बिहार विधानसभा चुनाव के पहले हिंदी के चंद कवियों और लेखकों ने देशभर
में असहिष्णुता के मुद्दे पर साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस करने का एलान कर माहौल
बनाने की कोशिश की थी । माहौल बना भी था । अशोक वाजपेयी ने ठीक-ठाक समां बांध दिया
था । चंद दिनों तक पूरे देश में इस बात पर ही बहस हुई थी कि देश में असहिष्णुता का
मौहाल है । यहां तक कि वित्त मंत्री अरुण जेटली और बाद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी को भी इस पर बयान देना पड़ा था । साहित्य अकादमी को भी आपात बैठक बुलानी पड़ी
थी । इस बात के लिए अशोक वाजपेयी को दाद देनी होगी कि उन्होंने देश भर में एक सरकार
के खिलाफ माहौल बना दिया था । उस माहौल के बाद बिहार विधानसभा का चुनाव परिणाम आया
और भारतीय जनता पार्टी वहां बुरी तरह से परास्त हो गई । महागठबंधन की जीत के बाद नीतीश
कुमार ने बिहार की कमान संभाली । पुरस्कार वापसी अभियान के लोगों से उनकी
मुलाकातें होती रहीं । इस समूह के रहनुमाओं ने नीतीश कुमार को विधानसभा चुनाव
नतीजों के बाद ये जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि महागठबंधन की जीत में उनके
द्वारा निर्मित माहौल का भी हाथ था । अब बिहार फतह करने के बाद नीतीश कुमार की
महात्वाकांक्षा अपने लिए देश की सियासत में बड़ी भूमिका तलाश रही है । नीतीश कुमार
को अपने लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद करने का भरोसा एक बार फिर से इस पुरस्कार
वापसी समूह ने दिया है । दिल्ली में इस समूह के सदस्यों और नीतीश कुमार की एक बैठक
हुई जिसमें समान विचारधारा के लेखकों को एक मंच पर लाने की कोशिश करने की बात हुई
। देशभर के इस तरह के लेखकों से नीतीश कुमार की मुलाकातें करवाई जाएंगी । अब ये
देखना दिलचस्प होगा कि इन मुलाकातों से क्या निकलता है । देखना तो ये भी दिलचस्प
होगा कि वो कौन सी वजहें हैं जिसकी वजह से प्रगतिशील, जनवादी और कलावादी लेखक एक
साथ एक मंच पर तमाम वैचारिक विरोधों को भुलाकर बैठेंगे । इतनी लंबी पृष्ठभूमि
बताने की भी वजह है । वजह पुरस्कार वापसी समूह की मंशा को उजागर करने की है ।
देश में फैल रहे असहिष्णुता के खिलाफ पुरस्कार वापसी समूह के
मुखिया अशोक वाजपेयी की लंबे समय से इच्छा रही है कि वो देश में विश्व कविता
समारोह का आयोजन करें । इस तरह के कार्यक्रमों में करोड़ों रूपए खर्च होते हैं
लिहाजा आयोजन का भार कोई सरकार या सरकारी संस्था ही उठा सकती है । अशोक वाजपेयी ने
भारत सरकार को 2014 में भी इस तरह के आयोजन का प्रस्ताव दिया था जो परवान नहीं चढ़
सका था । दरअसल उस वक्त सरकार ने अशोक वाजपेयी के उस प्रस्ताव को साहित्य अकादमी
के पास भेज दिया था जिसे साहित्य अकादमी ने ठुकरा दिया था । साहित्य अकादमी ने
अशोक वाजपेयी के प्रस्ताव को नकारते हुए साफ कर दिया था कि वो किसी से साथ
साझीदारी में इतना बड़ा आयोजन करने के बजाए खुद इस तरह का आयोजन कर सकती है ।
साहित्य अकादमी ने विश्व कविता समारोह का आयोजन किया भी था । अब एक बार अशोक
वाजपेयी ने बिहार सरकार को विश्व कविता समारोह के आयोजन के लिए तैयार कर लिया है ।
बिहार सरकार ने इस आयोजन का जिम्मा बिहार संगीत नाटक अकादमी को सौंपा है । इस
संस्था के अध्यक्ष कवि आलोक धन्वा हैं । विश्व कविता सम्मेलन के लिए जिस आयोजन
समिति का गठन किया गया है उसमें सरकारी नुमाइंदों के अलावा राष्ट्रीय जनता दल के
नेता रामश्रेष्ठ दीवाना, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कवि अरुण कमल, रामवचन
राय और अशोक वाजपेयी को इस कमेटी में रखा गया है । इस कमेटी की एक बैठक हो चुकी है
और तय किया गया है कि अगले साल अप्रैल में पटना में विश्व कविता समारोह का आयोजन
किया जाएगा । सूबे के संस्कृति मंत्री शिवचंद्र राम के मुताबिक इस समारोह में चालीस
देशों के कवि शिरकत करेंगे । राम के मुताबिक कमेटी ने जो फैसला लिया है उसके
मुताबिक पटना और सूबे के अन्य ऐतिहासिक शहरों में ये समारोह आयोजित होगा । इसके
लिए दिल्ली में एक अस्थायी कार्यालय होगा जो अशोक वाजपेयी की देखरेख में चलेगा । अब
इस कार्यालय में क्या क्या सहूलियतें होंगी इस बारे में जानकारी सामने आने का
इंतजार है ।
अभी नामवर सिंह के नब्बे साल के मौके पर प्रकाशित पत्रिका बहुवचन
