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Saturday, July 1, 2017

‘पुरस्कार वापसी’ के पुरस्कार से परहेज कहां?

हाल ही में बिहार सरकार के कला, संस्कृति और युवा विभाग के सांस्कृतिक कार्य निदेशालय ने दो हजार सत्रह अठारह के लिए अपना सांस्कृतिक कैलेंडर जारी किया। इस कैलेंडर में विभाग द्वारा आयोजित तमाम सांस्कृतिक कार्यक्रमों के नाम, उसको आवंटित राशि, संभावित बजट, स्थान, माह के अलावा नोडल एजेंसी के नाम का उल्लेख है। इस कैलेंडर में क्रमांक सैंतीस पर लिखा है सत्याग्रह विश्व कविता समारोह। आयोजन स्थल पटना। संभावित बजट तीन करोड़ साठ लाख रुपए और नोडल एजेंसी के तौर पर विभाग और बिहार संगीत नाटक अकादमी का नाम उल्लिखित है। ऐसा प्रतीत होता है कि भूलवश आयोजन का माह जनवरी दो हजार सत्रह छप गया है। दरअसल इस आयोजन को होना जनवरी दो हजार अठारह में है। इस पूरे कैलेंडर में इस आयोजन का संभावित बजट सबसे अधिक है। अगर जोड़ा जाए तो पूरे बजट का करीब पांचवां हिस्सा सिर्फ एक आयोजन के लिए आवंटित किया गया है। बिहार सरकार के इस संस्कृतिक कैलेंडर के जारी होते ही विश्व कविता समारोह को लेकर एक बार फिर से सुगबुगाहट शुरू हो गई। पाठकों को यह याद होगा कि इस स्तंभ में ही सबसे पहले इस बात की चर्चा की गई थी कि हिंदी के वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी बिहार सरकार के सहयोग से विश्व कविता सम्मेलन करना चाहते हैं। उस वक्त यह बात सामने आई थी कि अशोक जी ये आयोजन दिल्ली में करवाना चाहते हैं, आयोजन को कॉर्डिनेट करने के लिए अशोक वाजपेयी को दिल्ली में स्टाफ और दफ्तर बिहार सरकार की तरफ से मुहैया करवाया जाएगा आदि आदि। पहली बाठक में इन विषयों पर बातचीत हुई भी थी।
अब बिहार सरकार ने इस विश्व कविता समारोह को पटना में सत्याग्रह विश्व कविता के नाम से आयोजित करने का फैसला लिया है। जाहिर सी बात है कि अशोक वाजपेयी इस योजना से शुरू से जुड़े रहे हैं लिहाजा इस बात की चर्चा एक बार फिर से शुरू हो गई है कि अशोक वाजपेयी को ही पटना में आयोजित होनेवाले विश्व कविता समारोह का जिम्मा सौंपा जा रहा है। बिहार के वरिष्ठ रचनाकार उषाकिरण खान और कर्मेन्दु शिशिर ने फेसबुक पर ये लिखा भी है कि अशोक वाजपेयी को ही ये जिम्मा दिया जा रहा है। उषा किरण खान जी ने तो साफ तौर पर लिखा कि बिहार सरकार के कला संस्कृति विभाग ने अशोक वाजपेयी जी को जिम्मा सौंपा है विश्व कविता सम्मेलन करने के लिए। कर्मेन्दु शिशिर जी ने लिखा कि नीतीश जी जब दिल्ली गए थे तो अशोक वाजपेयी और मंगलेश डबराल वगैरह उनसे मिलने गए थे। पहले तो वो नहीं मिले। के सी त्यागी जी तक ही रहा। मगर बाद में मिले। पवन वर्मा जी की भी भूमिका रही। बाद में उन्होंने लिखा कि ऐसा उनको किसी ने बताया। इस मुलाकात के बारे में कितनी सचाई है ये तो पता नहीं लेकिन इन टिप्पणियों से ये हुआ कि विश्व कविता सम्मेलन के संयोजक के तौर पर अशोक वाजपेयी का नाम खुल गया।
