तकरीबन एक पखवाड़े से रायबरेली और अमेठी में अपनी मां और भाई के चुनाव प्रचार में
जुटी प्रियंका गांधी हर दिन सुर्खियों में रह रही हैं । प्रियंका गांधी के चुनाव प्रचार
में उतरने से लगभग पिछले दस-पंद्रह दिनों से चुनाव प्रचार बेहद दिलचस्प हो गया है ।
प्रियंका के रायबरेली और अमेठी क्षेत्र में पहुंचने के पहले भारतीय जनता पार्टी के
प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के शानदार भाषण राजनीति का सारा आकाश घेरे
हुए थे । नरेन्द्र मोदी के भाषणों में ना केवल विविधता होती थी बल्कि उनके बोलने का
आक्रामक अंदाज भी प्रशंसकों को पसंद आता था । सोनिया गांधी की अंग्रेजी स्टाइल में
बोली जा रही हिंदी और राहुल के भाषणों में बार बार सूचना के अधिकार से लेकर मनरेगा
का जिक्र जनता को ऊबाने लगा था । राहुल गांधी के भाषणों में नयापन नहीं होने से वो
जुबानी जंग में पिछड़ते हुए नजर आने लगे थे । इस बीच जब प्रियंका गांधी रायबरेली के चुनावी मैदान
में प्रचार करने के लिए उतरीं तो ना सिर्फ नरेन्द्र मोदी को जवाब मिलने लगा बल्कि प्रियंका
गांधी के बोले हुए शब्द लगातार सुर्खियां भी बनने लगे । हर अखबार और न्यूज चैनल पर
प्रियंका के बयान प्रमुखता से छपने और दिखाए जाने लगे । प्रियंका ने अपने खास अंदाज
में ना सिर्फ नरेन्द्र मोदी पर हमले किए बल्कि उसने भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा
पर भी सवाल खड़े किए । प्रियंका गांधी ने अपने भाषणों में शुद्ध हिंदी और उर्दू के
शब्दों का इस्तेमाल कर मीडिया को अच्छी कॉपी भी दी । जैसे एक भाषण में प्रियंका ने
कहा कहा कि महिला सशक्तीकरण की बात करते हो लेकिन हमारे फोन छुप छुप कर सुनते हो ।
यह बात वो बेहद सहजता से कह गई लेकिन इस बयान ने भाजपा को असहज कर दिया । एक और बयान
पर गौर करें- देश छप्पन इंच के सीने से नहीं चलता , इसके लिए दरिया दिल होना चाहिए
। यह बयान नरेन्द्र मोदी पर सीधा हमला था जो अपने भाषणों में छप्पन इंच सीने की बात
करते रहे हैं । इन दो बयानों को देखने के बाद साफ लगता है कि प्रियंका को इस बात की
समझ है कि मीडिया में कैसे बना रहा जाता है । प्रियंका इतने पर ही नहीं रुकी वो नरेन्द्र
मोदी को तुर्की बा तुर्की जवाब देने लगी । नरेन्द्र मोदी ने आरएसवीपी यानि- राहुल,
सोनिया, वाड्रा मॉडल को उछाला तो प्रियंका ने कहा कि मोदी जनता को मूर्ख समझते हैं
और उन्हें एबीसीडी पढ़ाने की कोशिश करते हैं ।
प्रियंका के इन बयानों ने चुनाव के दौरान मीडिया में लीड ले रही भारतीय जनता
पार्टी को बैकफुट पर ला दिया । प्रियंका के बयानों के सुर्खियां बनने के बीच के बीजेपी
ने दामादश्री नाम की एक 8 मिनट की फिल्म रिलीज कर उसको घेरने की कोशिश की । इस छोटी
सी फिल्म में यह दिखाया गया कि किस तरह से हरियाणा और राजस्थान के कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों
ने प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा को फायदा पहुंचाया । पूरी फिल्म इस बात के
इर्द-गिर्द घूमती है कि कैसे रॉबर्ट वाड्रा ने एक लाख रुपए की पूंजी से शुरुआत कर चंद
वर्षों में तीन सौ करोड़ का कारोबार किया । इस फिल्म के बहाने भारतीय जनता पार्टी ने
सोनिया गांधी और राहुल गांधी को घेरने की कोशिश की लेकिन परोक्ष रूप से यह प्रियंका
के असर को कम करने की कोशिश नजर आई । लेकिन इस फिल्म का नाम दामादश्री होना ही सबकुछ
कह गया है । आठ मिनट की इस फिल्म में प्रियंका गांधी का जिक्र ना होना चौंका गया ।
यह फिल्म उस दौर में रिलीज की गई थी जब प्रियंका लागातार नरेन्द्र मोदी पर हमले बोल
रही थी बल्कि इस फिल्म की खबर मिलने पर प्रियंका ने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को
बौखलाया चूहा तक करार दे दिया । उन्होंने तो कहा कि वो तो इस तरह के इल्जामों का इंतजार
कर रही थी । लेकिन फिर भी बीजेपी के नेता प्रियंका को लेकर खामोश रहे । प्रियंका को
लेकर बीजेपी का साफ्ट स्टैंड हैरान करनेवाला है । दरअसल लोकसभा चुनाव के बीच बीजेपी
प्रियंका गांधी पर सीधा हमला कर एक और फ्रंट नहीं खोलना चाहती है । भारतीय जनता पार्टी
के नेता प्रियंका गांधी पर सीधे हमले से बचते रहे हैं यहां तक कि नरेन्द्र मोदी से
