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Sunday, October 5, 2014

भाषण पर बेवजह विवाद

विजयादशमी के मौके पर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख माननीय मोहन भागवत के करीब घंटे भर के भाषण को दूरदर्शन पर दिखाए जाने पर सवाल खड़े होने लगे हैं । विपक्षी दल कांग्रेस के अलावा कई बुद्धिजीवियों ने भी दूरदर्शन के इस कदम को केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के होने से जोड़कर देखा है । लेफ्ट पार्टियो ने इसको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को सरकारी संरक्षण के तौर पर पेश करके दूरदर्शन को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की । मशहूर इतिहासकार और स्तंभकार रामचंद्र गुहा ने भी ट्वीट कर कहा कि बहुमत के इस नंगा-नाच का विरोध किया जाना चाहिए । गुहा के मुताबिक संघ एक हिंदी सांप्रदायिक संगठन है , अगली बार मस्जिदों के इमाम और चर्च के पादरी भी लाइव प्रसारण की मांग कर सकते हैं । उन्होंने इस बात की भी उम्मीद जताई कि कोई ना कोई शख्स अदालत में इसके खिलाफ जनहित याचिका दाखिल करेगा । संघ प्रमुख मोहन भागवत के भाषण को दूरदर्शन पर लाइव दिखाए जाने की बढ़ती आलोचना के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भागवत के भाषण की महत्ता बताई तो सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर भी दूरदर्शन के बचाव में उतरे। प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि संघ प्रमुख का भाषण खबर थी और खबर की महत्ता के मद्देनजर दूरदर्शन ने इसको लाइव करने का फैसला लिया । फिर क्या था सोशल मीडिया पर दूरदर्शन के इस कदम के पक्ष और विपक्ष में तलवारें खिच गईं । जमकर आरोप प्रत्यारोप का दौर चला । दूरदर्शन के एक एंकर ने तो रामचंद्र गुहा से पूछ लिया कि क्या जब पोप का भाषण लाइव हुआ था तो उन्होंने विरोध जताया था । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख के भाषण से जो सवाल उठ रहे हैं वो इसलिए कि संघ हमेशा से अपने को राजनीति से अलग सांस्कृतिक संगठन मानता और बताता रहा है । संगठन का दावा होता था कि उसके प्रमुख या संगठन की सरकार में ना तो कोई भूमिका होती है और ना ही भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में दखल । लेकिन यह बीते दिनों की बात हो गई है जब इस तरह के तर्क दिए जाते थे । पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सफलता में मोदी के करिश्मे के साथ साथ संघ के कार्यकर्तांओं की भी बड़ी भूमिका थी । संघ प्रमुख के भाषण का विरोध करनेवाले यह भूल गए हैं कि मोदी सरकार के शपथ ग्रहण के बाद मोहन भागवत का यह पहला दशहरा भाषण था । पूरे देश की नजर इस बात पर लगी हुई थी कि संघ मोदी सरकार और उसकी नीतियों के बारे में क्या राय रखता है । संघ प्रमुख के इस भाषण से ही सरकार और संघ के बीच के संबंध के सूत्र निकलते । जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी में बुजुर्ग नेताओं को ससम्मान मार्गदर्शक मंडल में शामिल कर निर्णय लेने की प्रक्रिया से अलग कर दिया गया वह संघ की मर्जी के बगैर उठाया गया होगा, इस बात में संदेह था । लोग यह जानना चाहते थे कि संघ भारतीय जनता पार्टी और उसके नेतृत्व के बारे में अब क्या सोचता है । इस तरह कि बातें सामने आ रही थी कि उपचुनावों के दौरान संघ ने भारतीय जनता पार्टी को अपने बूते पर चुनाव लड़ने के लिए छोड़ दिया था । नतीजे के बाद यह बात भी फैलाई जा रही थी कि हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में भी संघ के कार्यकर्ता उतने सक्रिय नहीं रहेंगे जितने कि लोकसभा चुनाव के दौरान थे । जिस तरह से अपने दशहरा भाषण में मोहन भागवत ने नरेन्द्र मोदी सरकार की तारीफ की वह यह बताने के लिए काफी था मोदी सरकार को संघ का पूरा समर्थन हासिल है । संघ प्रमुख ने साफ तौर पर कह दिया कि अपनी आशाओं और आकांक्षओं को पूरा करने का वक्त बहुत दिनों बाद आया है । उनका मतलब केंद्र में बहुमत की भारतीय जनता पार्टी सरकार से था । अपनी आशाओं और उम्मीदों को सार्वजनिक करने के बावजूद संघ प्रमुख ने साफ कर दिया था कि केंद्र सरकार के हाथ में कोई जादू की छड़ी नहीं है कि सबकुछ पलक झपकते ही हासिल हो जाए । यह प्रधानमंत्री को संघ की तरफ से उनके कार्यों का समर्थन था । दूरदर्शन की आलोचना करनेवालों को यह सोचना चाहिए था कि क्या ये खबर नहीं है और अगर ये खबर नहीं था तो कई अन्य निजी न्यूज चैनलों ने संघ प्रमुख के भाषण को लाइव क्यों दिखाया । क्या करदाताओं के फैसले से चलनेवाले इस सरकारीन्यूज चैनल को खबरों के बारे में पैसला लेने का हक नहीं है । बिल्कुल है । लेकिन सवाल यही है कि खबरों के बारे में फैसला ये संगठन