के इतिहास पर लिखते हुए भारतीय इतिहासकारों ने बाबरनामा, हुमांयूनामा और अकबरनामा को आधार बनाकर लिखा। ये सब आत्मकथाएं या जीवनियां थीं। इनका स्त्रोत के तौर पर उपयोग किया जा सकता था लेकिन इसको इतिहास लेखन का आधार बनाने से इतिहास दोषपूर्ण हो गया। कालखंड विशेष का समग्र मूल्यांकन नहीं हो पाया। परिणाम यह हुआ कि हमारे देश पर आक्रमण करनेवाले, हजारों लोगों का कत्ल कर अपने सल्तनत की स्थापना करनेवालों, देश की सांस्कृतिक परंपराओं को नष्ट करनेवालों के प्रति उदारता का भाव पैदा होने लगा। इसी उदारता की वजह से मुगल आक्रांता हुमांयू के नाम से सड़क और मुहल्ला बना दिया गया। 

अपने पिता की मौत के बाद जब हुमांयू दिल्ली की गद्दी पर बैठा था तो कई युद्धों के बावजूद सल्तनत नहीं बचा सका था। शेरशाह सूरी से हारने के बाद वो फारस भाग गया था। कई वर्षों बाद फारस के सैनिकों के साथ उसने फिर से दिल्ली सल्तनत पर कब्जा किया। जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर ने भले ही हिन्दुस्तान में मुगल सल्तनत की स्थापना की लेकिन उसके बेटे हुमांयू ने सांस्कृतिक सल्तनत का बीजोरोपण किया। जब हुमांयू दूसरी बार दिल्ली की गद्दी पर बैठा तब उसने भारत में फारसी कलाओं को बढ़ाना आरंभ किया। उसने फारसी वास्तुकला, चित्रकला, स्थापत्य कला आदि को प्राथमिकता देना आरंभ किया। इसके लिए फारस के वास्तुविद, चित्रकार आदि हिन्दुस्तान बुलाए गए। ये हुमांयू का हिन्दुस्तान पर सांस्कृतिक हमला था। समय के साथ मुगल सल्तनत का भले ही अंत हो गया लेकिन जिस सांस्कृतिक सल्तनत की स्थापना हुमांयू ने की थी वो अब भी हमारे देश में चल रहा है। आज भी मुगल कुजीन से लेकर मुगल स्थापत्य कला और मुगल चित्रकला जीवित है। रहे, पर उस आक्रांता के नाम पर सड़क का नाम क्यों है जिसने भारत की संस्कृति को बदलने का काम किया। 


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