भी जब प्रियंका गांधी के कटाक्षों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने भी यही कहा कि
वो तो बेटी है और एक बेटी होने के नाते उसका दायित्व है कि वो अपनी मां और भाई की बेहतरी
के लिए सारे प्रयास करे । कोई भी नेता रॉबर्ट वाड्रा को लेकर प्रियंका गांधी से सवाल
नहीं पूछ रहा है, बीजेपी का हर छोटा बड़ा नेता रॉबर्ट वाड्रा के जमीन सौदों पर राहुल
और सोनिया गांधी से जवाब चाहता है । बीजेपी के नेताओं ने प्रियंका को लेकर बस एक ही
रणनीति बनाई है कि कोई उनको प्रियंका गांधी नहीं कह कर संबोधित नहीं कर रहा है । भाजपा
का हर नेता प्रियंका को मिसेज वाड्रा या प्रियंका वाड्रा कहकर संबोधित करता है । इसके
पीछे की सोच यह हो सकती है कि जनमानस को यह संदेश दिया जाए कि प्रियंका का अपनी शादी
के बाद गांधी परिवार की विरासत से कोई लेना देना नहीं है और वह अब वाड्रा परिवार की
बहू हैं । गांधी परिवार की बागडो़र तो राहुल गांधी के हाथ में । इसी सोच के तहत प्रियंका
गांधी पर नरम रहते हुए भाजपा राहुल गांधी पर हमलावर रही है ।
अब अगर हम प्रियंका गांधी
के पूरे व्यक्तित्व को समझने की कोशिश करें तो इस बार के चुनाव प्रचार के दौरान की
उनकी मुखरता को सबसे पहले परखना होगा । पिछले दो तीन चुनाव से प्रियंका गांधी अपनी
मां सोनिया के लोकसभा क्षेत्र रायबरेली और भाई के लोकसभा क्षेत्र अमेठी में चुनाव प्रचार
करती रही हैं । हर बार चुनाव प्रचार के दौरान वो क्षेत्रीय मुद्दों और रायबरेली-अमेठी
की सड़कों और बिजली पानी और विकास पर अपने आपको केंद्रित रखती रही हैं । मां और भाई
के चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कोई बड़ा राष्ट्रीय मुद्दा नहीं उठाया था । उनके एक बयान से अरुण नेहरू की रायबरेली में जमानत
जब्त हो गई थी । प्रियंका ने बस इतना कहा था कि परिवार को धोखा देनेवालों को क्षेत्र
की जनता कैसे चुनेगी । इस बार प्रियंका गांधी ने अपनी पुरानी रणनीति को बदलते हुए इन
दो लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह से बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व
और विचारधारा पर हमला बोला वह उनके राजनीति में विस्तारित भूमिका के संकेत तो दे ही
गया है । अब यह भूमिका कैसी होगी यह भविष्य के गर्त में छिपा है लेकिन इतना तय हो गया
कि उनकी भूमिका होगी । अबतक राष्ट्रीय राजनीति में उनकी कोई ज्ञात भूमिका नहीं रही
है । गाहे बगाहे कांग्रेस का कोई नेता उनको पार्टी में लाने की बात करता रहता है ।
लेकिन इस चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी के व्यक्तित्व की जो पूरी की पूरी पैकेजिंग
की गई है उसको रेखांकित करने की आवश्यकता है । प्रियंका के करीबियों और उनके लिए रणनीति
बनानेवालों को यह पता है कि प्रियंका का व्यक्तित्व करिश्माई है और लोगों को उनमें
इंदिरा गांधी का अक्स नजर आता है । इसको ही ध्यान में रखते हुए प्रियंका की छवि निर्मित
की गई । खांटी सूती साड़ी और इंदिरा गांधी की ही तरह भाषण देने के बाद लोगों के बीच
में घुस जाना उनसे बात करना । विरोधी दल के कार्यकर्ताओं से रुक कर बतियाना आदि आदि
। जनता पार्टी के शासन काल के दौरान इंदिरा गांधी जब हाथी पर चढ़कर बेलछी पहुंची थी
तो उन्होंने वहां दलितों के साथ बैठकर उनका दुख जाना था । कुछ दिनों पहले प्रियंका
गांधी की एक तस्वीर आई थी जिसमें वो एक गरीब महिला के साथ खेत में बैठकर खाना खा रही
हैं । अब इस तस्वीर को कमोबेश सारे अखबारों ने मुखपृष्ठ पर प्रमुखता से छापा । संदेश
साफ था । इसके अलावा प्रियंका अपने भाषणों में जिस तरह से हिंदी-उर्दू के शब्दों का
उपयोग करती हैं वह भी उनको अपने भाई के व्यक्तित्व से अलग करता है । एक ही वाक्य में
वो कहती है कि जितना ज़लील करोगे उतनी दृढता से मुकाबला करूंगी । प्रियंका के स्वत:स्फूर्त भाषणों में एक विट होता है जैसे उन्होंने उमा भारती के बारे में पूछे गए
सलाव को सिर्फ यह कहकर टाल दिया कि वो बहुत बोरिंग हैं । कुल मिलाकर अगर हम प्रियंका
गांधी की सोच. उनके अंदाज और उनके काम करने के तरीके को देखें तो कह सकते हैं कि इस
साल के लोकसभा चुनाव ने कांग्रेस को एक नया नेता दे दिया है जो जनता की नब्ज जानती
है और सुर्खियों में बने रहने की कला भी उसको आती है ।
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