Translate

Wednesday, December 23, 2015

आतंक से मुक्त हो सोशल साइट्स

देश में इंटरनेट के फैलाव के बाद तेजी से सोशल मीडिया ने अपने पांव-पसारे हैं । शहरों से लेकर गांवों तक में फेसबुक के कंज्यूमरों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है । ट्विटर के यूजर्स भी लगातार बढ़ रहे हैं । प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार के मंत्रियों और विभागों के ट्विटर पर सक्रिय होने की वजह से आम आदमी के बीच भी इस माध्यम को लेकर उत्सुकता बढ़ी है । इसका नतीजा यह हुआ है कि फेसबुक और ट्विटर हमारे देश के गांवों तक अपनी पैठ बनाने में कामयाब हो चुका है । स्मार्ट फोन और इंटरनेट पैक के सस्ता होने से भी फेसबुक की लोकप्रियता में खासा इजाफा हुआ है । डिजीटल क्रांति के इस दौर में ये बेहतर है कि हम भी दुनिया के अन्य देशों की तरह ही सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म का उपयोग करने में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं । लेकिन इस मीडिया के अपने खतरे भी हैं । इन खतरों से सचेत रहने और उसको रोकने की दिशा में भी कदम उठाने की आवश्यकता है । अभी हाल ही में खबर आई कि जयपुर में रहने वाला एक तीस साल का मार्केटिंग मैनेजर खूंखार आतंकवादी संगठन आई एस के संपर्क में था और उसके लिए काम कर रहा था । उसकी गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में ये बात सामने आई कि वो देश के युवाओं को सोशल मीडियाके माध्यम से प्रतिबंधिक आतंकवादी संगठन आई एस में भर्ती करने का काम कर रहा था । उसके फेसबुक पर अपनी कई फेक आईडी बनाई हुई थी जिसके मार्फत वो हजारों लोगों के संपर्क में था और आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे रहा था । वो ना केवल फेसबुक पर सक्रिय था बल्कि व्हाट्स एप और टेलीग्राम जैसे नेटवर्किंग टूल्स का भी इस्तेमाल कर रहा था । वो फेसबुक पर डायरी ऑफ अ मुजाहदीन के नाम से एक पेज भी चला रहा था । इस पेज के माध्यम से वो सिस्टम से खपा युवकों की तलाश कर उसको आतंकवादी बनाने की कोशिश करता था । पुलिस की आगे की जांच में पता चलेगा कि उसके मंसूबे क्या थे लेकिन जो जानकारियां छन कर आ रही हैं उसके हिसाब से उसके मंसूबे बेहद खतरनाक थे । इसी तरह से पुणे की एक सोलह साल की लड़की को आई एस ने अपने चंगुल में ले लिया । कॉंन्वेंट स्कूल की छात्रा को आई एस के श्रीलंका के एक ऑपरेटिव ने पहले अपने चंगुल में फंसाया और फिर उससे फेसबुक और ट्विटर के जरिए उसका ब्रेनवॉश शुरू हो गया । उसके बाद कई मैसेज इस बात की पुष्टि करते हैं कि आई एस ने उस नाबालिग लड़की को सीरिया में आतंकवादी संगठन ज्वाइन करने के लिए राजी कर लिया था और वो चंद दिनों बाद वहां जाने को तैयार हो गई थी । इससे भी खतरनाक बात यह हुई कि जब से वो आई एस के आतंकवादियों के संपर्क में आई तो उसने जीन्स और शर्ट पहनना छोड़कर बुर्का पहनना शुरू कर दिया । ये दो उदाहरण है कि किस तरह से सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर आतंकवादी संगठन हमारे देश में पांव पसार रहे हैं । इस साल फरवरी में केंद्र सरकार ने आई एस पर बैन लगा दिया था और कहा था कि ये आतंकवादी संगठन भारत समेत पूरी दुनिया के युवाओं को दिग्भ्रमित कर रैडिकलाइज कर रहा है । इस प्रतिबंध के बावजूद सोशल मीडिया के जरिए ये आतंकवादी संगठन पूरे देश में सक्रिय है

बावजूद इसके सोशल मीडिया आतंकवादी संगठन आई एस और उसके समर्थकों के पेज को हटाने को तैयार नहीं है । खबरों के मुताबिक पैरिस में हुए आतंकवादी हमले के बाद एक शख्स ने आई एस के पेज को लेकर शिकायत भेजी थी लेकिन फेसबुक ने कहा था कि वो उसके कम्युनिटि स्टैंडर्ड और नीतियों के खिलाफ नहीं है । दरअसल इन फैन पेज पर जाने के बाद वहां सक्रिय लोग विजिटर को आई एस के नियंत्रण वाले बेवसाइटस पर रिडायरेक्टर कर देते हैं । यही हालत ट्विटर की भी है जहां कोई भी खलीफा न्यूज जैसे कई हैंडल सक्रिय हैं जो आई एस की जानकारियां साझा करते रहते हैं । ट्विटर पर आई एस के समर्थकों की पूरी फौज है जिनकी पहचान करना आसान नहीं है लेकिन वो खामोशी के साथ अपने काम को अंजाम देते रहते हैं । कुछ दिनों पहले तक पाकिस्तानी आतंतवादी हाफिज सईद भी ट्विटर पर खासा सक्रिय था बाद में उसके अकाउंट को सस्पेंड किया गया । इसी तरह से यूट्यूब पर आई एस की आतंकवादी करतूतों के कई दिल दहलाने वाले वीडियो मौजूद हैं । इस वक्त हमारे देश को आतंकवादियों से जबरदस्त खतरा है ऐसे में सोशल मीडिया साइट्स की निगरानी आवश्यक है । इसका मतलह यह कतई नहीं है कि इन साइट्स पर किसी भी तरह की सेंसरशिप होनी चाहिए बल्कि सोशल मीडिया पर आतंकवादी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए कोई मैकेनिज्म बनाया जाना चाहिए । दरअसल ये साइट्स पूरी दुनिया में लोग उपयोग करते हैं, लिहाजा आतंकवादी संगठनों के समर्थकों पर नजर रखना काफी मुश्किल काम है । परंतु हमारे देश में फेसबुक पर फेक आईडी बनाकर आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देनेवालों और अफवाह फैलाने वालों पर लगाम लगाने के लिए फोन नंबर या आधार कार्ड नंबर को प्रोफाइल के साथ अनिवार्य किया जा सकता है । मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगों के दौरान फेसबुक का कितना गलत इस्तेमाल हुआ ये पूरी दुनिया ने देखा । कई बार तो अफवाह फैलाने वालों की पहचान हो जाती है लेकिन कई बार जब फेक आई डी विदेश से बनाई जाती है और उसका इस्तेमाल किया जाता है तब उसको ट्रैक करना बहुत मुश्किल होता है । कार्रवाई करना तो लगभग नामुमकिन ही होता है । इसके अलावा इन सोशल साइट्स को भारत में अपने सर्वर लगाने की भी आवश्यकता है । फेसबुक और ट्विटर भारत सरकार के साथ कई महात्वाकांक्षी योजनाओं को आगे बढ़ाने का मंसूबा पाले बैठे हैं लेकिन उनको पहले बारत की इन चिंताओं पर भी ध्यान देना होगा । 

No comments: