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Wednesday, May 14, 2014

लोकतंत्र के माथे का कलंक

केंद्र में भले ही नई सरकार बनने जा रही है, लेकिन सोलहवें लोकसभा के लिए तकरीबन दो महीने तक चले प्रचार के दौरान लोकतंत्र के मर्यादा की चूलें हिल गई । एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप और सियासी हमले ने सारी सीमाएं तो़ड़ दीं । नेताओं के बयानों ने समाज और कानून की परंपराओं की धज्जियां उड़ा दी । चुनावी रण में पार्टियां अपनी बुनियादी मुद्दों से भटककर व्यक्तिगत मुद्दों पर केंद्रित हो गई । जाति, धर्म, संप्रदाय आदि के आधार पर जमकर बयानबाजी हुई । देश ने जवाहरलाल नेहरू के उस प्रसिद्ध कथन को भुला दिया कि - हम चाहे किसी भी धर्म के हों सभी भारत माता की संतान हैं और हमारे अधिकार समान हैं । हम किसी भी तरह की सांप्रदायिकता और संकीर्ण सोच को बढ़ावा नहीं दे सकते हैं । कोई भी देश तबतक महान नहीं हो सकता जबतक कि वहां की जनता अपने कार्य और सोच में संकीर्ण हो ।  ये संकीर्ण सोच हर पार्टी के नेताओं के बयान में दिखा । गिरिराज सिंह जैसे नेता मोदी विरोधियों को पाकिस्तान जाने को कहते हैं तो कांग्रेस का एक प्रत्याशी मोदी की बोटी-बोटी काटने की बात कहता है  संवैधानिक पद पर बैठी राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे तक कह देती हैं कि बोटी किसकी कटेगी ये चुनाव नतीजे के बाद पता चलेगा । अब अगर आप गौर करें तो ये तीनों नेता इस तरह के हैं जिनके बयान बहुधा आते नहीं हैं । चुनाव के वक्त धर्म और संप्रदाय आधारित इन बयानों के अपने निहितार्थ हैं । ये बयान सोच-समझकर दिए गए हैं । चुनावों पर गहरी नजर रखनेवाले राजनीति विश्लेषकों का मानना है कि जब पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ध्रुवीकरण की राजनीति की ओर बढ़ने का संकेत करता है तो छोटे नेता बैकाबू हो जाते हैं । मोदी के विश्वस्त सिपहसालार अमित शाह शामली और बिजनौर में कहते हैं - अमित शाह ने कहा था कि आदमी भूखा और प्यासा तो रह सकता है, लेकिन अगर अपमानित हो जाता है तो चैन से नहीं रह सकता है और अपमान का बदला तो लेना पड़ेगा । संकेतों में मुजफ्फरनदर दंगे साफ तौर पर थे । अमित शाह के इस बयान से सूत्र पकड़ते हुए गिरिराज जैसे नेता राजनीतिक लाभ के लिए उछलने लगे । यहां यह बात गौर करने लायक है कि गिरिराज हों, मसूद हों, वसुंधरा हों या फिर अमित शाह ये बयानवीर के तौर पर नहीं जाने जाते हैं । यह साफ है कि ये नेता चुनावी फायदे के लिए समाज को बांटनेवाला बयान देते हैं ।
इन बयानों में ध्रुवीकरण की संभावना देख उत्तर प्रदेश के ताकतवर मंत्री आजम खान भी ने तो सारी हदें पार कर दी । उन्होंने अमित शाह को गुंडा नंबर एक और कातिल कह डाला । फिर कहा कि करगिल में मुसलमानों ने विजय दिलवाई । यह भारतीय राजनीति का इतना निचला स्तर है कि इसकी जितनी भर्त्सना  की जाए वो कम है । फौज का जवान वर्दी पहनने के बाद ना तो हिंदू होता है और ना मुसलमान वो सिर्फ हिन्दुस्तनी होता है । आजम खान शुरू से बयानवीर और विवादों से घिरे रहे हैं और सियासी नफे के लिए पूर्व में भी इस तरह के बयान देते रहे हैं । आजम क्या मुलायम सिंह यादव ने बलात्कार पर बोलते हुए कहा कि लड़कों से कभी कभार गलतियां हो जाती हैं । मुलायम सिंह यादव जैसे तपे तपाए नेता सोचकर ही इस तरह की बात करते हैं । इसके पीछे भी वोट लेने की मंशा थी क्योंकि संदर्भ मुंबई के बलात्कारियों को फांसी का था और सभी मुजरिम एक समुदाय विशेष के हैं । लोहिया के चेले मुलायम महिलाओं को लेकर बेहद ही दकियानूसी और परंपंरावादी सोच के हैं । संसद में महिलाओं को आरक्षण देने के मुद्दे पर मुलायम ने कहा था कि अगर संसद में महिलाओं को आरक्षण मिला और वो संसद में आईं तो वहां जमकर सीटियां बजेंगी ।  अब सवाल यही कि देश का वोटर महिलाओं को लेकर असंवेदनशील मुलायम जैसे नेताओं को अपना रहनुमा चुन सकता है ।
