रिलायंस जियो के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने जब एलान किया था कि जियो के
फोन से तीन महीने के लिए पूरे देश भर में फोन कॉल और डाटा सर्विस मुफ्त होगी तो
उसके बाद जियो के सिम खरीदने के लिए लंबी लंबी कतारें लगने लगी थी । उस वक्त जियो
खरीदकर मुफ्त कॉल का सपना देखनेवाले देशभर के ग्राहकों को इस बात का अंदाजा नहीं
रहा होगा कि इससे दूसरे नेटवर्क पर फोन करना मुश्किल होगा । देश की जनता को मोबाइल
नेटवर्क की तकनीक और उसके लाइसेंस की गूढ़ शर्तों का पता नहीं था लेकिन जब जियो से
दूसरे नेटवर्क पर फोन करने लगे तो लगातार ये संदेश मिलने लगा कि इस रूट की सभी
लाइनें व्यस्त हैं कृपया थोड़ी देर बाद डायल करें । जियो से मुफ्त कॉल कर पाने में
जब दिक्कत होने लगी तो लोगों ने पता लगाना शुरू किया और मीडिया में भी इसको लेकर
चर्चा शुरू हो गई जिससे निकलकर आया कि जियो को आइडिया, वोडाफोन और एयरटेल से पर्याप्त
संख्या में प्वाइंट ऑफ इंटरकनेक्शन नहीं मिल रहा है । ये वो तकनीक है जिसके जरिए
एक नेटवर्क से दूसरे पर आसानी से कॉल की जा सकती है । जियो का आरोप है कि चौदह
सितंबर तक उसे एयरटेल ने सिर्फ छह सौ इक्यावन, वोडाफोन ने चार सौ बासठ और आइडिया
ने पांच सौ तेइस प्वाइंट ऑफ इंटरकनेक्शन दिए हैं जबकि कॉल के सुचारू रूप से होने
के लिए यह आवश्यक है कि हर ऑपरेटर कम से कम चार से पांच हजार प्वाइंट ऑफ
इंटरकनेक्शन दे । हलांकि अन्य ऑपरेटरों का दावा है कि वो धीरे धीरे प्वाइंट ऑफ
इंटरकनेक्शन को बढ़ा रहे हैं । टेलीफोन सेक्टर की नियामक संस्था टीआरएआई के
मुताबिक रिलायांस जियो और अन्य नेटवर्क के बीच की जानेवाली क़ल के फेल होने की
संख्या बहुत ज्यादा है । जानकारों के मुताबिक करीब अस्सी से नब्बे फीसदी कॉल फेल
हो रही है । जबकि इस सेक्टर से जुड़े लोगों का मानना है कि कॉल फेल होने की दर आधी फीसदी होनी चाहिए । टीआरएआई
ने इसको बेहद गंभीरता से लिया है और कहा है कि इस तरह की स्थिति किसी भी हालात में
स्वीकार्य नहीं है । टीआरएआई के मुताबिक इतनी बड़ी संख्या में कॉल के फेल होने से
ग्राहकों को परेशानी हो रही है । दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस बी सी पटेल
मे संचार मंत्री को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया अपने
लाइसेंस की शर्तों का उल्लंघन कर रहे हैं जिसकी वजह से उनपर जुर्माना लगाया जाना
चाहिए । जस्टिस पटेल ने तो इन तीनों ऑपरेटर पर नौ हजार करोड़ से ज्यादा का
जुर्माना लगाने का अनुरोध किया है ।
जब तक मोबाइल फोन और डाटा सर्विस के क्षेत्र में जियो का प्रवेश नहीं
हुआ था तबतक ज्यादातर ग्राहक थ्री जी और टू जी सेवा का उपयोग कर रहे थे । थ्री जी
और टू जी में कॉल ड्राप की इतनी शिकायतें आ रही थी कि उस वक्त के संचार मंत्री
रविशंकर प्रसाद को बार-बार इस बाबत सफाई देनी पड़ती थी । डाटा स्पीड भी बेहद कम थी
और थ्री जी इस्तेमाल करनेवालों को बहुधा 2 जी सेवा मिलती थी । जियो के आने के बाद