दरअसल अशोक वाजपेयी ने भारत सरकार को 2014 में भी विश्व कविता सम्मेलन के आयोजन का प्रस्ताव दिया था जो परवान नहीं चढ़ सका था । दरअसल उस वक्त की सरकार ने अशोक वाजपेयी के उस प्रस्ताव को साहित्य अकादमी के पास भेज दिया था जिसे साहित्य अकादमी ने ठुकरा दिया था । साहित्य अकादमी ने अशोक वाजपेयी के प्रस्ताव को नकारते हुए साफ कर दिया था कि वो किसी से साथ साझीदारी में इतना बड़ा आयोजन करने के बजाए खुद इस तरह का आयोजन कर सकती है । साहित्य अकादमी ने विश्व कविता समारोह का आयोजन किया भी था । उसके बाद केंद्र में सरकार बदली। बिहार में विधानसभा चुनाव हुए। चुनाव के दौरान असहिष्णुता को लेकर देश में माहौल बनाया गया। पुरस्कार वापसी अभियान को संगठित तरीके से चलाया गया। बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के गठबंधन की जीत हुई। उसके बाद अशोक वाजपेयी ने बिहार सरकार को विश्व कविता समारोह का प्रस्ताव दिया। लंबे समय तक सरकारी प्रक्रिया और बैठकों के बाद बिहार सरकार ने विश्व कविता समारोह के लिए तीन करोड़ साठ लाख का बजट आवंटित कर दिया है । आयोजन का जिम्मा बिहार संगीत नाटक अकादमी को सौंपा गया है लेकिन समिति में अशोक वाजपेयी हैं।
अशोक वाजपेयी ने विश्व कविता सम्मेलन के बारे में कहा था कि उन्होंने एक समारोह में मुख्मंत्री को सुझाव को इस आयोजन का सुझाव दिया था। संभव है कि बिहार के मुख्मंत्री समारोह में दिए गए सुझावों पर अमल करवा देते हों । लेकिन बाद में इस आयोजन को लेकर बैठक हुई तो वहां अशोक वाजपेयी की तरफ से औपचारिक प्रसातव पर विचार किया गया। वाजपेयी उस बैठक में शामिल होने पटना गए। बैठक में उनके अलावा आलोक धन्वा, अरुण कमल और आरजेडी के नेता दीवाना भी शामिल हुए थे। उस बैठक में तय हुआ था कि समारोह पटना और बिहार के किसी एक और शहर में आयोजित की जाएगी। उस बैठक के बाद विश्व कविता समारोह के आयोजन में अशोक वाजपेयी की भूमिका को पुरस्कार वापसी के पुरस्कार के तौर पर देखा गया था। अशोक वाजपेयी ने भी लेख लिखकर इसका खंडन किया था और कहा था कि इस समारोह का पुरस्कार वापसी से कोई लेना देना नहीं है।
संभव है अशोक जी की बातें सही हों लेकिन अगर कर्मेन्दु शिशिर की उपरोक्त बातों में सचाई है तो अशोक वाजपेयी के साथ मंगलेश डबराल भी इस आयोजन को सुनिश्चित करवाने के लिए नीतीश कुमार से मिले थे। गौरतलब है कि मंगलेश डबराल भी पुरस्कार वापसी समूह में शामिल थे। यह अलहदा बात है कि इन दिनों मंगलेश डबराल साहित्य अकादमी के कार्यक्रमों में शिरकत करते नजर आ रहे हैं। विरोध का ये वामपंथी तरीका है, जहां आप प्रचार और लाभ हासिल करने के लिए नैतिकता आदि की आड़ लेते हैं लेकिन जैसे ही आपको किसी लाभ का प्रस्ताव मिलता है तो आप अपना विरोध त्यागकर उसे स्वीकार कर लेते