धर्म जाति और संप्रदाय के अलावा इस चुनाव में विरोधियों से बड़ी लकीर खींचने के बजाए नेताओं ने एक दूसरे को नीचा दिखानेवाला बयान दिया । नरेन्द्र मोदी ने जब चुनावी हलफनामे में पत्नी का नाम भरा तो कांग्रेस के नेताओं की बांछे खिल गई । दिग्विजय सिंह से लेकर शोभा ओझा तक ने तो कई दिनों तक इस मुद्दे को हवा दी और मोदी के व्यक्तिगत जीवन पर सार्वजनिक टिप्पणियां करती रही । गुजरात में महिला जासूसी कांड को राहुल ने चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की । उन्होंने अपने हर चुनाव में मोदी पर महिलाओं की जासूसी करवाने का आरोप लगाया । बगैर नाम लिए तो प्रियंका गांधी ने भी चुटकी ली थी और कहा था कि महिला सशक्तीकरण की बात करते हो लेकिन चुपके चुपके हमारे फोन सुनते हो । कांग्रेस के नेताओं के इन बयानों के पीछे की सोच यह थी कि देश का ध्यान मूल मुद्दों और यूपीए सरकार की नाकामियों से भटकाया जाए । सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि अपने पूरे चुनावी कैंपेन के दौरान नरेन्द्र मोदी मां-बेटे की सरकार कहकर सोनिया और राहुल का मजाक उडा़ते रहे । राहुल गांधी को शहजादे कहकर तो लंबे समय से संवोधित कर ही रहे थे । गुजरात महिला जासूसी कांड के बाद जब कांग्रेसियों ने उन्हें साहबजादे कहना शुरू किया तो मोदी ने राहुल गांधी को शहजादे कहना बंद किया । बीजेपी ने जब सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को लेकर एक फिल्म दामादश्री जारी की तो तिलमिलाई प्रियंका गांधी ने बीजेपी नेताओं को बौखलाया हुआ चूहा करार दे दिया । लालू यादव सरीखे नेता तो मोदी को कातिल कहते ही रहते हैं । अपने चुनाव प्रचार के दौरान जब नरेन्द्र मोदी ने ममता बनर्जी की पेंटिंग्स की बिक्री से मिले करोड़ों रुपयों और सारधा चिट फंड स्कैम पर सवाल खड़े किए तो ममता बौखला गईं । ममता बनर्जी ने मोदी को गधा और हरिदास पाल तक कह डाला । बांग्ला में हरिदास पाल मूर्ख को कहते हैं । दो हजार नौ के चुनाव में भी इस तरह की बयानबाजियां हुई थी । बीजेपी के नेता लालकृषण आडवाणी ने उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को शिखंडी तक कह डाला था तब उस बयान के पीछे की सोच अपनी लौहपुरुष की छवि को मजबूत करना था ।
अब सवाल वही कि क्या मर्यादा में रहकर विरोधियों के आरोपों का जवाब नहीं दिया जा सकता है । नई सरकार बनने के बाद भी हमारी सरकार और हमारे देश के लिए ये सवाल मौजूं हैं । अगर हमें अपने लोकतंत्र को मजबूत करना है तो हमें इन सवालों से टकराना ही होगा, इनपर लगाम लगाने के लिए कदम उठाने ही होंगे । इसका कोई विकल्प नहीं है । इस तरह के बयानों को चुनावी गर्मी में दिए बयान कहकर हल्के में नहीं लिया जा सकता है । इनपर अगर लगाम नहीं लगाया गया तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं क्योंकि वाणी की कटुता बाद में शत्रुता में बदल जाती है और जब सियासी दलों में शत्रुता पनप जाए तो वो लोकतंत्र के लिए खतरनाक संदेश है ।

