एक्सेस माय इंडिया और प्रदीप गुप्ता। हर चुनाव के बाद लोगों की उत्सुकता यही रही है कि इनके एग्जिट पोल का अनुमान क्या है। इस लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद प्रदीप गुप्ता के नतीजों के आकलन और अनुमान पर प्रश्न उठ रहे हैं। विपक्ष उनपर हमलावर है। मध्य प्रदेश के रहनेवाले प्रदीप गुप्ता ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से पढ़ाई की। हार्वर्ड से लौटकर गुप्ता ने मार्केट रिसर्च कंपनी एक्सेस माय इंडिया की स्थापना की। इस कंपनी का उद्देश्य मार्केट रिसर्च के अलावा चुनाव के बाद परिणामों के अनुमान लगाना भी है। उनके अनुमान काफी हद तक सही होते रहे हैं क्योंकि वैज्ञानिक तरीकों पर आधारित होता है। प्रदीप गुप्ता से एक्जिट पोल की वैज्ञानिकता, उसके करने के तरीकों, वोट शेयर को सीट में बदलने के औजारों से लेकर उनके अनुमान के गलत साबित होने पर एसोसिएट एडीटर अनंत विजय ने उनसे विस्तार से बात की। उस बातचीत के अंश।
इस बार आपके एग्जिट पोल गलत हो गए, ऐसा कैसे हुआ।
यह महत्वपूर्ण है कि आपकी गलत की परिभाषा क्या है? भारत सहित पूरी दुनिया में एग्जिट पोल की पहली प्राथमिकता होती है कि विजेता का पूर्वानुमान सही हो, दूसरी कि कौन कितनी सीटों से जीतने वाला है। तीसरी चीज है वोट शेयर। विजेता को लेकर हमारा पूर्वानुमान सही रहा। मैंडेट भी पूरा रहा 272 का मैंडेट चाहिए, तो उससे अधिक ही 291 मिला। हम दोनों पार्टियों के गठबंधन को एक रेंज देते हैं कि इसके भीतर उन्हें सीटें मिलेंगी। इसके भीतर जो नंबर आते हैं तो उसको हम स्पाट आन कहते हैं। राजग के लिए हमारी लोअर रेज 361 थी और आईं 291 सीटें, यानी उससे 70 सीटें दूर रहे। ये सच है कि इस बार हमने भाजपा और राजग को अपेक्षाकृत अधिक बड़ी जीत का पूर्वानुमान व्यक्त किया था। इस बार हम स्पाट आन सटीकता से बहुत दूर थे, पर अगर कोई ये कहे कि हमारा एग्जिट पोल पूरी तरह गलत हो गया तो ये उनका दृष्टिकोण है। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनावों में हम एग्जिट पोल करने वालों में शामिल नहीं थे। सबने पूर्वानुमान व्यक्त किया था कि अटल जी की सरकार आ रही है, जबकि यूपीए की सरकार बन गई थी। वो पूर्णत: गलत था, पर हमारे साथ वैसा नहीं रहा। विजेता का पूर्वानुमान सही साबित हुआ।
पूर्वानुमान गलत कैसे हो गया, दिक्कत कहां आई?
