भारतीय जनता पार्टी ने पहले चरण के चुनाव के साथ अपना घोषणा पत्र जारी किया । इस
मौके पर पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने एक बेहद अहम हात कही जो पर्याप्त रूप से
रेखांकित नहीं हो पाई । राजनाथ सिंह ने कहा कि जब भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आएगी
तो अपने आपको इस चुनावी घोषाणा पत्र तक सीमित नहीं रखेगी, बल्कि इससे इतर जाकर भी विकास
के लिए जरूरी सभी कदम उठाए जाएंगे । अब पार्टी अध्यक्ष के इस बयान के निहितार्थ को
समझने की आवश्यकता है । राजनाथ सिंह के इस बयान से यह ध्वनित होता है कि भारतीय जनता
पार्टी का यह घोषणा पत्र उसका अंतिम नीतिगत दस्तावेज नहीं है, होना भी नहीं चाहिए ।
किसी भी पार्टी को यह हक है कि वो समय और जनता की आकांक्षा और जरूरतों के हिसाब से
अपनी नीतियों में बदलाव और संशोधन करे । लोकसभा चुनाव के पहले चरण में जब वोटिंग शुरू
हो चुकी थी उस दिन पार्टी ने अपना घोषणा-पत्र जारी किया । इससे भी इस बात के संकेत
मिलते हैं कि भारतीय जनता पार्टी सिर्फ घोषणा पत्र की औपचारिकता मात्र निभा रही थी
। पहले तो यह खबर आई थी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व का एक तबका चुनावी घोषणा पत्र
की रस्म अदायगी के खिलाफ है । उनके तर्क यह थे कि घोषणा पत्र से कुछ हासिल नहीं होता
है, जनता उसे पढ़ती नहीं है लिहाजा उसकी आवश्कता नहीं है । इस हां-ना में काफी देर
हो गई । जब कांग्रेस ने चुनावी घोषणा-पत्र में हो रही देरी को चुनावी मुद्दा बनाकर
भारतीय जनता पार्टी को घेरने की कोशिश शुरू की तो फिर घोषणा पत्र जारी करने के काम
में तेजी आई और पहले चरण के मतदान शुरू होने के कई घंटे बाद इसको जारी किया जा सका
।
माना यह जा रहा था कि इस बार भारतीय जनता पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में उनके
प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की छाप दिखाई देगी । आर्थिक नीति से लेकर
विदेश नीति तक नरेन्द्र मोदी की सोच परिलक्षित होगी लेकिन इस चुनावी दस्तावेज में ऐसा
कुछ भी नहीं दिखाई दिया । मोदीफेस्टो की अपेक्षा कर रहे लोगों को निराशा हाथ लगी ।
जब चुनावी घोषणा पत्र जारी होने में देरी होने लगी तभी से इस तरह की आशंका के संकेत
मिलने शुरू हो गए थे कि नरेन्द्र मोदी इस चुनावी दस्तावेज को लेकर बहुत उत्साहित नहीं
हैं । फिर ये खबर आई कि प्रस्तावित चुनावी घोषणा पत्र के कई बिन्दुओं पर नरेन्द्र मोदी
को एतराज है । घोषणा पत्र ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी और मोदी इस
दस्तावेज पर एकमत नहीं हो पा रहे थे और उसमें बदलाव किया जा रहा है । घोषणा पत्र के
जारी होने में हो रही देरी के बारे में जब भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से सवाल पूछा
गया तो उनका स्पष्ट जवाब था कि नरेन्द्र मोदी खुद ही भारतीय जनता पार्टी के घोषणा पत्र
हैं । भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने भले ही व्यंग्य या फिर हल्के फुल्के अंदाज में
ये बात कही हो लेकिन हकीकत यही है । इस बार के लोकसभा चुनाव में मोदी भारतीय जनता पार्टी
के चलते फिरते घोषणा पत्र ही हैं । उनकी विकास पुरुष की छवि और गुजरात मॉडल को इतना
ज्यादा प्रचारित किया गया था कि किसी और दस्तावेज की जरूरत थी भी नहीं । मोदी और उनके
रणनीतिकारों ने यही रणनीति भी बनाई थी । जिस तरह से अबकी बार, मोदी सरकार के नारे को
मजबूती से आगे बढ़ाया गया उससे तो यही लगता है कि नीतियों ने ज्यादा इस बार पार्टी
व्यक्ति के आधार पर वोट मांग रही हैं । अबकी बार मोदी सरकार पर ही व्यक्ति केंद्रित
प्रचार नहीं रुकता है । भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र
मोदी खुद भी कहते हैं कि इस बार का वोट उनके लिए है । उन्होंने देश की जनता को भरोसा
दिया है कि उनका एक एक वोट मोदी के लिए है । मोदी कहते हैं – आपका दिया हर वोट मेरे लिए है वो सीधे मुझ तक पहुंचेगा । ऐसे में नीतियों की बात
करना बेमानी है । मोदी के रणनीतिकारों का मानना है कि नीतियों और सिद्धांतों पर ज्यादा
