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Saturday, January 28, 2017

लेखन को सम्मान

पूरी दुनिया में रामकथा अलग अलग रूपों में मौजूद है । हमारे देश में ही लगभग हर भाषा में राम कथा मौजूद हैं । वाल्मीकि रामायण के अलावा हर भाषा में रामकथा लिखे गए जिनमें देश काल और परिस्थिति के हिसाब से बदलाव भी लक्षित किया जा सकता है । हमारे समय में रामकथा को आधुनिकता के साथ पेश करनेवाले नरेन्द्र कोहली को भारत सरकार ने पद्धश्री से सम्मानित करने का एलान किया है । यह हिंदी के उन लेखकों का भी सम्मान है जो किसी वाद या पंथ के खूंटे से बंधे बगैर पाठकों को ध्यान में रखकर लेखन करते हैं । नरेन्द्र कोहली को एक खास विचारधारा के लोगों ने लगातार साहित्य की कथित मुख्यधारा से अलग रखा और कोशिश करके उनको हाशिए से साहित्य के केंद्र में नहीं आने दिया । यह तो पाठकों के साथ की ताकत थी अपने लेखन पर भरोसा कि नरेन्द्र कोहली उपेक्षा के इस दंश को झेल गए । लगभग छह दशकों से लेखन कर रहे नरेन्द्र कोहली को अब जाकर पद्म सम्मान के लायक समझा गया जबकि पिछले दिनों तो ऐसे ऐसे लोगों को पद्म पुरस्कार दिए गए जिनके बारे में लिखना भी व्यर्थ है । नरेन्द्र कोहली यह मानते हैं कि विचारधारा के ध्वजवाहकों ने उनकी साहित्यक हत्या की कोशिश की लेकिन अपने लेखन के दम पर वो प्रासंगिक बने रहे । खैर यह अवांतर प्रसंग है । हाल के दिनों में पौराणिक कथाओं और आख्यानों को लेकर एक उत्सुकता का वातावरण बना है । हिंदी में नरेन्द्र कोहली के लेखन के बाद अंग्रेजी में भी कुछ युवा लेखकों ने पौराणिक आख्यानों को लेकर लेखन प्रारंभ किया है । नरेन्द्र कोहली ने हिंदी के जिस विशाल पाठकवर्ग को अपने साथ जोड़ा उसमें अंग्रेजी के लेखकों को भी संभावनाएं नजर आईं । परोक्ष रूप से एक कार्यक्रम में अमिष त्रिपाठी ने इस बात को स्वीकार भी किया । यह अच्छी बात है कि साहित्य का एक वर्ग वापस अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं ।

नरेन्द्र कोहली ने व्यंग्य लेखन भी किया ।व्यंग्य लेखन की शुरुआत की कहानी भी बेहद मार्मिक है । सत्तर के दशक की बात उनके घर जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया । जन्म के बाद ही दोनों बहुत बीमार पड़ गए और उनको दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती करवाना पड़ा जहां उनकी बच्ची की मौत हो गई और बेटा लंबी बीमारी से उबर कर घर लौटा । नरेन्द्र कोहली ने बातचीत में बताया कि अपने बच्चों की बीमारी के वक्त उन्होंने व्यवस्थागत संवेदनहीनता को बेहद नजदीक से देखा । यह संवेदनहीनता ही उनको व्यंग्य लेखन की ओर ले गया । विवेकानंद पर भी उन्होंने– तोड़ो कारा तोड़ो -के नाम से दो खंड लिखे । उन्होंने रामकथा पर भी विस्तार से लिखा और तुलसी और वाल्मीकि के रामायण को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित किया । महाभारत के चरित्रों को केंद्र में रखकर भी नरेन्द्र कोहली ने विपुल लेखन किया । महाभारत को पढ़ते हुए बहुधा उसके पात्रों को याद रखना मुश्किल होता है लेकिन कोहली जी ने बेहद कुशलता से कुछ पात्रों को पकड़े रखा और बाकियों को छोड़कर रोचकता के साथ प्रस्तुत कर दिया । रामकथा और महाभारत पर लिखने के बाद कोहली जी ने गीता पर लिखना प्रारंभ किया । वाणी प्रकाशन से प्रकाशिक अपनी पुस्तक शरणम में वो स्वीकार करते हैं कि उनको ना तो संस्कृत का ज्ञान था और ना ही गीता के दर्शन का लेकिन अपने परिवार में गीता के पाठ ने उनको गीता पर लिखने के लिए प्रेरित किया। सतहत्तर साल की उम्र में भी कोहली जी का लगातार लेखन आश्वस्तिकारक है । उनके लेखन को लेकर हिंदी साहित्य में व्याप्त उदासीनता बी अब दरकने लगी है यह भी संतोष की बात है । कोहली जी को पद्म सम्मान मिलने पर बधाई ।      

1 comment:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’बीटिंग रिट्रीट 2017 - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...