पूर्वानुमान में तीन गलतियां हुईं, जो उत्तर प्रदेश, महाराष्ट और बंगाल से जुड़ी हैं। उनको हमने गंभीरता से लिया। हम विश्लेषण कर रहे हैं। चूक के भी दो-तीन मायने होते हैं। डेटा कलेक्शन इंटरव्यू के दौरान क्या गलती हुई। जब डेटा आ गया तो उसका विश्लेषण करने में क्या गलती हुई। हम उसका भी विश्लेषण कर रहे हैं। वोट शेयर में सामान्यत: 2-3 फीसद मार्जन एरर होता है। राजग के लिए हमने 47 कहा था जो 44 आया, ये अंतर तीन फीसद से कम ही है। इंडिया के लिए 40 कहा था जो 41 मिला। वोट शेयर के लिहाज से कोई दिक्कत नहीं है। उत्तर प्रदेश में 49 कहा था जो 44 हुआ। दोनों गठबंधन का 44-44 आया है, जब इतना कांटे का मुकाबला होता है तो थोड़ी दिक्कत होती है। महाराष्ट्र में गठबंधन दल वोट शेयर में बेहद निकट थे। बंगाल में भय के कारण बात कर पाना मुश्किल होता है। वहां भी हमने समन्वय बिठाते हुए सर्वे में लोगों का मिजाज भांपने का प्रयास किया। तो देखा जाए तो विजेता का पूर्वानुमान सही है। वोट शेयर भी मार्जन एरर के भीतर है। तीन बड़े राज्यों में हम गलत हुए, लेकिन उसके उलट 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी जगह हम एक-दो सीट से अधिक उपर-नीचे नहीं हुए, यानी स्पाट आन हैं। चार राज्यों में विधानसभा चुनाव भी साथ में थे। उनमें से दो राज्यों आंध्र प्रदेश, उड़ीसा में मतदाताओं के मिजाज को भांपना जटिल था। सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश सहित चारों राज्यों के विधानसभा चुनावों में हम स्पाट आन हैं। हमारे प्रिडिक्शन का रिपोर्ट कार्ड ये है, सच है कि हम रेंज से दूर हैं, गलत हम जरूर हुए लेकिन तीन बड़े राज्यों में।
एग्जिट पोल बहुत वैज्ञानिक तरीके से होता है। उन तीन राज्यों में जो चूक हुई, वहां अगर वैज्ञानिक अप्रोच थी तो गलती की गुंजाइश कैसे थी।
उत्तर प्रदेश बड़ा राज्य है। उसे समझना जटिल है। पूरे प्रदेश में दो फीसद वोट कम हुआ, लेकिन क्षेत्र विशेष में वोटर टर्नआउट के आधार पर इसे समझना होगा। रामपुर, बिजनौर में सात फीसद, कैराना व सहरानपुर पांच फीसद वोटर टर्नआउट कम हुआ जबकि मैनपुरी में दो प्रतिशत, खीरी में एक प्रतिशत वोटर टर्नआउट अधिक हुआ। अभी तक का विशेषण है कि 40 जगहों में वोटर टर्नआउट दो जगह बढ़ा व बाकी जगह घटा है। उत्तर प्रदेश में 25 सीटों पर दो पार्टियों के बीच जीत का अंतर तीन प्रतिशत से कम है। ज्यादातर तीन, पांच सात के बीच वोटर टर्नआउट कम हुआ। एक लोकसभा में हमारा सैंपल साइज 1072 था। अब दस लाख लोग वोट कर रहे हैं, उसमें एक हजार लोगो से बात कर रहे हैं। जहां मार्जन कम होता है वहां मुश्किल होती है। उड़ीसा में भाजपा ने 20 सीटें जीतीं, वहां हमारा आकलन सही रहा। आंध्र प्रदेश में 25 में 21 सीटें भाजपा को मिली, तमिलनाडु में इंडिया जीत गया 39 सीटें, वहां भी हम सही रहे। वोट शेयर मार्जन जब दो पार्टियों के बीच राज्य के स्तर पर देखें जैसे दिल्ली में ले लीजिए 54 फीसद एक पार्टी को मिले तो दूसरी पार्टी को 44 मिले। 10 फीसद का प्लेरूम है। वहां हमारा पूर्वानुमान सही साबित हुआ। गलती दो, चार, पांच फीसद में होती है।
सर्वे और पोल में क्या अंतर है?
दो अंतर हैं। सर्वे होता है, जिसे हम कहते हैं स्टैटिफाइड रिप्रेजेंटेटिव सैंपलिंग। पोल जो जहां जैसे मिल गया उसका जवाब ले लिया। सर्वे में भी आपका एक यूनीवर्स है, विधानसभा, लोकसभा क्षेत्र या राज्य के स्तर पर हम सर्वे सैंपल लेते हैं। इसमें तीन डेमोग्राफी महत्वपूर्ण होती हैं, जेंडर, आयु, भौगोलिक क्षेत्र यानी ग्रामीण व शहरी क्षेत्र। उदाहरण के तौर पर यदि उसमें सौ की जनसंख्या है तो 50-50 स्त्री-पुरुष ले लीजिए। आयु वर्ग भी परिभाषित है जैसे 25-36 व इसी प्रकार से अन्य। ग्रामीण व शहरी जनसंख्या का अनुपात क्रमश: 70-30 है तो उसी के आधार हम अपना सैंपल चुन लेते हैं। यह वैसे ही है जैसे हम ब्लड का सैंपल लेते हैं, उसी तरह हम एक सैंपल उठा लेते हैं, फिर उसे स्ट्रैटीफाइ करते है।
क्या एग्जिट पोल को आडिट कह सकते हैं?
