हाल की में संपन्न हुए रायपुर साहित्य महोत्सव के दौरान एक अनौपचारिक बातचीत में
हिंदी के वरिष्ठ कथाकार ह्रषिकेश सुलभ जी ने बेहद हल्के फुल्के अंदाज में कहा था कि
इन दिनों फेसबुक पर कुछ कवयित्रियां पगली बयार की तरह बउआ रही हैं । मजाक में कही गई
ह्रषिकेश सुलभ की इस बात पर कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है । हुई भी । पगली बयार और
बउआना दो ऐसे शब्द हैं जो फेसबुकिया साहित्यकारों पर बहुधा सटीक बैठती हैं । फेसबुक
पर कविताओं की इन दिनों बाढ़ आई हुई है । फैसबुक ने रचनात्मकता को एक मंच प्रदान किया
है । कुछ लेखक, लेखिका तो नियमित रूप से हर दिन कविताएं पोस्ट कर रही हैं । हिंदी के
प्रकाशकों का भी इस ओर ध्यान गया है । अभी जयपुर के एक प्रकाशक ने तो फेसबुक के सौ
कवियों की कविताओं के संग्रह को छापने का एलान करते हुए एक पोस्टर जारी किया है । कुछ
दिनों तक फेसबुक पर यह पोस्टर खूब पोस्ट हुआ । जिनकी कविताएं छप रही हैं उनमें से ज्यादातर
ने इसको प्रचारित प्रसारित किया । यह हाल सिर्फ कविता का नहीं है । हिंदी साहित्य में
इन दिनों कहानियां भी बहुतायत में लिखी जा रही हैं । मांग के आधार पर कहानियां लिखने
का चलन इन दिनों बढ़ा है । जिस तरह से लेख लिखे जाते हैं उसी तरह से इन दिनों कहानियां
भी लिखी जा रही हैं । कहानीकारों पर शब्द संख्या में कहानीलिखने का दबाव बढ़ा है ।
पत्र-पत्रिकाओं की अपनी सीमाएं होती हैं और उनके पाठक लंबी कहानियां पढ़ना नहीं चाहते
हैं लिहाजा वहां से छोटी कहानियों की मांग होती है । हजार डेढ हजार शब्दों की कहानी
। इसका नुकसान यह हो रहा है कि नई पीढ़ी के कथाकार छोटी कहानियां लिख रहे हैं जो कि
विस्तार से स्थितियों और परिस्थितियों के चित्र में नाकाम रही रही हैं । परिस्थिति
के विशाल फलक से सिमटती हुई कहानी घटना प्रधान होती जा रही है । कहीं कहीं तो कहानी
और घटनाओं के विवरण का भेद भी मिट जा रहा है ।
यह अकारण नहीं है कि हिंदी के कथा प्रदेश में कई कथाकार फॉर्मूलाबद्ध कहानियां
लिखकर ख्यात होने की बेचैनी से विचरण कर रहे हैं । इस वक्त हिंदी में कहानीकारों की
पांच पीढ़ियां मौजूद हैं । कृष्णा सोबती और शेखर जोशी सबसे वरिष्ठ पीढ़ी के कथाकार
हैं । उसके बाद रवीन्द्र कालिया और दूधनाथ सिंह की पीढ़ी, फिर उदय प्रकाश, शिवमूर्ति
की पीढ़ी, उसके बाद अखिलेश से लेकर संजय कुंदन की पीढ़ी और इस वक्त बिल्कुल युवा लेखकों
की पीढ़ी जिसमें गीताश्री, मनीषा कुलश्रेष्ठ से लेकर बिल्कुल नई कथाकार इंदिरा दांगी
और सोनाली सिंह कहानी लिख रही हैं । नई कहानी के दौर में हरिशंकर परसाईं कभी कहा था
कि जीवन के अंश को अंकित करनेवाली हर गद्य रचना, जिसमें कथा का तत्व हो, आज कहानी कहलाती है । कालांतर में यह और भी
विकसित हुआ लेकिन कहानी से कथा तत्व का लगातार ह्रास होते रहा । नये विषयों और नई भाव-भूमि
और नए यथार्थ की आड़ में कहानी का रूप बदला लेकिन यह रूप हर जगह एक सा ही लगने लगा
। कहानी के इस एकरूपता ने कहानी से किस्सागोई गायब कर दी । घटना प्रधान और विवरणों
से भरपूर कहानियां थोक के भाव से लिखी जाने लगीं । आज हम कहानी के परिदृश्य पर नजर
डालते हैं तो ज्ञानरंजन की घंटा, रवीन्द्र कालिया की काला रजिस्टर, दूधनाथ सिंह की रक्तपात, अमरकांत की हत्यारे, शेखर जोशी की कहानी कोशी का घटवार, शिवमूर्ति का तिरिया चरित्तर, सृंजय का कामरेड का कोट के अलावा उदय प्रकाश की कहानियों याद आती हैं । इन कहानियों
के बरक्श आज की कहानियों को रखकर देखने पर स्थिति उत्साहजनक नहीं दिखाई देती है । कविता
की तरह अब कहानी भी थोक के भाव से लिखी जाने लगी है । प्रसिद्धि की भागदौड़ में कहानी
पीछे छूट रही है । वजह की तलाश होनी चाहिए ।
1 comment:
(Sorry, don't have a Hindi font here).
The specific reference to which offence was taken is singling out women writers in language which does not speak highly of his own civic values. It shows a deep rooted sexist bias.
As far as the "Facebook writers" are concerned, probably I would tend to agree.
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