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Saturday, December 15, 2018

ज्ञानपीठ पुरस्कार पर नाहक विवाद


अंग्रेजी के लेखक अमिताव घोष को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने पर सोशल मीडिया के विवादवीरों ने आसमान सर पर उठा लिया है। उनके तर्क और संवेदना यह हैं कि भारतीय भाषाओं में श्रेष्ठ कृतियों की कमी हो गई क्या जो अंग्रेजी के लेखक को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की गई। विवाद उठानेवालों का तर्क है कि ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय भाषाओं के लेखकों को पुरस्कृत करने की योजना है और ज्ञानपीठ ने अंग्रेजी के लेखक को सम्मानित करके भारतीय भाषाओं का अपमान किया है। भारतीय भाषाओं के लिए उमड़े इस प्रेम का सम्मान किया जाना चाहिए लेकिन संवेदना जब तर्क और तथ्य पर भारी पड़ते हैं तो निष्कर्ष गलत होते हैं। यह सही है अंग्रेजी भारतीय भाषा नहीं है लेकिन भारतीय संविधान में उसको सहयोगी राजभाषा का दर्जा हासिल है। वो हिंदी के साथ-साथ भारतवर्ष की राजभाषा है। अंग्रेजी को साहित्य अकादमी से भी मान्यता प्राप्त है। साहित्य अकादमी भी संविधान की आठवीं अनुसूचि की बाइस भाषाओं के अलावा अंग्रेजी और राजस्थानी को मान्यता देती है और उन भाषाओं के लेखकों को पुरस्कृत करती है। इसलिए अंग्रेजी को लेकर शोरगुल मचानेवालों को इन तथ्यों पर विचार करना चाहिए। रही बात भारतीय ज्ञानपीठ की तो उसने तीन साल पहले ही अंग्रेजी को सम्मानित करने का मन बना लिया था। तब ज्ञानपीठ पुरस्कार की प्रवर समिति ने फैसला कर ज्ञानपीठ द्वारा स्वीकृत भाषाओं में अंग्रेजी को भी जोड़ दिया था। उस वक्त ज्ञानपीठ की प्रवर समिति की तरफ से कहा गया था कि भारत के बहुत सारे लेखक अंग्रेजी भाषा में पुरस्कार देने के पक्षधर हैं। हलांकि बहुत सारे लोगों का तर्क है कि ज्ञानपीठ ने बाजार के दबाव में और अंतराष्ट्री मंचों पर प्रतिष्ठा और मान्यता हासिल करने के लिए अंग्रेजी को जोड़ा है। ये तो आनेवाले समय में ही पता चल पाएगा जब भारतीय भाषा और अंग्रेजी के लेखक को दिए जानेवाले पुरस्कार के अनुपात का आकलन होगा।
अमिताव घोष अंग्रेजी के उन बेहद महत्वपूर्ण लेखकों में से हैं जिन्होंने अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। कोलकाता में जन्मे अमिताव घोष ने पहले दून स्कूल और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से सेंट स्पीफन कॉलेज और दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स से पढ़ाई की। उन्होंने एक पत्रकार के रूप में अपना करियर शुरू किया। इन दिनों अमिताव घोष अमेरिका में रहते हैं। उनकी चर्तित कृति दे शैडो लाइन के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। भारत सरकार ने भी उनको पद्मश्री से सम्मानित किया है। वो रॉयल सोसाइटी ऑफ लिटरेचर के फेलो नामित किए जा चुके हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में द सर्किल ऑफ रीजन’, ‘द कलकत्ता क्रोमोसोम’, ‘द ग्लास पैलेस’, ‘द हंगरी टाइड’, ‘रिवर ऑफ स्मोकऔर फ्लड ऑफ फायर प्रमुख हैं. अमिताव फिक्शन से इतर भी अन्य विषयों पर लेखन करते हैं। 


2 comments:

veethika said...

मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ. बबिना पूरी जानकारी के केवल भावनाओं में बह कर बात नहीं होनी चाहिए.

veethika said...

मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ. बबिना पूरी जानकारी के केवल भावनाओं में बह कर बात नहीं होनी चाहिए.