दोनों अलग हैं आडिट है बही-खातों की जांच करना होता है। सूचना या डेटा की जांच करना। सर्वे में बहुत सारे सवाल होते हैं जो आप जनता से लेते हैं। आडिट निर्जीव वस्तुओं का होता है, सर्वे सजीव लोगों का होता है।
एग्जिट पोल के लिए मतदाताओं का चयन आप कैसे करते हैं।
इसको ऐसे समझिए। जब हमारे प्रतिनिधि उत्तर प्रदेश जा रहे हैं तो उसमें लोकसभा क्षेत्र 80 और विधानसभा क्षेत्र 403 हैं। आप मेरठ कैंट में खड़े हैं, मैं सर्वेयर हूं। यहां उल्लेख करना चाहूंगा कि उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण भी महत्वपूर्ण हो जाता है। सामान्य, ओबीसी, एससी में जाटव व गैर जाटव, एसटी इत्यादि पर ध्यान देना पड़ता है। अब अगर आपको दो सौ लोगों से बात करनी है, तो इन सभी के सही अनुपात का ध्यान रखना पड़ता है। आप बात करते हैं तो चेहरे से जाति को पहचानना मुश्किल होता है। इसलिए हम पहले से पता कर लेते हैं कि मुस्लिम बाहुल्य या दलित बाहुल्बय बस्तियां कौन सी हैं? सामान्य वर्ग के लोग कहां रहते हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग की रिहायश का अंदाज लगा पाना मुश्किल होता है, क्योंकि वह बहुत सारी जातियों का समूह है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हम सर्वे करते हैं।
हर बूथ की अपनी डेमोग्राफी होती है,अपना चरित्र होता है, जब सैंपल का चयन करते हैं या किसी इलाके का कैसे चयन करते हैं।
हम बूथ के हिसाब से सर्वे नहीं करते। हम जातिगत समीकरणों और जैसे पहले बताय उस डेमोग्राफी को ध्यान में रखते हैं। बूथ से आप उतना सटीक नहीं हो सकते। यह पता भी चल जाए कि मुस्लिम बाहुल्य है, तो भी वे उतनी संख्या में वहां बात करने के लिए उपस्थित होंगे, इसे लेकर हम आश्वस्त नहीं हो सकते।
वोट प्रतिशत को सीट में कैसे तब्दील करते हैं।
हम हर संसदीय क्षेत्र में जाते हैं। जैसे चुनाव की प्रक्रिया होती है कि हर बूथ, हर गांव, विधानसभा, संसदीय क्षेत्र और उसके साथ पूरे राज्य का डेटा जमा हो जाता है। उसका विश्लेषण करते हैं। कौन सी जाति ने कैसे वोट किया, ये समझने का प्रयास करते हैं। यदि आपने किसी जाति को अधिक प्रतिनिधित्व दे दिया, मेरा आशय है कि यदि किसी जाति या समुदाय विशेष को सर्वे में अधिक शामिल कर लिया जैसे वहां 30 प्रतिशत मुस्लिम थे और हमने 50 फीसद उस समुदाय के लोगों को सर्वे में ले लिया तो उसे भी संतुलित करते हैं।
यानी आप कहना चाह रहे हैं कि जहां मार्जन कम होता है वहां अनुमान लगाना मुश्किल होता है?
हां वहां थोड़ी मुश्किल होती है। उड़ीसा में विधानसभा में हमने दोनों पार्टियों को बराबर वोट शेयर दिया, लेकिन 78 सीटें जीतकर भाजपा की सरकार बन गई।
इस चुनाव में लगभग सारे एग्जिट पोल आंकड़ें के मामले में गलत साबित हुए। एग्जिट पोल का भविष्य कैसे देखते हैं। क्या साख पुन: बन पाएगी?