से कॉल और डाटा दोनों सर्विस काफी बेहतर हो गई। जियो की डाटा सर्विस का इस्तेमाल करनेवाले उपभोक्ता
इसकी स्पीड से बेहद खुश दिख रहे हैं और विशेषज्ञ इसको विश्वस्तरीय बता रहे हैं । विशेषज्ञों
के मुताबिक इस सर्विस से लोगों को कई फायदे होंगे । स्पीड बेहतरीन मिलने के अलावा
इसकी दर भी मौजूदा ऑपरेटर के दरों से करीब पैंतीस फीसदी कम होने का अनुमान है । दरअसल
अगर देखें तो जियो ने जिस तरह से दिसंबर के बाद डाटा के साथ जीवन भर कॉल की सुविधा
मुफ्त देने का एलान किया है उससे पहले से मौजूद टेलीफोन कंपनियों के होश उड़े हुए
हैं । जियो के प्री लांच ऑफर ने ही डाटा बाजार के करीब बीस फीसदी से ज्यादा हिस्से
पर कब्जा जमा लिया है ।
जियो की बेहतर सेवा को देखते हुए मौजूदा कंपनियों के कई ग्राहक माइग्रेट
होकर इस नेटवर्क पर आना चाहते हैं लेकिन जियो का आरोप है कि मोबाइल कंपनियां
मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी को भी रोक रही हैं । कंपनियों के बीच आरोप प्रत्यारोप के
इस दौर में ग्राहकों का नुकसान हो रहा है । सवाल यही है कि अगर कोई नई कंपनी आ रही
है और बेहतर और सस्ती सेवा देने का दावा कर रही है तो लाइसेंस की शर्तों के
मुताबिक उसको काम करने का माहौल और सहयोग क्यों नहीं मिलना चाहिए । प्वाइंट ऑफ
इंटरकनेक्शन के लिए हर मोबाइल कंपनी जिसके नेटवर्क का इस्तेमाल करती है उसको चौदह
पैसे प्रति मिनट के हिसाब से भुगतान करती है, बावजूद इस नियम के जियो को
नियमानुसार प्वाइंट ऑफ इंटरकनेक्शन नहीं देना ग्राहकों के साथ छल है । जियो के
विरोध में खड़ी कंपनियों की दलील है कि प्वाइंट ऑफ इंटरकनेक्शन के इस चौदह पैसे
प्रति मिनट के भुगतान से नीचे ग्राहकों से वसूल नहीं किया जा सकता है जबकि जियो
वॉयस कॉल तो मुफ्त में दे रही है । इस वजह से बाजार में अफरातफरी का माहौल हो सकता
है ।
दरअसल इसके पीछे कुछ लोग कॉरपोरेट वॉर भी देख रहे हैं । संभव है
क्योंकि जिस तरह से मोबाइल ऑपरेटरों की संस्था सेलुलर ऑपरेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया
यानि सीओएआई में एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया एकजुट होकर जियो के खिलाफ खड़े हैं
उससे इसके संकेत तो मिलते हैं । जियो का आरोप है कि सीईएओई के नियम इन तीन
कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाए जा रहे हैं क्योंकि इस संस्था में इनका ही
दबदबा है । वार पलटवार के इस खेल के बीच नुकसान तो देश की आम जनता को हो रहा है जो
बेहतर और सस्ती सेवा का फायदा नहीं उठा पा रही है । अब सवाल यही उठता है कि क्या
देश की जनता को विश्वस्तरीय सेवाओं का लाभ उठाने की आजादी नहीं मिलनी चाहिए । जनता
को अगर कोई सेवा सस्ती दरों पर उपलब्ध कराया जा रहा है तो इसको रोकने की कवायद
क्यों । क्या जनता की आकांक्षाओं के लिए काम करने वाली चुनी हुई सरकार का दायित्व
नहीं है कि वो जनहित में इस तरह की हरकतों पर रोक लगाए ।