मुझे ठीक से याद है कि दिसंबर 1996 की बात है,
मैंने एक दिन प्रभात प्रकाशन के बोर्ड नंबर पर फोन किया था। फोन उठानेवाले को
बताया कि मैं एक साहित्यिक पत्रिका के लिए सालभर में छपी महत्वपूर्ण किताबों पर एक
लेख लिख रहा हूं। मुझे प्रभात प्रकाशन के कर्ताधर्ता से बात करनी है। मुझे होल्ड
करवाकर फोन ट्रांसफर किया गया। उधर से आवाज आई नमस्कार, मैं श्याम सुंदर बोल रहा
हूं। मैंने अपना परिचय दिया और फोन करने का उद्देश्य बताया। श्याम सुंदर जी ने
ध्यानपूर्वक मुझे सुना और फिर कहा कि कल कार्यालय आ जाइए, आपसे किताबों पर भी बात
हो जाएगी और जो किताब आपको चाहिए वो मिल भी जाएगी। दिल्ली विश्वविद्लाय के पास
विजय नगर इलाके में रहता था। बस से नियत समय पर आसफ अली रोड स्थित प्रभात प्रकाशन
के कार्यलय पहुंच गया। श्याम सुंदर जी ने तुरंत बुला लिया और स्नेहपूर्वक बातचीत
की। किताबों के बारे में लंबी चर्चा हुई। उस वर्ष प्रकाशित कई किताबें मंगवाकर
सबके बारे में बताया और फिर कहा कि जो पुस्तकें चाहिए ले जाइए। कुछ पुस्तकें मेरी
पढ़ीं हुई थीं तो उऩका कवर ले आया और उसके अलावा तीन पुस्तकें और लिया। उस दिन
श्याम सुंदर जी ने इतना स्नेह दिया, पूरी बातचीत के दौरान मुझे इस बात का एहसास
करवाते रहे कि मैं बहुत महत्वपूर्ण हूं। ये श्याम सुंदर जी की खासियत थी कि वो
सामने वाले को बहुत सम्मान देते थे। इस मुलाकात के बाद मेरी उनसे बहुत ज्यादा
मुलाकात नहीं हुई लेकिन फोन पर कई बार बातें हुईं। हर बार उनसे बात करके कुछ नया
सीखने और समझने की दृष्टि मिलती थी।
श्याम सुंदर जी ने दिल्ली के चावड़ी बाजार इलाके
से अपना कामकाज शुरू किया और 1958 में प्रभात प्रकाशन की शुरुआत की थी। चावड़ी
बाजर के उस दफ्तर से लेकर 1996 में आसफ अली रोड के दफ्तर तक आने का सफर उनके
संघर्ष की कहानी बयां करता है। जिस प्रभात प्रकाशन की शुरुआत श्याम सुंदर जी ने की
थी आज वो हिंदी का शीर्ष प्रकाशक बन चुका है और हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं में भी
पुस्तकों का प्रकाशन करता है। एक अनुमान के मुताबिक आज प्रभात प्रकाशन हर दिन एक
नए पुस्तक का प्रकाशन करता है। श्याम सुंदर जी मथुरा के रहनेवाले थे लेकिन उऩकी
पढ़ाई इलाहाबाद मे हुई। वहीं वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक के पूर्व सरसंघचालक रज्जू
भैया के संपर्क में आए और स्वयंसेवक बने। जब उन्होंने दिल्ली आकर प्रभात प्रकाशन
की शुरुआत की तो उन्होंने विश्व साहित्य से हिंदी जगत का तो परिचय करवाया ही
बांग्ला और अन्य भारतीय भाषाओं की महत्वपूर्ण कृतियों का हिंदी में अनुवाद करवा कर
प्रकाशित किया। श्याम सुंदर जी का एक बड़ा योगदान ये रहा कि उन्होंने हिंदू धर्म,
संस्कृति और दर्शन की पुस्तकों का प्रकाशन कर पाठकों तक पहुंचाया और भारतीय ज्ञान
परंपरा को मजबूत किया। 1971 में जब भारत पाकिस्तान युद्ध हुआ तो उस वक्त देशभक्ति
की भावना जगानेवाली पुस्तकों का प्रकाशन भी श्याम सुंदर जी ने किया किया। उनके इस
कदम को फील्ड मार्शल जनरल मॉनेक शॉ ने बहुत सराहा था। श्याम सुंदर जी की साहित्य
में गहरी अभिरुचि थी और वो इस बात की कमी शिद्दत से महसूस करते थे कि भारतीयता को
केंद्र में रखकर कोई हिंदी साहित्यिक पत्रिका वहीं निकल रही है। उन्होंने ऐसी एक
पत्रिका, साहित्य अमृत की योजना बनाई जिसको अटल बिहारी वाजपेयी और विद्या निवास
मिश्र का सक्रिय सहयोग मिला। आज ये पत्रिका साहित्य जगत में बेहद समादृत है।
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सितंबर 1927 के जन्मे श्याम सुंदर जी का 28 दिसंबर 2019 को 93 वर्ष की आयु में
निधन हो गया। अपने काम को लेकर उनकी लगन को इस बात से समझा जा सकता है कि जिस दिन
उऩका निधन हुआ उस दिन तक वो कार्यलय में आए थे। प्रकाशन जगत के इस पुरोधा को
श्रद्धांजलि।
2 comments:
श्याम सुंदर जी के विषय में जानकर अच्छा लगा। विनम्र श्रद्धांजलि।
प्रभात प्रकाशन वाले लोग अच्छे स्वभाव के हैं. वे मुझसे भी दो-तीन विषयों पर पुस्तक चाहते थे लेकिन वे रिसर्च को सपोर्ट करने को तैयार नहीं थे. इसलिए मैंने आगे काम नहीं किया.
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