सबकी अपेक्षाएं 400 की थीं, इसलिए लोगों का माइंडसेट ऐसा था कि 400 सीटें आ रही हैं। चुनाव को लेकर चर्चाओं का दौर लंबा चला। जब उसके अनुरूप परिणाम नहीं आया तो लोगों को लगा कि गलत हो गया। इसे इस तरह समझे कि लोगों की अपेक्षाएं अपनी जगह हैं, लेकिन जैसा कि हर परीक्षा में होता है, उसमें पास होना महत्वपूर्ण है। हनम पास हुए। वैज्ञानिक तरीकों से करते हैं इसलिए साख तो बनी ही रहेगी।
हम एग्जिट पोल करते ही क्यों हैं? तीन-चार दिन बाद तो परिणाम आ ही जाना है।
ये सच है कि कुछ समय उपरांत चुनाव के परिणाम सबके सामने आ जाते हैं लेकिन उसमें ये विश्लेषण नहीं मिलेगा कि कौन सी पार्टी कैसे जीती। किस जाति वर्ग समूह ने कैसे वोट किया। एक सवाल से भी होता है कि मतदाताओं ने किन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए वोट किया। ये शोध का विषय है। खेल में भी तो यही होता है। मैच देखना ही क्यों है, थोड़ी देर बाद तो परिणाम पता चल ही जाता है, पर इसमें लोगों की रुचि होती है। चुनाव ही एकमात्र ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पूरा हिंदुस्तान भाग लेता है। वोटर के मन में भी जिज्ञासा होती है कि मैंने जिसको वोट दिया है वो जीतने वाला है कि नहीं। आने वाली सरकार से उसका जीवन तय होता है। परिणाम पर उसकी सुख-सुविधाएं निर्भर करेंगी। फिल्में हों या खेल किसी में इतनी व्यापक भागीदारी नहीं होती। 65 करोड़ वोट पड़े हमने पांच लाख 80 हजार सैंपल साइज से पूर्वानुमान दिया। 0.05 के सैंपल साइज से हम 90 फीसद सही बता पाने में सफल हुए तो उसमें अनुचित क्या है।
सभी पोल गलत हुए, पर आपको ही क्यों लक्षित किया गया?
लोगों की मुझसे अपेक्षाएं अधिक हैं। हम स्पाट आन के लिए जाने जाते हैं, जब उतना नहीं हुआ तो लोगों को गलत लगा। जहां तक विश्वसनीयता की बात है तो हमारी पूरी मेथडोलाजी सामने रहती है। सारे रिकार्ड उपलब्ध रहते हैं, पूरी पारदर्शिता से हम काम करते हैं, उसपर कोई सवाल नहीं कर सकता।
आपने कहा था कि आत्ममंथन करेंगे। क्या आत्ममंथन की प्रक्रिया जारी है?
ये प्रक्रिया तो चल रही है। हम आंकड़ों का विश्लेषण कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की 25 सीटों पर तीन फीसद से कम से हार हुई। महाराष्ट्र में 48 में से 11 सीटों पर हार-जीत तीन फीसद के अंतर से हुई है। वोटर टर्नआउट कम होने के कारणों को समझना जटिल है।
आप बेहद भावुक हैं, कभी खुशी में डांस करने लगते हैं, तो कभी आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं...
कुछ ऐसी चीजें होती हैं जो दिल को छू जाती हैं, तो अनायास ही भावनाएं प्रकट हो जाती हैं।
आरोप है कि भाजपा नेता पीयूष गोयल आपके मित्र हैं और उन्होंने आपको प्रभावित किया।
अगर किसी के प्रभाव में गलत आंकड़ों को मैं प्रस्तुत करने लगूं तो यह आत्महत्या करने के समान होगा। हम एक प्रक्रिया से होकर गुजरते हैं। हमने इससे पहले 69 बार पूर्वानुमान दिए हैं, उनमें 65 बार सही रहे तो चार बार हम गलत भी हुए। पूर्वानुमान गलत भी हो सकते हैं और सही भी। पीयूष जी ही के साथ मैं हार्वर्ड में पढ़ा है। मित्र, संबंधी तो किसी भी क्षेत्र से हो सकते हैं, पर उनसे प्रभावित होकर मैं कुछ भी कहूं ये संभव नहीं ।
चुनाव के पूर्वानुमानों से शेयर बाजार को प्रभावित करने के आरोप भी लगे हैं।
इसमें कोई सच्चाई नहीं है। आप इसकी जांच करवा सकते हैं। इसका तो कोई प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होता। लोग पूछते हैं पर जब तक अंतिम वोट ना पड़ जाए, तब तक हम कुछ नहीं कहते। हम ओपिनियन पोल, प्री पोल नहीं करते। हमारे लिए वो नैतिकता की बात नहीं है। हम बस एक ही नंबर बोलते हैं। निजी जीवन में भी लोग पूछते हैं तो मैं उन्हें कुछ भी नहीं बाताता। मैं ऐसी बातों से दूर रहता हूं।
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