हैं। पुरस्कार वापसी करने वाले लेखकों के साथ यही हो रहा है। अगर बिहार सरकार का सत्याग्रह विश्व कविता सम्मेलन पुरस्कार वापसी का पुरस्कार नहीं है तो फिर क्या है? अशोक वाजपेयी चाहे लाख सफाई दें लेकिन यह सचाई है। फेसबुक और सोशल मीडिया पर हो रही चर्चा इस बात को पुष्ट भी करती हैं। जब संस्कृति विभाग का कैलेंडर जारी हुआ तो यह बात भी प्रकरांतर से सामने आने लगी कि अशोक वाजपेयी ने विश्व कविता समारोह को लेकर उनपर हो रहे हमलों से आहत होकर इससे अलग होने का मन बना लिया है। इस तरह की बात भी सामने आई कि उन्होंने महीने भर पहले इस आयोजन को खुद से अलग कर लिया है। बिहार सरकार के संस्कृति विभाग के आला अफसरों से बात करने पर पता चला कि उन्हें अशोक वाजपेयी के इस समारोह से अलग होने की अबतक कोई जानकारी नहीं है। बल्कि विभागीय अफसरों ने इस बात को स्पष्ट किया कि विश्व कविता समारोह का मूल प्रस्ताव अशोक वाजपेयी का ही था और विभाग चाहता है कि अशोक वाजपेयी को ही इस आयोजन का जिम्मा मिले। सारी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं बस शासन के सर्वोच्च स्तर से उसपर अप्रूवल मिलना शेष है। अशोक वाजपेयी के इस समारोह से अलग होने की बात अबतक बिहार सरकार के संस्कृति मंत्रालय तक पहुंची नहीं है। ना ही उऩका कोई पत्र पहुंचा है।
पुरस्कार वापसी के पुरस्कार से भी बड़ा मुद्दा है कि विभाग के अन्य आयोजनों को पर्याप्त धनराशि का नहीं दिया जाना। इसके अलावा जो दूसरी बात है वो कि बिहार में तमाम सांस्कृतिक, साहित्यक संस्थाएं बदहाल हैं, उनके कर्मचारियों के सामने बहुधा वेतन तक का संकट पैदा हो जाता है। विश्व कविता सम्मेलन के आयोजन का जिम्मा जिस संगीत नाटक अकादमी को मिला है उसके अध्यक्ष तक नहीं हैं। इस बात पर गंभईरता से विचार करना होगा कि जबतक कला और संस्कृति के लिए इंफ्रास्ट्रक्टर नहीं विकसित किया जाएगा, स्थानीय प्रतिभाओं को अपने अपने क्षेत्र में आगे बढ़ने का अवसर उपलब्ध नहीं करवाया जाएगा तबतक इस तरह के महंगे आयोजनों का कोई अर्थ नहीं है। साहित्य अकादमी ने दिल्ली में विश्व कविता समारोह का आयोजन किया था उसमें साहित्यक लोगों की भी भागीदारी नगण्य थी। वैश्विक स्तर पर अलग अलग भाषाओं के कवियों ने अपनी भाषा में कविताएं पढ़ीं थीं, जिसको लेकर किसी तरह का उत्साह नहीं दिखा था। बिहार का संस्कृति विभाग अगर सच में साहित्य, कला संस्कृति के विकास और अंतराष्ट्रीय स्तर पर उसकी पहचान बनाने के लिए प्रतिबद्ध है तो उसको इस तरह के व्यक्तिगत महात्वाकांक्षी प्रस्तावों पर विचार करने के पहले स्थानीय स्तर पर उसकी स्वीकार्यता और आयोजन से स्थानीय प्रतिभाओं को होनेवाले लाभ का आंकलन भी करना चाहिए। अन्यथा होगा ये कि इस तरह के आयोजन एक साल होकर, व्यक्ति या संस्था विशेष को लाभ पहुंचाकर बंद हो जाएंगे


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