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Friday, November 27, 2009

स्त्री आकांक्षा की उंची उड़ान

हमेशा संपूर्ण भारतीय परिधान में रहनेवाली महामहिम राष्ट्रपति को जब अचानक वायुसेना की खास वर्दी में पुणे के लोहेगांव एयरबेस पर लड़ाकू विमान सुखोई की ओर बढ़ते देखा तो सहसा यकीन नहीं हुआ कि एक भारतीय नारी इस सुपरसोनिक विमान में यात्रा कर सकती है । वायुसेना की वर्दी में जब प्रतिभा पाटिल सुखोई की सीढियां चढ़ रही थी तो वो एक नए इतिहास की ओर कदम बढ़ा रही थी । शांत, सौम्य चेहरे में प्रतिभा पाटिल जब सुखोई में बैठकर हाथ हिला रही थी वह दृश्य बुलंद होते भारत की एक ऐसी तस्वीर थी जिसपर हर भारतवासी गर्व कर सकता था । कहते हैं जब कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है । और हुआ भी वही- उम्र के चौहत्तर साल पूरे कर चुकी महामहिम प्रतिभा पाटिल ने आसमान में आठ हजार फीट की उंचाई पर आधे घंटे तक उड़ानभर कर इतिहास रच दिया । वो भारतीय गणतंत्र की पहली महिला राष्ट्रपति बन गई जिन्होंने सुपरसोनिक लडाकू विमान में इतनी ऊंचाई पर उडी । इस उड़ान के लिए महामहिम ने दो महीने तक जबरदस्त तैयारी की। उन्हें विमान में उड़ने के तौर तरीकों को बताया गया था । आपातस्थति से तैयार रहने के हर नुस्खे की बारिकियों को बताया गया। जोखिमों से निबटने की हर ट्रेनिंग लेने के बाद प्रतिभा पाटिल ने पुणे के लोहेगांव एयरबेस से उडान भरी । लगभग आधे घंटे तक आठ हजार फीट की उंचाई पर उड़ान भरने के बाद प्रतिभा पाटिल ने माना कि योग और नियमित व्याययाम से उन्हें इस कठिन उड़ान में मदद मिली । तो एक बार फिर साबित हुआ कि कड़ी मेहनत और हौसले के आगे कोई भी लक्ष्य बौना है ।
इस उड़ान का सिर्फ प्रतीकात्मक महत्व नहीं है बल्कि इसके गंभीर निहितार्थ हैं । प्रतिभा पाटिल ने सुखोई में यात्रा कर भारतीय महिलाओं की आकांक्षाओं को भी एक नई उड़ान दे दी है । एक ऐसे देश में जहां आज भी महिलाओं के साथ लगातार और हर रोज नाइंसाफी होती है, उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखा जाता हो, वहां एक उस देश की प्रथम नागरिक ने अपने देश की आधी आबादी को यह संकेत दे दिया कि अगर कड़ी मेहनत का जज्बा हो और हौसले बुलंद हो तो कुछ भी किया जा सकता है । प्रतिभा पाटिल ने यह भी माना कि इस देश की महिलाओं की योग्यता में उन्हें पूरा यकीन है । तकनीकी और अन्य दिक्कतों को दरकिनार कर अगर महिलाओं को मौका मिले तो वो हर क्षेत्र में अपनी सफलता के झंडे गाड़ सकती हैं । राष्ट्रपति जब यह कह रही थी देश की महिलाओं को एक ऐसा आत्मबल मिल रहा था जो उनके उत्थान के लिए बहुत मददगार साबित हो सकता है । इस प्रतीकात्मक उड़ान के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, जो देश में महिलाओं को नए -नए क्षेत्र में हाथ आजमाने के लिए प्ररित कर सकते हैं । और जब भी इस देश में किसी महिला ने किसी भी काम के लिए कमर कसी तो उसे सफलता ही मिली, राष्ट्रपति का यह विश्वास गलत भी नहीं है ।
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से पहले आठ जून दो हजार छह को उस वक्त के राष्ट्रपति ए पी जे अबुल कलाम ने सुखोई में य़ात्रा की थी । चालीस मिनट की य़ात्रा के बाद उस वक्त के राष्ट्रपति कलाम ने भी यही कहा था कि उन्हें यकीन हो गया है कि देश सुरक्षित हाथों में है । अब कलाम के बाद प्रतिभा पाटिल ने भी सुपरोसिनक विमान में यात्रा कर भारतीय सेना को ये संदेश दे दिया है कि राष्ट्रपति सिर्फ नाम मात्र के लिए तीनों सेना का सुप्रीम कमांडर नहीं है बल्कि वो हर कदम पर अपनी सेना के साथ है । चौहत्तर साल में इस अदम्य साहस के लिए देश के राष्ट्रपति की जितनी प्रशंसा की जाए वो कम है ।

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