6 comments:

शैलेश पटेल ( बनारसी ) सूरत ,गुजरात said...

आपको बेनी या आजम का फोटो नही मिला ?

शैलेश पटेल ( बनारसी ) सूरत ,गुजरात said...

आपको बेनी या आजम का फोटो नही मिला ?

syedparwez said...

विभिन्न धर्मों को मानने में (हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई, बौध, जैन, पारसी) आदि के लोग भारत में रहते हैं. मेरा मानना है कि धर्म एक रास्ता है, ईश्वर तक पहुँचने का. धर्म को बंधा नहीं जा सकता. इसी प्रकार विभिन्न धर्मो को मानने वाले लोग विभिन्न देशों में रहते हैं, वह सोचते है कि इस धर्म को मानने/अपने से उन्हें ईश्वर की प्राप्ति होगी.
कुछ शासक और तानाशाही ऐसे भी रहे जिन्होंने अपने विशेष रूचि तानाशाही के लिए अपना धर्मं अपनी भाषा के लिए कत्लेआम किया. ऐसे शासक विभिन्न धर्मों में रहे. गौरतलब है की दुनिया में लोग भगवन और शैतान दोनो को पूजते हैं, इस प्रकार कुछ ताकते तानाशाही विचार धारा को अपना आधार मानती हैं.
धर्मों के लोगों को पता है -देश की प्रतिष्ठा, अपने देश का सम्मान, देश की रक्षा, देश के आगे कोई भी बड़ा नहीं है. जब देश पर संकट है-वह सभी धर्मों का संकट है. देश की रक्षा सर्वोपरि है- यह बात सभी धर्मों को लोगों को पता है. यह बात शायद तानाशाही विचार धारा को पता नहीं.
जरुरत है ऐसे लोगों की विचारधार अपनाई जाए जिन्होंने मानवता के लिए काम किया. जिन्होंने इन्सान होने का सबूत दिया. भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश की जरुरत है -ऐसे नेताओं का बहिष्कार करना जो धर्म के नाम पर देश तौड रहे है.

syedparwez said...

विभिन्न धर्मों को मानने में (हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई, बौध, जैन, पारसी) आदि के लोग भारत में रहते हैं. मेरा मानना है कि धर्म एक रास्ता है, ईश्वर तक पहुँचने का. धर्म को बंधा नहीं जा सकता. इसी प्रकार विभिन्न धर्मो को मानने वाले लोग विभिन्न देशों में रहते हैं, वह सोचते है कि इस धर्म को मानने/अपने से उन्हें ईश्वर की प्राप्ति होगी.
कुछ शासक और तानाशाही ऐसे भी रहे जिन्होंने अपने विशेष रूचि तानाशाही के लिए अपना धर्मं अपनी भाषा के लिए कत्लेआम किया. ऐसे शासक विभिन्न धर्मों में रहे. गौरतलब है की दुनिया में लोग भगवन और शैतान दोनो को पूजते हैं, इस प्रकार कुछ ताकते तानाशाही विचार धारा को अपना आधार मानती हैं.
धर्मों के लोगों को पता है -देश की प्रतिष्ठा, अपने देश का सम्मान, देश की रक्षा, देश के आगे कोई भी बड़ा नहीं है. जब देश पर संकट है-वह सभी धर्मों का संकट है. देश की रक्षा सर्वोपरि है- यह बात सभी धर्मों को लोगों को पता है. यह बात शायद तानाशाही विचार धारा को पता नहीं.
जरुरत है ऐसे लोगों की विचारधार अपनाई जाए जिन्होंने मानवता के लिए काम किया. जिन्होंने इन्सान होने का सबूत दिया. भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश की जरुरत है -ऐसे नेताओं का बहिष्कार करना जो धर्म के नाम पर देश तौड रहे है.

syedparwez said...

