दिल्ली में कई ऐसे पुस्तकालय हैं जिनका गौरवशाली
इतिहास रहा है। इन पुस्तकालयों में दुर्लभ ग्रंथों और प्राचीन लिपि में हस्तलिखित
पांडुलिपियां भी हैं, जो हमारे देश की ज्ञान परंपरा को संजोए है। ऐसी ही एक
लाइब्रेरी है केंद्रीय पुरातात्विक पुस्तकालय, जो दिल्ली के तिलक मार्ग पर
ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के मुख्यालय ‘धरोहर भवन’ में है। इस पुस्तकालय की स्थापना शिमला में 1902
में हुई थी। लॉर्ड कर्जन ने सर जॉन मार्शल को ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का
महानिदेशक नियुक्त किया था, उसके बाद मार्शल ने पुस्तकालय शुरू करने के लिए एक
निश्चित राशि आवंटित की थी। काफी दिनों तक शिमला में चलने के बाद इस पुस्तकालय को
दिल्ली लाया गया। 1960 तक ये पुस्तकालय कर्जन रोड, जो अब कस्तूरबा गांधी मार्ग के
नाम से जाना जाता है, की एक इमारत में रहा। उसके बाद इसको विज्ञान भवन के पास की एक
इमारत में शिफ्ट किया गया और फिर जनपथ स्थित नेशनल ऑर्काइव के भवन से ये पुस्तकालय
चलता रहा । इस वर्ष इसको तिलक मार्ग के धरोधर भवन में स्थायी ठिकाना मिला है। इस
पुस्तकालय में डेढ लाख से अधिक पुस्तकें हैं। इनमें से बीस हजार से अधिक ऐसी
पुस्तकें, पांडुलिपियां, फोटो और चित्र हैं जिनको धरोहर की श्रेणी में रखा जा सकता
है। इस पुस्तकालय में खरोष्ठी और ब्राह्मी लिपि में लिखे कुछ दुर्लभ ग्रंथ और
अभिलेख भी हैं। खरोष्ठी लिपि भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक है जो दाएं से
बाएं की ओर लिखी जाती हैं। सम्राट अशोक के काल के कई दस्तावेज और अभिलेख इस लिपि
में मिलते हैं।
इन दुर्लभ और लगभग अप्राप्य ग्रंथों के अलावा
यहां प्रचुर मात्रा में प्राचीन तिब्बती साहित्य की पांडुलिपियां, नक्शे आदि
उपलब्ध हैं। इसके अलावा यहां इतिहास, पुरातत्व, स्थापत्य कला, साहित्य, संस्कृति,
भारतीय प्राच्य विद्या, भूगर्भशास्त्र और बुद्ध धर्म से संबंधित ग्रंथों की भरमार
है। यहां कई भाषाओं में पुस्तकें उपलब्ध हैं जिनमें हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, फारसी,
उर्दू, फ्रेंच और जर्मन प्रमुख हैं। रूसी भाषा की भी कई पुस्तकें उपलब्ध हैं। इतना
ही नहीं अगर आपकी रुचि सूफी दर्शन में है तो आपके लिए भी वहां तेरहवी सदी में लिखी
गई कई पुस्तकें मिल सकती है। सूफी संतों की कई जीवनियां भी अंग्रेजी में उपलब्ध
हैं। अगर आप प्राचीन और ऐतिहासिक यात्रा के संदर्भों को जानना चाहते हैं तो उस तरह
की पुस्तकें भी यहां मिल सकती हैं। लगभग पूरी दुनिया की समुद्र से यात्रा करनेवाले
जॉन फ्रांसिस के अनुभव भी पुस्तकाकार इस पुस्तकालय में हैं। यहां आपको विभिन्न
शहरों की ऑर्कियोलॉजिकल रिपोर्ट के अलावा एएसआई के डीजी की सालाना रिपोर्ट भी एक
जिल्द में मिलेंगे जिसमें धरोहरों के बारे में प्रामाणिक जानकारी है। आम लोगों के
अलावा ये पुस्तकालय उन शोधकर्ताओं के लिए बेहद अहम है जो इतिहास के अलावा इस देश
की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत पर शोध कर रहे हैं। इस पुस्तकालय की किताबों के
डिजीटाइजेशन का काम भी शुरू हो चुका है। अबतक 12261 पुस्तकों को डिजीटाइज किया जा
चुका है।
पाठकों की सुविधा के लिए यहां एक आरामदायक रीडिंग
रूम भी है जहां बैठकर पाठक पुस्तकें और पत्रिकाएं पढ़ सकते हैं।अगर आप किसी पुस्तक
के अंश फोटो कॉपी करवाना चाहते हैं तो एक रुपया प्रति पेज की दर से फोटो कॉपी की
सुविधा उपलब्ध है। 24 तिलक मार्ग पर स्थित धरोहर भवन के अपर बेसमेंट में ये
पुस्तकालय है। इस पुस्तकालय में कोई सदस्यता शुल्क नहीं लिया जाता है, आप अपना प्रामाणिक
पहचान पत्र लेकर वहां जाइए और पुस्तकालय की सुविधाओं का लाभ उठाइए। पुस्तकालय का
समय सुबह 9.30 से लेकर शाम 6 बजे तक है और ये सोमवार से शुक्रवार तक खुला रहता है।
1 comment:
रोचक जानकारी।
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