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Sunday, September 21, 2014

क्राइम फिक्शन की कमी

हिंदी में अगर हम क्राइम फिक्शन की ओर देखें तो एक बड़ा सन्नाटा नजर आता है । सुरेन्द्र मोहन पाठक, वेद प्रकाश शर्मा आदि ने कई क्राइम थ्रिलर लिखे लेकिन मुख्यधारा के हिंदी साहित्य पर नजर डालें तो क्राइम को केंद्र में रखकर बहुत कम रचनाएं लिखी गईं है । पिछले दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय में स्पेनिश की प्रोफेसर डॉ मनीषा तनेजा ने जब इस बाबत सवाल पूछा तो मेरे पास कोई जवाब नहीं था । फिर इस दिशा में सोचना शुरू किया । ले देकर सुरेन्द्र मोहन पाठक ही नजर आए। इसके उलट अगर हम अंग्रेजी में देखें तो कई रियल लाइफ स्टोरी को केंद्र में रखकर बेहतरीन क्राइम थ्रिलर लिखे गए । यहां बात सिर्फ उन लेखकों की हो रही है जो भारतीय हैं या फिर जिन्होंने भारतीय पृष्ठभूमि पर केंद्रित अपकराध कथाएं लिखी हैं । पत्रकार एस हसन जैदी की नई किताब- भायखला टू बैंकाक, मुंबईज महाराष्ट्रियन माबस्टर्स की नई किताब में उन्होंने मुंबई के हिंदू माफिया डॉन को फिक्शनलाइज किया है । इस उपन्यास में छोटा राजन को देखा जा सकता है जबकि इसके पहले हसन जैदी ने डोंगरी टू दुबई, सिक्स डिकेड्स ऑफ मुंबई माफिया के केंद्र में दाऊद को रखा था । अंग्रेजी उपन्यासों के प्रकाशन के ट्रेंड को अगर देखें तो साफ तौर पर यह दिखाई देता है कि भारतीय अंग्रेजी लेखक क्राइम फिक्शन लिखने की ओर चल पड़े हैं । मीनल बघेल की किताब डेथ इम मुबंई भी खासी चर्चित रही थी । बेहतरीन खोजी पत्रकार जे डे की हत्या के पहले दो हजार दस में उनकी किताब- जीरो डायल, द डेंजरस वर्ल्ड ऑफ इंफॉरमर्स को भी लोगों ने काफी सराहा था । अंग्रेजी में लिखी जा रही अपराध कथाओं में एक और कॉमन सूत्र रेखांकित किया जा सकता है वह यह कि सारे उपन्यास किसी ना किसी रूप में मुंबई से जुड़े हैं । क्राइम लिखनेवालों को मुंबई के अपराध का परिवेश अगर आकर्षित करता है तो उसके पीछे की वजह फिल्मों में अपराधियों को नायकों की तरह पेश करना रहा है और उन फिल्मों का हिट होना भी।

हिंदी के नए लेखकों की रचनाओं पर नजर डालने से यह लगता है कि वो विषयों को लेकर खतरा उठाने को तैयार नहीं हैं । हिंदी के युवा लेखकों का फॉर्मूलाबद्ध लेखन से मुक्त नहीं होना चिंता की बात है । अगर युवा लेखिका है तो वो स्त्री पुरुष के संबंधों पर हाथ आजमाती हैं । अपनी रचना की नायिका को बोल्ड दिखाकर पाठकों को चौंकाने की कोशिश करती है । युवा लेखक हैं तो वो समाज की समस्याओं को अपनी रचना के केंद्र में रखते हैं, घर परिवार, विस्थापन से लेकर मजदूरों पर होनेवाले जुल्म जैसे विषयों पर ही लिखते हैं । नई जमीन तोड़ने की घोषणा के शोर में नए विषय की ओर जाने का जोखिम बहुधा हिंदी के युवा लेखक नहीं उठा पाते हैं । इसके पीछे एक वजह यह भी है कि हिंदी में वरिष्ठ लेखकों और आलोचकों ने ऐसा माहौल बना रखा है जिसमें अपराध कथा लेखक लुगदी साहित्य लेखकों के कोष्ठक में आंकें जाते हैं । इस मानसिकता को तोड़ना होगा । हिंदी साहित्य के विकास और फैलाव के लिए विषयों में विविधता जरूरी है । साहित्य के पाठकों को जबतक अलग-अलग रंग नहीं मिलेंगे, अलग अलग स्वाद नहीं दिखेंगें तो फिर नए पाठक नहीं जुड़ेंगे । कोई भी साहित्य अगर अपने साथ नए पाठकों को जोड़ने का उपक्रम नहीं करती है तो फिर उसका पिछड़ना और कालांतर में सिमट जाना तय माना जाता है ।   

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