विभिन्न धर्मों को मानने में (हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई, बौध, जैन, पारसी) आदि के लोग भारत में रहते हैं. मेरा मानना है कि धर्म एक रास्ता है, ईश्वर तक पहुँचने का. धर्म को बंधा नहीं जा सकता. इसी प्रकार विभिन्न धर्मो को मानने वाले लोग विभिन्न देशों में रहते हैं, वह सोचते है कि इस धर्म को मानने/अपने से उन्हें ईश्वर की प्राप्ति होगी.
कुछ शासक और तानाशाही ऐसे भी रहे जिन्होंने अपने विशेष रूचि तानाशाही के लिए अपना धर्मं अपनी भाषा के लिए कत्लेआम किया. ऐसे शासक विभिन्न धर्मों में रहे. गौरतलब है की दुनिया में लोग भगवन और शैतान दोनो को पूजते हैं, इस प्रकार कुछ ताकते तानाशाही विचार धारा को अपना आधार मानती हैं.
धर्मों के लोगों को पता है -देश की प्रतिष्ठा, अपने देश का सम्मान, देश की रक्षा, देश के आगे कोई भी बड़ा नहीं है. जब देश पर संकट है-वह सभी धर्मों का संकट है. देश की रक्षा सर्वोपरि है- यह बात सभी धर्मों को लोगों को पता है. यह बात शायद तानाशाही विचार धारा को पता नहीं.
जरुरत है ऐसे लोगों की विचारधार अपनाई जाए जिन्होंने मानवता के लिए काम किया. जिन्होंने इन्सान होने का सबूत दिया. भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश की जरुरत है -ऐसे नेताओं का बहिष्कार करना जो धर्म के नाम पर देश तौड रहे है.

syedparwez said...

विभिन्न धर्मों को मानने में (हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई, बौध, जैन, पारसी) आदि के लोग भारत में रहते हैं. मेरा मानना है कि धर्म एक रास्ता है, ईश्वर तक पहुँचने का. धर्म को बंधा नहीं जा सकता. इसी प्रकार विभिन्न धर्मो को मानने वाले लोग विभिन्न देशों में रहते हैं, वह सोचते है कि इस धर्म को मानने/अपने से उन्हें ईश्वर की प्राप्ति होगी.
कुछ शासक और तानाशाही ऐसे भी रहे जिन्होंने अपने विशेष रूचि तानाशाही के लिए अपना धर्मं अपनी भाषा के लिए कत्लेआम किया. ऐसे शासक विभिन्न धर्मों में रहे. गौरतलब है की दुनिया में लोग भगवन और शैतान दोनो को पूजते हैं, इस प्रकार कुछ ताकते तानाशाही विचार धारा को अपना आधार मानती हैं.
धर्मों के लोगों को पता है -देश की प्रतिष्ठा, अपने देश का सम्मान, देश की रक्षा, देश के आगे कोई भी बड़ा नहीं है. जब देश पर संकट है-वह सभी धर्मों का संकट है. देश की रक्षा सर्वोपरि है- यह बात सभी धर्मों को लोगों को पता है. यह बात शायद तानाशाही विचार धारा को पता नहीं.
जरुरत है ऐसे लोगों की विचारधार अपनाई जाए जिन्होंने मानवता के लिए काम किया. जिन्होंने इन्सान होने का सबूत दिया. भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश की जरुरत है -ऐसे नेताओं का बहिष्कार करना जो धर्म के नाम पर देश तौड रहे है.