जोर देने से चुनाव में मोदी से ध्यान हट या बंट सकता है । इस वजह से हर कार्यक्रम,
प्रचार सामग्री और भाषणों के केंद्र में सिर्फ और सिर्फ मोदीको रखा गया है । सबका साथ
सबका विकास का नारा घोषणा पत्र के पन्नों पर ही रह गया । सात अप्रैल को भारतीय जनता
पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र दिल्ली में समारोहपूर्वक जारी होता है लेकिन चंद घंटे
बाद घोषणा पत्र में उल्लिखित वादों और इरादों की चर्चा नेपथ्य में चली जाती है । ऐसा
प्रयासपूर्वक किया गया ताकि मतदाताओं का ध्यान मोदी, उनके व्यक्तित्व और गुजरात में
किए गए उनके कामों से नहीं हट सके । जब भी व्यक्ति विशेष राजनीति के केंद्र में आता
है और विचारधारा और संगठन पृष्ठभूमि में चले जाते हैं तो इस तरह के वाकए देखने को मिलते
हैं । यहां सिर्फ एक ही उदाहरण काफी होगा । उन्नीस सौ इकहत्तर में पाकिस्तान को हराकर
बांग्लादेश का निर्माण करवाने के बाद इंदिरा गांधी अपने लोकप्रियता के शिखर पर थी ।
उसके बाद की सारी नीतियां और गतिविधियां इंदिरा गांधी के इर्द गिर्द घूम रही थी तभी
तो उन्नीस सौ चौहत्तर में कांग्रेस के अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने कहा था- इंदिरा इज इंडिया,
इंडिया इज इंदिरा । अब भी कुछ कुछ ऐसा ही हो रहा है । जिस तरह से इंदिरा गांधी सत्तर
के दशक में कांग्रेस पार्टी के हर फैसले की धुरी बन गई थी उसी तरह से इस वक्त भारतीय
जनता पार्टी में हर फैसला नरेन्द्र मोदी को केंद्र और ध्यान में रखकर लिया जा रहा है
। कई राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मजबूत सरकार के लिए यह आवश्यक है । उनके तर्कों
का सम्मान करते हुए सिर्फ इतना निवेदन करना है कि राजनीति में संगठन की अपनी एक अहमियत
होती है और लोकतंत्र में सामूहिक राय का महत्व होता है उसको नजरअंदाज नहीं किया जाना
चाहिए ।
अब अगर भारतीय जनता पार्टी
के घोषणा पत्र पर एक नजर डालें तो यह बात और साफ हो जाती है कि ये रस्म अदायगी का दस्तावेज
है । इस दस्तावेज में कोई भी क्रांतिकारी बदलाव की रूपरेखा या उसका रोडमैप दिखाई नहीं
देता है । नए शहर, हर राज्य में एम्स जैसा अस्पताल, गरीबों को पक्का मकान, भ्रष्टाचार
उन्मूलन के लिए टास्क फोर्स आदि जैसे घिसे पिटे वादे इसमें शामिल किए गए हैं । विदेशों
में जमा काला धन को वापस लाने के लिए टास्क फोर्स और पार्टी की प्रतिबद्धता को तो घोषणा
पत्र में स्थान मिला है लेकिन देश में काला धन को रोकने के लिए क्या किया जाना चाहिए
इसके बारे में बीजेपी का घोषणा पत्र खामोश है । इससे यह लगता है कि इस दस्तावेज को
बनाते समय काला धन की मूल समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया । काला धन के लिए जिम्मेदार
टैक्स नीति के रिफॉर्म पर भी घोषणा पत्र में कोई चर्चा नहीं है । सालों से भारतीय जनता
पार्टी के घोषाणा पत्र का अनिवार्य हिस्सा रहे राम जन्मभूमि निर्माण, अनुच्छेद सीन
सौ सत्तर को खत्म करना और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दे इस बार भी हैं । एक बदलाव
सिर्फ इतना है कि दो हजार नौ के चुनावी घोषणा पत्र में रामजन्म भूमि को जनता की आकांक्षा
बताते हुए उसके निर्माण पर जोर दिया गया था और इस बार उसको कानून और संविधान के दायरे
में बनाने के प्रयास की बात की गई है । फेडरल सिस्टम और राष्ट्रीय कृषि बाजार जैसे
एक दो बेहतर बातें इसमें हैं लेकिन उसका वादा करते वक्त यह नहीं बताया जा सका है कि
उसको लागू कैसे किया जाएगा । बेहतर तो यह होता कि इस घोषणा पत्र में नरेन्द्र मोदी
की नीतियों और सोच विस्तार से परिलक्षित होती और वक्त रहते इसको देश के सामने रख दिया
जाता । उसके बाद घोषणा पत्र जारी करते वक्त नरेन्द्र मोदी अपने विजन को विस्तार से
सामने रखते और सवाल जवाब से पत्रकारों और देश को संतुष्ट कर अपने आलोचकों का मुंह बंद
करते । गुजरात मॉडल को चाहे जितना प्रचारित किया जाए लेकिन पूरे देश को समग्रता में
यह जानने का हक तो है कि नरेन्द्र मोदी की सोच और नीतियां क्या होंगी । घोषणा पत्र
इसके लिए एक बेहतर मौका था ।
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