सरकार को देखकर लेता है । संघ प्रमुख के इस बार के दशहरा भाषण का भी उतना ही महत्व था जितना कि पिछले साल के भाषण का था । पिछले साल भी जब पूरे देश में भ्रष्टाचार का घटाटोप अंधेरा था और महंगाई और सांप्रदायिक उन्माद अपने चरम पर था तब संघ प्रमुख के विचार जानने की जिज्ञासा ज्यादा थी। लेकिन उस वक्त कांग्रेस की सरकार थी और दूरदर्शन हर बड़े फैसले के लिए सरकार का मुंह जोहती रही है । इस बार के फैसले के पीछे भी सरकारी आकाओं को खुश करने की मंशा अधिक खबर दिखाने की मंशा कम थी । रही सही कसर सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने दूरदरर्शन का बचाव करके कर दिया । अगर दूरदर्शन स्वायत्त है और उसपर सरकारी नियंत्रण नहीं है तो फिर सरकार के मंत्री उसके फैसलों का बचाव क्यों कर रहे हैं ।
राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के भाषण के लाइव प्रसारण पर सवाल खड़े करनेवालों को अपने गिरेबां में झांकना चाहिए । दूरदर्शन के इस हाल के लिए जो लोग जिम्मेदार हैं वही अब सवाल खड़े कर रहे हैं । दूरदर्शन के सरकारी दुरुपयोग को याद दिलाने के लिए हमें राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में चलना पड़ेगा । राजीव गांधी के वक्त दूरदर्शन को राजीव दर्शन कहा गया था तब कांग्रेस के लोगों को दूरदर्शन बहुत सुहाता था । राजीव गांधी के बाद के दौर की सरकारो ने भी दूरदर्शन को कभी अपने पैरों पर खड़ा नहीं होने दिया । अंग्रेजी में एक कहावत है कि टू ब्लैक डोंट मेक अ व्हाइट । इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि पूर्ववर्ती सरकारों ने जो गलत काम किया उसके आधार पर बाद की सरकारों को उस गलत काम को करने की छूट मिल जाती है । हां इतना अवश्य है कि जिन लोगों ने दूरदर्शन का जमकर बेजा इस्तेमाल किया उनके पास दूसरों की आलोचना का नैतिक आधार नहीं है । वैसे राजनेताओं से नैतिकता की अपेक्षा बेमानी ही है ।
दूरदर्शन और आकाशवाणी के सरकारी दुरुपयोग के खिलाफ लंबे समय से बातें हो रही थी । उन्नीस सौ नब्बे में प्रसार भारती एक्ट बना भी । सरकार ने उस एक्ट को 15 सितंबर उन्नीस सौ सत्तानवे को नोटिफाई किया गया और उसी साल तेइस नवंबर से प्रासर भारती अस्तित्व में आया । माना यह गया कि प्रसार भारती के गठन के बाद दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो सरकारी शिकंजे से मुक्त होकर स्वायत्त हो जाएगा । लेकिन ऐसा हो नहीं सका । सभी सरकारों ने अपने मनमाफिक और अपने में आस्था रखनेवालों को प्रसार भारती की कमान सौंपी । नतीजा यह हुआ कि प्रसार भारती के अस्तित्व में रहते हुए भी दूरदर्शन और आकाशवाणी सरकारी कब्जे से मुक्त नहीं हो पाए । मुझे याद है कि जब राजेन्द्र यादव को प्रसार भारती का सदस्य बनाया गया था तो उन्होंने उसकी स्वायत्ता का सवाल उठाते हुए ही वहां से इस्तीफा दे दिया था। प्रसार भारती के चेयरमैन और उसके सदस्यों और सीईओ के बीच भी विवादों का लंबा इतिहास रहा है । प्रासर भारती में भ्रष्टाचार की भी खबरें आती रही हैं । सरकार या यों कहें कि करदाताओं का इतना पैसा दूरदर्शन पर खर्च होता है लेकिन उसकी जवाबदेही किसी की भी नहीं बनती है । सरकारें आती जाती हैं लेकिन दूरदर्शन का सभी सरकारें अपने हक में इस्तेमाल करती रही हैं । लोकसभा चुनाव के पहले बड़े ही तामझाम से दूरदर्शन में बड़े बड़े एंकरों और पत्रकारों को रखा गया था लेकिन तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री से मतभेद के चलते सारा तामझाम धरा का धरा रह गया था । अब भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र में आई है और सरकार के गठन के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दूरदर्शन में ही भरोसा भी जताया है । प्रधानमंत्री ने जनता से संवाद करने के लिए आकाशवाणी को भी चुना है । अपने तमाम कार्यक्रमों और दौरों में वो सिर्फ ऑफिसियल मीडिया यानि दूरदर्शन और आकाशवाणी को ही अपने साथ रखते हैं, विदेशी दौरों में भी । ऐसे में इस बात की अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि दूरदर्शन को स्वायत्ता हासिल होगी । इस बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यह भी तय किया है कि अपनी विचारधारा को लेकर बैकफुट पर जाने की जरूरत नहीं है । राष्ट्रवाद की उनकी अवधारणा को जनता के बीच आक्रामकता के साथ पेश करने का फैसला हुआ है । बहुत संभव है कि दूरदर्शन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के भाषण का लाइव प्रसारण इसी आक्रामक योजना का हिस्सा हो । जो भी हो लेकिन दूरदर्शऩ को सरकारी शिकंजे से मुक्त करने के लिए जरूरी है कि उसको प्रोफेशनली चलाया जाए ।

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