साल खत्म होने के पहले दिसंबर माह में साहित्य अकादमी पुरस्कार
का एलान होने की परंपरा है । अपने उसी परंपरा के निर्वाह में साहित्य अकादमी ने इस
वर्ष के पुरस्कारों का एलान कर दिया है । इस वर्ष हिंदी भाषा के लिए साहित्य अकादमी
का पुरस्कार वरिष्ठतम कवि, कथाकार, उपन्यासकार, निबंधकार रामदरश मिश्र को उनके कविता
संग्रह- आग की हंसी - पर दिया गया । रामदरश मिश्र
जी नब्बे पार के लेखक हैं और उनको बहुत पहले अकादमी पुरस्कार मिल जाना चाहिए था लेकिन
उस वक्त अकादमी में कुछ खास लोगों और विचारधारा का दबदबा था, लिहाजा रामदरश जी की अनदखी
होती रही । अब उम्र के इस पड़ाव पर अपेक्षाकृत कमजोर कृति पर जब उनको पुरस्कार देने
का एलान हुआ है तो अकादमी के नियमों को लेकर सवाल खड़े होते हैं । रामदरश जी के चयन
पर सवाल खड़ा करना उचित नहीं है लेकिन जिस तरह से अकादमी ने अपनी प्रतिष्ठा बचाने के
लिए उनको पुरस्कृत किया उसपर तो प्रश्नचिन्ह लगता ही है । अकादमी पुरस्कार में तमाम
गोपनीयता के दावों के बावजूद साहित्यक हलके में इस बात की चर्चा थी कि इस बार का पुरस्कार
रामदरश जी को दिया जाएगा। पुरस्कार के एलान के पहले सोशल मीडिया पर ये नाम खुल भी चुका
था । दरअसल साहित्य अकादमी की मजबूरी थी कि पुरस्कार वापसी के कोलाहल के बीच वो ऐसे
लेखक को पुरस्कृत करे जो पुरस्कार लेने से इंकार ना करे । रामदरश मिश्र इस कसौटी पर
खड़े उतरते थे । पुरस्कार वापसी के एलान के बाद से ही अकादमी के कर्ता-धर्ता इस जुगाड़
में लग गए थे कि ऐसे लेखक को पुरस्कृत करने के लिए खोजा जाए जो विवादित ना हो । इस
बात की तैयारी आधार सूची बनाने के वक्त से ही शुरू कर दी गई थी । खबर है कि जिस लेखक
को आधार सूची बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी उसको पर्याप्त संकेत दे दिए गए थे ।
फिर हिंदी भाषा के लिए पुरस्कार देने के लिए जूरी बनाते वक्त भी इस बात का ध्यान रखा
गया । विश्वनाथ तिवारी के बाद हिंदी भाषा के संयोजक बनाए गए गजलकार माधव कौशिक इसके
जूरी में रखे गए । माधव कौशिक अकादमियों के माहिर खिलाड़ी रहे हैं और उनको मालूम है
कि कौन सा काम किस तरीके से किया जाता है । माधव कौशिक के अलावा रामजी तिवारी और महेन्द्र
मधुकर जूरी के सदस्य बनाए गए जिन्होंने रामदरश मिश्र के नाम पर मुहर लगाई । जूरी के सदस्यों के नाम को देखकर इस बात का अंदाजा
लगाया जा सकता है कि तैयारी कितनी पुख्ता रही थी । साहित्य अकादमी पुरस्कारों और उसके
क्रियाकलापों में पारदर्शिता की सख्त आवश्कता है ।
लगभग बानवे साल के रामदरश मिश्र को पुरस्कृत करने के बाद अब लगता है कि साहित्य
अकादमी को पुरस्कार के नियमों में परिवर्तन कर कृति के बजाय लेखकों को उनके अवदान पर
पुरस्कार देना चाहिए यानि कि लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड । जिस तरह से मृदुला गर्ग को,
गोविन्द मिश्र आदि को उनकी कम महत्वपूर्ण कृतियों पर पुरस्कृत किया गया उससे तो यही
लगता है । नियमानुसार अकादमी को पिछले तीन साल में चर्चित किताबों पर पुरस्कार देना
होता है । विश्वनाथ तिवारी के अध्यक्ष बनने के बाद से उन लेखकों को पुरस्कृत किया जाने
लगा है जो प्रतिष्ठित हैं, पूर्व में बेहतर किताबें लिख चुके हैं, जिनकी काफी लंबी
उम्र है और जिनकी कोई ना कोई किताब उस दौरान छपी हो । इसके कई फायदे होते हैं । लेखक
की उम्र और लेखकीय प्रतिष्ठा के मद्देनजर पुरस्कार के चयन पर विवाद नहीं होता है ।
दूसरा अकादमी यह भी दिखाने में सफल हो जाती है कि उसने उस लेखक को पुरस्कृत कर दिया
जिनकी पूर्व में अनदेखी हुई थी । वक्त आ गया है कि अकादमी के संविधान की पुनर्समीक्षा
की जाए ।
No comments:
Post a Comment