दिल्ली की हिंदी अकादमी एक विवाद से उबरती नहीं है कि दूसरे विवाद
के भंवर में फंस जाती है । विवादों के केंद्र में बहुधा रहती हैं आम आदमी पार्टी
सरकार द्वारा नियुक्त की गई अकादमी की उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा । मैत्रेयी
पुष्पा हिदी अकादमी में काफी सक्रिय हैं और उन्होंने इसको आयोजनों आदि से चर्चा
में तो ला ही दिया है । आयोजनों में बुलाए जानेवाले रचनाकारों के नाम पर आपत्तियां
हो सकती हैं लेकिन इस बात पर लगभग सभी एकमत हैं कि दिल्ली की हिंदी अकादमी की
गाड़ी चल पड़ी है । लेकिन जब कोई संस्था मंत्रालय के अंदर होती है तो उसको एक
चौहद्दी विशेष में काम करना पड़ता है । इस बात का एहसास मैत्रेयी पुष्पा को हाल ही
में एक बार फिर हुआ । हिंदी दिवस के मौके पर अकादमी ने सोशल मीडिया पर हिंदी के
प्रचार प्रसार और उत्कृष्ट कार्य के लिए सक्रिय नौ शख्सियतों को भाषादूत सम्मान
देने का एलान किया । अब गड़बड़ी इस पुरस्कार देने के फैसले के साथ शुरू हुई । बताया
जा रहा है कि अकादमी से सम्मानित होनेवाले लोगों की जो सूची दिल्ली सरकार के भाषा
और संस्कृति विभाग गई थी वहां से कुछ नाम जोड़ दिए गए और कुछ हटा दिए गए । लेकिन
इस बीच अकादमी ने जल्दबाजी दिखाते हुए अपनी सूची के सदस्यों से संपर्क कर उनको
सम्मानित करने का पत्र जारी कर दिया और उनका बॉयोडाटा आदि मंगवा लिया । मंत्रालय
से सूची आने पर वो बदला हुआ था, लिहाजा जिनका नाम कटा था उनसे अकादमी ने लिखित रूप
में क्षमा मांग ली । परंतु मामला इतना सरल नहीं था । सोशल मीडिया पर इसको लेकर
खासा बवाल मचा । मैत्रेयी पुष्पा से इस्तीफे की मांग उठी । संचालन समिति के सदस्य
ओम थानवी ने इस्तीफे का एलान कर दिया । जो हो सकता था वो हुआ लेकिन अच्छी बात ये
रही कि अकादमी की उपाध्यक्ष मजबूती से डटी रहीं । इसके पहले भी जब होली के वक्त
भारतीय जनता पार्टी के सांसद मनोज तिवारी को कार्यक्रम करने के लिए साढे आठ लाख का
भुगतान किया गया था तब भी उपाध्यक्ष को पता नहीं था और शायद कार्यकारिणी से
सदस्यों को भी अंधेरे में रखा गया था । सवाल यही उठता है कि क्या भाषा और संस्कृति
विभाग में कौन है जो अकादमी के फैसलों को बगैर उपाध्यक्ष को विश्वास में लिए बदल
दे रहा है और उसकी मंशा क्या है ।
हाल ही में कार्यकारिणी के दो सदस्यों- हरियाणा के पूर्व पुलिस
अफसर विकास नारायण राय और वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार विजय किशोर मानव- को हटाने
का फरमान जारी हो गया था । ये दोनों मैत्रेयी पुष्पा के विश्वासपात्र माने जाते
हैं । इसकी वजह का तो पता नहीं लेकिन अकादमी से जुड़े लोगों का दावा है कि उस वक्त
भी ये मामला मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक गया था और उनके दखल के बाद ही ये मसला
सुलझ पाया था । विकास नारायण राय और विजय किशोर मानव कार्यकारिणी में बने रहे । बार
बार दिल्ली सरकार के भाषा और संस्कृति विभाग से इस तरह की बातें सामने आने के बाद
सवाल तो खड़े होने ही लगे हैं । दरअसल हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष का पद अबतक लगभग
शोभा और सानिध्य का पद रहा था लेकिन मैत्रेयी पुष्पा ने उस शोभा और सानिध्य का
अतिक्रमण करना शुरू कर दिया । अब अगर कहीं स्थापित मान्यताओं को तोड़-फोड़ की
कोशिश होगी तो विरोध तो होगा ही । ये देखना दिलचस्प होगा कि मैत्रेयी पुष्पा कब तक
इन राजनीतिक दांव-पेंच को झेल पाती हैं या फिर राजनीति के चालों को नाकाम करते हुए
अकादमी को चलाने में सफल हो पाती है ।
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