के अंक में अशोक वाजपेयी ने एक लंबा लेख लिखकर नामवर सिंह के दुर्गुणों को गिनाया
था । अशोक वाजपेयी के मुताबिक विचारधारा के अतिरेक के अलावा नामवर सिंह के यहां
तीन और अतिचार सक्रिय हैं- वाचिकता, अवसरवादिता और सत्ता का आकर्षण । अशोक वाजपेयी
ने नामवर सिंह पर सत्ता के आकर्षण का आरोप लगाते हुए कहा कि वो सत्ताधारियों के
मंच पर होने पर बहुत विनम्र हो जाते हैं । अशोक वाजपेयी ने नामवर सिंह पर तो सत्ता
के आकर्षण का आरोप जड़ा लेकिन कहावत है ना कि अगर आप किसी की ओर एक उंगली उठाते
हैं तो आपकी ओर भी कुछ उंगलियां उठती हैं । यह कहावत अशोक वाजपेयी पर भी लागू होती
है । अशोक जी को भी ना तो कभी सत्ता से परहेज रहा और ना ही कभी उन्होंने
सत्ताधारियों से निकटता से कोई परहेज किया । चाहे वो समाजवादी पार्टी के सांसद
धर्मेन्द्र यादव के साथ मंच साझा करना हो या फिर नीतीश कुमार के साथ । पुरस्कार
वापसी अभियान के बाद तो नीतीश कुमार से उनकी निकटता बढ़ती ही गई और पिछले दिनों
जिस तरह की खबरें आई उसके मुताबिक अशोक वाजपेयी खेमे के लेखकों की नीतीश कुमार के
साथ लंबी बैठक हुई जिसमें देशभर के लेखकों के साथ नीतीश की मुलाकातें तय करवाने का
बीड़ा उठाया गया । क्या ये सत्ता का आकर्षण नहीं है । क्या ये सत्ता का आकर्षण
नहीं है कि अशोक वाजपेयी जैसे हिंदी के वरिष्ठ और बेहद आदरणीय लेखक को उस कमेटी
में रखा गया है जिसमें कि लालू यादव की पार्टी के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के मुखिया
हैं । कमेटी की सदस्यता स्वीकार करना अवसरवादिता नहीं है ।
अबतक भले ही बिहार में विश्व कविता सम्मेलन करने के फैसले का दावा
किया जा रहा है लेकिन पर्दे के पीछे इस कविता महोत्सव को दिल्ली में करवाने का खेल
भी चल रहा है । इस आयोजन से जुड़े लोगों का कहना है कि अशोक वाजपेयी और बिहार
संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष आलोक धन्वा इस पक्ष में हैं कि विश्व कविता के इस
आयोजन को दिल्ली में करवाया जाए । अब दिल्ली में आयोजन के लिए तर्क ढूंढे जा रहे
हैं । एक तर्क तो ये दिया जा रहा है कि विश्व के चालीस देशों के कवियों के रुकने
का पटना में इंतजाम कैसे हो सकता है । दूसरा तर्क ये गढ़ा जा रहा है कि दिल्ली में
इस आयोजन से नीतीश कुमार की छवि को देशभर में मजबूती मिलेगी और एक संवेदनशील और उनको
सहिष्णु विकल्प के रूप में पेश किया जाएगा । इन तर्कों से ज्यादा तो इस तर्क में
दम लगता है कि विश्व कविता महोत्सव अगर बिहार में करवाया गया तो रसरंजन कैसे होगा
। बिहार में पूर्ण शराबबंदी है और ऐसे में कविता सुनाने के बाद कवियों के सामने
संकट पैदा हो सकता है । इसकी काट के तौर पर भी इस आयोजन को दिल्ली ले जाया जा सकता
है । अगर ऐसा होता है तो नीतीश की छवि मजबूत होगी या कमजोर ये तो उस वक्त ही तय
होगा ।
बिहार संगीत नाटक अकादमी के विश्व कविता महोत्सव के आयोजन पर करीब
चार-पांच करोड़ रुपए के बजट पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं । बिहार में शुरू हुआ अखिल
भारतीय कविता समारोह और कहानी समारोह को सरकार ने बंद कर दिया जिसमें बमुश्किल पच्चीस
तीस लाख रुपए खर्च होते थे । पटना लिटरेचर फेस्टिवल को बिहार सरकार ने मदद बंद कर
दिया जिससे वो आयोजन भी ठप है । अब सवाल यही है कि विश्व कविता महोत्सव के आयोजन
पर करोड़ों खर्च करने का औचित्य क्या है । इससे बिहार की जनता को या बिहार की
रचनात्मकता को क्या फायदा होना है । इस बात का आंकलन सरकार के स्तर पर किया गया या
सिर्फ अशोक वाजपेयी को पुरस्कार वापसी मुहिम के लिए पुरस्कृत करने के लिए ये आयोजन
किया जा रहा है । इस बात को भी प्रचारित किया जा रहा है कि गांधी जी के चंपारण
सत्याग्रह के सौ साल पूरे होने के जश्न के तौर पर भी इसका आयोजन किया जा रहा है । बेहतर
तो ये होता कि बिहार सरकार इस चार पांच करोड़ रुपए की राशि से पटना या बिहार के
किसी अन्य शहर में एक बेहतरीन कला केंद्र की स्थापना करती जहां बिहार के
प्रतिभाशाली कलाकार ना केवल अपनी कला को मांज सकते बल्कि उसका प्रदर्शन भी कर सकते
। पटना में मौजूद सांस्कृतिक केंद्रों की बदहाली इन पैसों से दूर हो सकती है । लेकिन
नेताओं को तो अपने कार्यकर्ताओं का ध्यान रखना होता है और इस आयोजन में भी इस
सिद्धांत का पालन किया जा रहा है ।
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